फतेह लाइव, रिपोर्टर.











छत्तीसगढ़ समाज में इस त्यौहार सावन मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या को अच्छे से अच्छे फसल होने के लिए बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. सुबह से गाय, बैल को स्नान कराके उनकी पूजा करके आटे की लोई में नमक डाल का खिलाया जाता है. हरेली के दिन हर घर में छत्तीसगढ़ी पकवान बनाया जाता है। जैसे ठेठरी, खुरमी, भजिया। सुबह से ही बैगा (ओझा) नीम का पत्ता (नीम- डाली) घर-घर जाकर दरवाजे पर लगाते हैं, फिर उनको दान-पुण्य दिया जाता है. उस दिन कृषि औजार की पूजा की जाती है (नांगर ,रापा ,कुदारी बसला, हसवा, साबल्) आदि पर पान, सुपारी, फूल, अक्षत, नारियल तथा बंदन् लगाकर पूजा करके कुलदेवी की जाती है।
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प्रसाद के रूप में गुलगुला और मीठा चीला का भोग लगाया जाता है. उसी दिन के प्रसाद गुलगुला को लेकर भाई या पिता के द्वारा बेटी को तीज में मायके लेवाने की परंपरा है. हरेली त्यौहार के दिन बहुत तरह के खेलों का आयोजन किया जाता है. बच्चे से लेकर बड़े तक बांस से बने गेडी मे चढ़कर गाँव मे घूमते हैं. कार्यक्रम में देवकी साहू, हेमा साहू, जमुना देवी, नीतु, बेबी पुष्पा, सरस्वती साहू, नैना देवी, हर्षा, मंजू ठाकुर, गौरी देवी, जुगवती देवी, कमला, ननेश्वरी देवी, रुपा आदि शामिल थे.