जलजमाव के कारण और निदान को लेकर समीक्षा बैठक संपन्न

-सभी कारण और सुझाव सूचीबद्ध किये गए
-मुख्य कारण और निदान अलग किये जाएंगे
-प्रशासन को फाइनल सूची मुहैया कराकर काम करवाया जाएगा
-बैठक में प्रशासनिक विफलता का मुद्दा जोर-शोर से उठा
-नाली और सड़क निर्माण का डिजाइन बदलने की मांग
-आदर्श नगर में जल-जमाव का मुद्दा भी उठा
-कचरा प्रबंधन पर भी लोगों ने खूब बातें की
-नालों की साफ-सफाई न होने का मुद्दा भी उठा

फतेह लाइव, रिपोर्टर.

शहर में बीते दिनों बारिश के कारण हुई परेशानियों, खास कर पश्चिमी विधानसभा में हुई दिक्कतों के कारण और उनके समाधान के बिंदुओं की तलाश करने के लिए विधायक सरयू राय की अध्यक्षता में मंगलवार को एक समीक्षा बैठक हुई। इस समीक्षा बैठक में एनडीए से जुड़े कार्यकर्ता-नेता-पदाधिकारी शामिल हुए। बैठक बिष्टुपुर स्थित मिलानी हॉल में हुई।

इस बैठक की जरूरत क्यों पड़ी, यह बताया विधायक सरयू राय ने। उन्होंने कहा कि अगर इंफ्रास्ट्रक्चर सही होता तो बारिश का पानी सुगमता से निकल जाता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कई इलाकों में कमर तक तो कई इलाकों में घुटनों तक पानी जमा रहा।नित्यानंद कालोनी, देशबंधु कालोनी में जल जमाव की समस्या बेहद पुरानी है लेकिन इस बार नए इलाकों में भी पानी प्रवेश कर गया।

उन्होंने कहा कि इस बैठक का मुख्य उद्देश्य यह जानना है कि किन इलाकों में दिक्कत हुई, क्यों हुई और इसका समाधान क्या है? उन्होंने कहा कि सभी लोग अपनी राय दें जिन्हें एक साथ कंपाइल किया जाएगा और जो जायज चीजें हैं, उन्हें आवश्यक मान कर और प्रशासन पर दबाव बना कर हमें काम करवाना होगा। उन्होंने कहा कि अनेक ऐसे प्रोजेक्ट हैं, जिनका प्रस्ताव कई माह पहले ही बना कर भेज दिया गया लेकिन उनकी प्रशासनिक स्वीकृति अब तक नहीं मिली। स्वीकृति न मिलने से भी काम नहीं हो पाया और लोगों को इस बारिश में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

विधायक सरयू राय के जनसुविधा प्रतिनिधि धर्मेंद्र प्रसाद ने कहा कि मानगो में जो काम प्रशासन को करना चाहिए था, वह प्रशासन ने नहीं बल्कि स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट के ट्रस्टी आशुतोष राय ने करवाया। एक अन्य जनसुविधा प्रतिनिधि पप्पू सिंह (मानगो) ने कहा कि मानगो में एनडीआरएफ की टीम की जरूरत थी। प्रशासन से कई बार कहा गया लेकिन कान पर जूं नहीं रेंगा। अंत में आशुतोष राय ने ही एनडीआरएफ की टीम बुलवाई। कुंवर बस्ती की घटना बेहद झकझोरने वाली थी क्योंकि एक शख्स की मौत हो गई थी। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि सभी कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर संकट की घड़ी में काम किया।

वरिष्ठ भाजपा नेता संजीव सिन्हा ने कहा कि आदर्श नगर में जल जमाव सबसे बड़ा मुद्दा है। उन्होंने सुझाव दिया कि एक नाली का निर्माण होना चाहिए, जो सीधे नदी तट तक जाए। नाली का प्रस्ताव पहले से है लेकिन बन नहीं पा रही है क्योंकि जहां नाली का इंड होना है, उस स्थान को बंद कर दिया गया है। इसलिए जलजमाव से आदर्शनगर के लोगों को कोई निजात नहीं मिली, उल्टे इस बार परेशानी और ज्यादा बढ़ गई।

वरिष्ठ भाजपा नेता नीरज सिंह ने कहा कि हर बरसात में मानगो, कदमा और सोनारी बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं। इसके पीछे फिसड्डी इंजीनियरिंग का बहुत बड़ा हाथ है। दुनिया आगे जा रही है और हमारा इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट पीछे जा रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि बीच सड़क पर नाली बनाई जाए ताकि नाली को स्पेस मिल सके। सड़क के बाएं या दाएं बनने वाली नाली को स्थान कम मिल पाता है। उन्होंने नाली और सड़क के डिजाइन में परिवर्तन पर फोकस किया।

वरिष्ठ जदयू नेता कुलविंदर सिंह पन्नू ने कहा कि जल जमाव का एक प्रमुख कारण कचरा भी है। उन्होंने दावा किया कि 30 प्रतिशत कचरे का ही उठान हो रहा है। इसे बढ़ाना होगा। वरिष्ठ भाजपा नेता ललन जी ने कहा कि स्विस गेट का मेंटिनेंस जरूरी है। यह जब खुलता है तो पूरी तरह नहीं खुल पाता और बंद भी पूरी तरह नहीं हो पाता।

एक सुझाव आया कि जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्र हैं, वहां एक चेतावनी बोर्ड लगाना चाहिए कि इस स्थान पर मकान न बनाएं। एक शिकायत यह सामने आई कि कचरा का उठान और निष्पादन सही तरीके से नहीं होता और वही कचरा दोबारा उनके घरों तक आ जाता है। एक सुझाव यह आया कि नालियां जो बेतरतीब बनी हैं, उनमें सुधार हो और हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू हो। यह भी कहा गया कि रामनगर-श्यामनगर में मिट्टी का कटाव रोकने के लिए वहां गार्डवाल लगाने की सख्त आवश्यकता है। अधिकांश शिकायतें नगर निगम के सही तरीके से काम ना करने, प्रशासनिक स्तर पर लापरवाही बरतने, बिजली कटौती आदि से संबंधित रहीं। अधिकतर सुझाव कूड़ा प्रबंधन, नाली-नाला प्रबंधन में सुधार और साफ-सफाई को लेकर आई।

कार्यक्रम में आशुतोष राय, जनसुविधा प्रतिनिधि नीरज सिंह, उच्च शिक्षा जनसुविधा प्रतिनिधि पवन सिंह, अजय श्रीवास्तव, भीम सिंह, संजय तिवारी, रवींद्र सिंह सिसौदिया, अमरेंद्र मलिक, ललन चौहान, उषाय यादव, मल्लू सिंह, लालू गौड़, रवि गोराई, मंजू सिंह, रविशंकर सिंह, संजय रजक, अंजन सरकार, प्रवीण सिंह, विकास साहनी, ममता सिंह, पिंटू सिंह, रवि ठाकुर, संतोष भगत, तारक मुखर्जी, अतुल सिंह, आदित्य मुखर्जी, रिक्की केशरी समेत सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे। संचालन विधायक सरयू राय के जनसुविधा प्रतिनिधि मुकुल मिश्रा ने किया। इस मौके पर एनडीए के सैकड़ों कार्यकर्ता मौजूद थे।

जमशेदपुर को नाला आधारित जलनिकासी पर ध्यान देना ही होगाः सरयू राय

-स्विस गेटों के मेंटिनेंस में कठिनाई आती है
-छोटी नालियों को दुरुस्त करना जरूरी
-पारडीह से लेकर बालीगुमा तक एक बड़े नाले की जरूरत
-2017-18 के डीपीआर का क्या हुआ, किसी को पता नहीं

जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय ने दो टूक कहा है कि अब जमशेदपुर को नाला आधारित जलनिकासी योजना पर ध्यान देना ही होगा। यहां मिलानी हॉल में बीते दिनों हुई बारिश के कारण परेशानियों के संबंध में लोगों से कारण और निदान पूछने के लिए आयोजित समीक्षा बैठक में उन्होंने कहा कि अपने पूर्व के कार्यकाल में उन्होंने मानगो में चार स्विस गेट बनवाया था। यह सही है कि इन स्विस गेटों के मेंटिनेंस में कठिनाई आती है। उस वक्त भी उन्होंने कहा था कि हर स्विस गेट के पास एक पंप सेट होना चाहिए ताकि नाला के पानी को बरसात के समय में नदी में पंपसेट की मदद से गिराया जा सके। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

राय ने कहा कि जिन मोहल्लों की छोटी-बड़ी नालियां नाले तक पहुंचती हैं, उन्हें दुरुस्त करना जरूरी है। उस दौर में भी यह बात कही गई थी कि लेकिन यह काम हुआ नहीं। इस काम को हम लोगों को ही कराना होगा। लोगों के दिमाग में यह बात आनी चाहिए कि उन्हें ऐसा कोई काम नहीं करना है, जिससे मोहल्ले में पानी जमा हो।

मानगो नगर निगम पर हमलावर होते हुए सरयू राय ने कहा कि इस नगर निगम के पास इतनी शक्ति ही नहीं कि कोई काम करा सके। उन्होंने कहा कि नगर निगम मानगो से फाइल को रांची भेजने में ही 15 दिन लगा देता है। इससे क्या उम्मीद करें। उन्होंने सुझाव दिया कि नगर निगम 50 साल का आंकड़ा निकाले और यह जांचे कि इन 50 वर्षों में औसतन कितनी बारिश बरसात के दिनों में होती है। एक औसत के आधार पर जो आंकड़ा आए, उस आधार पर नगर निगम को अपनी तैयारी करनी चाहिए ताकि जल जमाव की समस्या से मुक्ति मिले।

राय ने कहा कि 2008 में एक बार और 2017-18 में दूसरी बार कंसल्टेंट बहाल हुए। इन कंसल्टेंटों ने पूरे मानगो के पानी को किस तरीके से नदी तक लाया जाए, इसकी रुपरेखा तैयार की थी। उसका डीपीआर भी तैयार हो गया था। लेकिन बीते 7 साल से वह योजना जहां थी, आज भी वहीं है। कोई बताने को तैयार नहीं कि उस योजना का क्या हुआ। वह योजना आगे बढ़ी ही नहीं। एक टीम बना कर आप लोगों को यह पता करना चाहिए कि 2017-18 में जो डीपीआर बना था, वह कहां अटक गया। क्या प्रगति हुई। यह जनहित का काम है और इसके लिए प्रशासन पर दबाव बनाना जरूरी है।

श्री राय ने कहा कि टाटा शहर का नाम टाटा स्टील के कारण देश-विदेश में मशहूर है। लेकिन, टाटा स्टील के लीज इलाके में भी अब चौक-चौराहों पर बरसात के दिनों में पानी जमा हुआ दिख जाता है। जो नॉन लीज इलाके हैं, उनकी तो बात ही मत करें। वहां तो जो हुआ है, वह हम सभी ने अभी देखा ही है। गोलमुरी, सिदगोड़ा में पानी लगता है। 100 साल पुराना शहर है। पहले नाले बेतरतीब बहते थे क्योंकि बस्तियां नहीं थीं। अब जबकि बस्तियां बस गई हैं, फिर भी नाले बेतरतीब ही बह रहे हैं और लोग परेशान हो रहे हैं। नाले जैसे पहले थे, आज भी वैसे ही हैं। टाटा स्टील को भी इस पर विचार करना होगा। जलजमाव को रोकने के लिए कंपनी क्या योगदान कर सकती है, इस पर बात करने की जरूरत है। छोटे नालों की दिक्कत यह है कि उनकी वहन क्षमता कम है जिस कारण वह पानी को फ्लैट अथवा सड़क की तरफ फेंक देता है। इस कारण ही परेशानी होती है। उन्होंने पारडीह से लेकर बालीगुमा तक एक बड़े नाले की जरूरत पर जोर दिया।

2018 के डीपीआर के आधार पर काम होता, तो आज यह नौबत नहीं आतीः आशुतोष राय

स्वर्णरेखा क्षेत्र विकास ट्रस्ट के ट्रस्टी और वरिष्ठ जदयू नेता आशुतोष राय ने कहा कि जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय इकलौते ऐसे विधायक हैं जो बारिश के पानी में तीनों दिन भीग-भीग कर लोगों से संवाद करते रहे, उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते रहे और पानी उतर जाने के बाद इलाके के लोगों को बुलाकर खुद ही उनसे सवाल पूछ रहे हैं और उनसे ही निदान के लिए सुझाव मांग रहे हैं।

मीडिया से बातचीत में आशुतोष राय ने कहा कि बारिश के दौरान प्रशासनिक लापरवाही साफ तौर पर दिखी। नगर निगम भी उतना एक्टिव नहीं था, जितना उसे होना चाहिए था। 2017-2018 में जल-मल निकासी योजना का डीपीआर बना था। उसमें यह व्यवस्था थी कि छोटी नालियों का पानी बड़े नालों में गिरेगा और नालों का पानी एसटीपी के माध्यम से शुद्ध होकर नदी में गिरेगा। लेकिन, सात साल बीत जाने के बाद भी उस डीपीआप की सुध लेने वाला कोई नहीं है। अगर उस डीपीआर के आधार पर काम होता तो आज यह नौबत नहीं आती.

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