फतेह लाइव, रिपोर्टर.
शुक्रवार को स्थान विभूति विहार में झारखण्डी भाषा भाषी मूलनिवासी संघ का एक बैठक सम्पन्न हुआ। जिसमें झारखण्ड में वर्तमान समय में चल रहे मुद्दों के बारे में गहन चर्चा किया गया। मौके पर केंद्रीय अध्यक्ष संजय बेहरा ने कहा जझारखण्ड में झामुमो स्थानीय व नियोजन नीति के नाम पर सत्ता में आयी थी, परंतु सत्ता में आते ही इस सरकार ने अपना रंग बदल लिया है। आज यह सरकार चुन चुन कर बाहरियों को नौकरी दे रही है।
चुनाव से पहले विश्वास दिलाया था नियोजन नीति बनाकर झारखण्ड के युवाओं को नोकरी दी जाएगी। आज झामुमो सरकार बाहरियों को नोकरी देकर अपनी पीठ थपथपा रही है। झारखण्ड में जो भी नियुक्तियाँ दी जा रही है। पूरे भारत के लोगों के लिए दरवाजा खोल दिया है। संविधान में उल्लेखित है, भारत राज्यों का संघ है। प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री यानी राज्य सरकार को अपने राज्य हित में कानून बनाकर राज्यवासियों को नियोजन नीति लागू कर राज्य के लोगों को नोकरियों में नियुक्तियाँ कर सकती है।
झारखण्ड में झारखण्डी का हक अधिकार छीन कर अपने कुर्सी तथा गठबंधन को ध्यान में रख कर अपने वोट का फायदा के चक्कर में यह हथकंडा अपनाया जा रहा है। पूर्वी सिंहभूम जिले में घंटी संविदा पर बहाल कर बाहरी भाषा को बढ़ावा और झारखण्डी भाषा को हासिये में धकेलने का काम कर रही है।
पूर्वी सिंहभूम में निम्नप्रकार से घंटी आधारित शिक्षक की बहाल करने की बहाल करने की समाचार सामने आ रही है।
हो-10
मुंडारी-03
भूमिज-17
सांताड़ी-76
क्षेत्रिय भाषा के नाम पर
बांग्ला-207
उड़िया-12
कुल-325
इस प्रकार जिले में अनुशंसित शिक्षक की संख्या से मूल झारखण्डी के साथ धोखा करने का प्रयास चल रहा है। कुम्हार, कामहार, नापीत, महतो, हाड़ी, घासी, डोम, चामर आदि इन मूलनिवासीयों को क्षेत्रीय भाषा के नाम पर बांग्ला ओड़िया शिक्षक अनुसंचित किया गया। लेकिन वास्तव में मूलनिवासी यह भाषा का प्रयोग नहीं करते है। कुम्हार, कामहार, नापीत, महतो, हाड़ी, घासी, डोम, चामर आदि इन मूलनिवासीयों को क्षेत्रीय भाषा के नाम पर बांग्ला ओड़िया शिक्षक अनुसंचित किया गया। लेकिन वास्तव में मूलनिवासी यह भाषा का प्रयोग नहीं करते है। बांग्ला लिपि और संस्कृति का दूर दूर तक रिश्ता नाता नहीं है। इस प्रकार हाड़ी, डोम, घासी आदि ओड़िशा भाषा से भी कोई वास्ता नहीं हैं। कहने का तातपर्य यह है कि झारखण्डीयों को गुमराह किया जा रहा है।
झारखण्ड हो पारगाना (कोल्हान) में मिनी बंगाल बनाने का साजिस चल रहा है। सांताड़ी जैसे 8वीं अनुसूची में शामिल भाषा को भी दरकिनार करलग लगभग 75 प्रतिशत मूल आबादी को धोखा देने का काम किया जा रहा है। झारखण्ड में सभी झारखण्डी भाषा का प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय तक पदों की सृजित कर उसमें नियुक्तियाँ करनी होगी तभी इसका विकास होगा नहीं तो विलुप्त हो जाएगी। कुम्हार, कामहार, नापीत, महतो, हाड़ी, घासी, डोम, चामर आदि इन मूलनिवासीयों को क्षेत्रीय भाषा के नाम पर बांग्ला ओड़िया शिक्षक अनुसंचित किया गया। लेकिन वास्तव में मूलनिवासी यह भाषा का प्रयोग नहीं करते है। बांग्ला लिपि और संस्कृति का दूर दूर तक रिश्ता नाता नहीं है।
इस प्रकार हाड़ी, डोम, घासी आदि ओड़िशा भाषा से भी कोई वास्ता नहीं हैं। कहने का तातपर्य यह है कि झारखण्डीयों को गुमराह किया जा रहा है। झारखण्ड हो पारगाना (कोल्हान) में मिनी बंगाल बनाने का साजिस चल रहा है। सांताड़ी जैसे 8वीं अनुसूची में शामिल भाषा को भी दरकिनार करलग लगभग 75 प्रतिशत मूल आबादी को धोखा देने का काम किया जा रहा है। झारखण्ड में सभी झारखण्डी भाषा का प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय तक पदों की सृजित कर उसमें नियुक्तियाँ करनी होगी तभी इसका विकास होगा नहीं तो विलुप्त हो जाएगी। मौके पर केंद्रीय प्रवक्ता रामचन्द्र सोरेन, मुख्य संरक्षक महेंद्र मुर्मू, जिला प्रभारी सुनील मार्डी, जिला अध्यक्ष रतन भगत,मुकेश कर्मकार, देवब्रत मानना, शिवशंकर पातर, प्रकाश मुखी, सोनू लोहार, फकीर हेम्ब्रम, भीम करवा, आदि उपस्थित थे।