फतेह लाइव, रिपोर्टर.
देश के प्रधानमंत्री जी ने एक बार फिर मिडिल क्लास फॅमिली को टैक्स के बोझ से दबा दिया है। चुनाव जीत के बाद लगा था टैक्स में राहत दिया जायेगा, लेकिन ये उल्टा हो गया और मध्यम वर्ग के ऊपर लगता है। चुनावी खर्च थोप दिया है। युवाओं को नौकरी के बदले इंट्रेनशिप का झूनझुना वो भी EMI में, किसानों और महिलाओं की फिर से उपेक्षा की गई है।
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इस बजट में कामगार और मजदूरों को फिर ठगा गया है। बजट को कांग्रेस के न्याय पत्र से चुराया गया है, जिसमें पहली नौकरी पक्की का वायदा था। झारखंड में केंद्रीय मंत्री चुनावी प्रभारी बने है, लेकिन झारखंड की जनता को कुछ नहीं दिला सके। आश्चर्य है कि बजट में स्वास्थ्य सेवा का जिक्र नही है। उसके बजट को घटाया गया है, जिसका मतलब साफ है कि जनता की जान से भाजपा सरकार को कोई लेना देना नहीं। कोरोना जैसे आपातकाल से भी सरकार कुछ नहीं सीखी है, जिसका अफसोस है। कुल मिलाकर यह बजट आई वाश है। बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए विकास फंड देना और झारखण्ड को उपेक्षित करना आदिवासी विरोधी मानसिकता का परिचायक है। श्रीराम मंदिर वाला राज्य उत्तर प्रदेश को भी उपेक्षित कर वहां की जनता से चुनावी बदला लिया गया है।