फतेह लाइव, रिपोर्टर
झारखंड विधानसभा चुनाव में एग्जिट पोल के पूर्वानुमानों को धता बताते हुए झामुमो तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है. बता दें कि इस बार के झारखंड के चुनाव में आइएनडीआइए (इंडिया) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) गठबंधनों के बीच सीधी और जबर्दस्त टक्कर हुई। कांटे की इस टक्कर में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली ‘इंडिया’ गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया। इस चुनाव में इंडिया गठबंधन की ओर से सबसे ज्यादा झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) कुल 34 सीटें जीत कर सबसे आगे रही। वहीं, कांग्रेस ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 04 और कम्यूनिष्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्ससिस्ट-लेनिनिस्ट लिबरेशन) यानी सीपीआई (एमएलएल) ने 02 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफलता प्राप्त की. इस प्रकार देखा जाए तो इंडिया गठबंधन ने जबर्दस्त वापसी की है. दूसरी ओर एनडीए गठबंधन को झारखंड चुनाव में एक बार फिर भारी नुकसान उठाना पड़ा है. बता दें कि एनडीए गठबंधन के लिए सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 21 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू), जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और लोकतांत्रिक जनता पार्टी (लोजपा) रामविलास ने एक-एक सीटों पर जीत दर्ज करने में सफलता पाई है.
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हेमंत सोरेन ने राजनीतिक परिपक्वता दिखाई
इससे पहले एग्जिट पोल में राज्य में बीजेपी और उसकी अगुवाई वाले एनडीए को स्पष्ट तौर पर विजेता के रूप में दिखाया जा रहा था, लेकिन परिणाम बताते हैं कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन ने राज्य की जनता को अपने वादों और दावों के प्रति लुभाने में सफलता प्राप्त करते हुए बंपर जीत हासिल की. वहीं, दूसरी ओर बीजेपी अपनी सारी ताकत झोंकने के बाद भी आदिवासियों समेत राज्य की जनता को इंप्रैस नहीं कर पाई. बता दें कि भाजपा ने झारखंड में चुनावों से पहले ‘लव जिहाद’ तथा ‘लैंड जिहाद’ का मुद्दा बेहद जोर-शोर से उठाया था. गौरतलब है कि भाजपा की ओर से की गई हिंदू और मुस्लिम ध्रुवीकरण की कोशिश के बीच हेमंत सोरेन बिल्कुल शांत और उकसाने वाले बयानों से बचते दिखे. यह निश्चित रूप से हेमंत सोरेन की राजनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है. हालांकि, उनकी ही पार्टी के कुछ नेता और इंडिया गठबंधन के अन्य घटक दलों के कई नेता कई मौके पर लगातार हिंदू-मुसलमान करते अवश्य देखे और सुने गए। इस प्रकार, राज्य में पूरे चुनावी काल में हिंदू-मुसलमान के नाम पर विष-वमन होता रहा.
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पूरी तरह फेल हो गया भाजपा का दांव
इन सबके बीच भाजपा का एजेंडा झारखंड में पूरी तरह से फेल होता हुआ दिखाई दिया, जबकि भाजपा ने राज्य में चुनाव प्रचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह दोनों ने ही लाइव रैलियां कीं. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह से लेकर तमाम स्टार प्रचारकों ने कमान संभाल रखी थी. यहां तक कि असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा राज्य में दो महीने तक जमे रहे, जिन्होंने बांग्लादेश से ‘घुसपैठियों’ को आने देने के लिए सोरेन सरकार पर जोरदार हमले किए. गौरतलब है कि भाजपा ने अपनी रैलियों में झारखंड की ‘माटी, बेटी और रोटी’ का मुद्दा उठाया. इस मामले में भाजपा के नेताओं ने हेमंत सोरेन की सरकार पर आरोप लगाए कि राज्य में ‘माटी, बेटी और रोटी’ खतरे में हैं. यहां तक कि पार्टी की ओर से जेएमएम के विरूद्ध ट्रंप कार्ड के तौर पर चंपई सोरेन और सीता सोरेन को इस्तेमाल करने की कोशिश भी की गई, लेकिन भाजपा का यह दांव भी नहीं चला. इस प्रकार देखा जाए तो झारखंड में भाजपा का ‘माटी, बेटी और रोटी’ तथा ‘घुसपैठिया’ का मुद्दा उसकी अपेक्षा के अनुरूप नहीं चल पाया.
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पीड़ित कार्ड खेलना भी कारण
गौरतलब है कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने 31 जनवरी को 8.36 एकड़ जमीन के अवैध कब्जे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया था. इसे मुद्दा बनाकर भाजपा ने चुनाव के दौरान झामुमो नेता के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, किंतु यह हमला उस पर ही भारी पड़ गया. दरअसल, जब हेमंत सोरेन जेल में थे, तो उन्होंने अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को पीड़ित (विक्टिम) कार्ड खेलने के लिए प्रेरित किया, जिसके पश्चात् कल्पना राज्य की आदिवासी जनता के बीच जाकर उनसे अपने विरूद्ध भाजपा शासन द्वारा साजिशें किए जाने की बात बताती रहीं. दूसरी ओर भाजपा इस भ्रम में बैठी रही कि उसकी रणनीति राज्य के विधानसभा चुनाव में सफल हो जाएगी. ऊपर से महत्वपूर्ण चुनावों से ठीक पहले हेमंत सोरेन को जेल से बेल पर छोड़ा जाना भाजपा की सेहत के लिए और घातक हो गया. चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी ने जम कर पीड़ित कार्ड खेला और अंततः राज्य के आदिवासियों को बहलाने-फुसलाने में सफल हुए. यही कारण है कि झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में इस बार मतदान प्रतिशत रिकॉर्ड स्तर पर रहा. बता दें कि राज्य की 26 आरक्षित सीटों में से 21 सीटों पर जेएमएम प्रत्याशी विजयी हुए, जो यह दर्शाता है कि राज्य के आदिवासी मतदाताओं ने भाजपा को इस चुनाव में बुरी तरह से नकार दिया है.