- नीति आयोग के सदस्य पद्म भूषण डॉ. विजय कुमार सारस्वत ने “भारत के सामरिक भविष्य के लिए महत्वपूर्ण सामग्री” विषय पर दिया प्रभावशाली व्याख्यान
- एनएमएल की वैज्ञानिक क्षमता पर डॉ. सारस्वत का भरोसा, आत्मनिर्भर भारत की दिशा में शोध को बताया आधार
फतेह लाइव, रिपोर्टर
जमशेदपुर स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (सीएसआईआर-एनएमएल) अपने स्थापना के 75वें वर्ष, प्लेटिनम जुबली, को व्याख्यान श्रृंखला के माध्यम से भव्य रूप से मना रही है. इस क्रम में 2 जुलाई 2025 को आयोजित पांचवां प्लेटिनम जुबली व्याख्यान नीति आयोग के सदस्य और पद्म भूषण से सम्मानित वैज्ञानिक डॉ. विजय कुमार सारस्वत द्वारा दिया गया. कार्यक्रम की शुरुआत एनएमएल के निदेशक डॉ. संदीप घोष चौधरी के स्वागत भाषण से हुई. डॉ. सारस्वत ने एनएमएल की 75 वर्षों की उपलब्धियों के लिए संस्थान को बधाई दी और कहा कि यह प्रयोगशाला वैज्ञानिक नवाचार और रणनीतिक अनुसंधान की धरोहर रही है.
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नीति आयोग के सदस्य ने किया सीएसआईआर-एनएमएल का अभिनंदन
डॉ. सारस्वत ने अपने व्याख्यान में भारत की रणनीतिक और तकनीकी दिशा को तय करने में “महत्वपूर्ण सामग्रियों” की भूमिका को विस्तार से रेखांकित किया. उन्होंने बताया कि आधुनिक रक्षा, ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और पवन टरबाइन जैसे क्षेत्रों की प्रगति पूर्णतः इन सामग्रियों की उपलब्धता और गुणवत्ता पर निर्भर करती है. डॉ. सारस्वत ने इस अवसर पर भारत सरकार द्वारा पहचानी गई प्रमुख सामग्रियों की सूची साझा करते हुए उनकी वैश्विक आपूर्ति, खनन, शोधन, मांग और रणनीतिक जोखिमों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारत को आत्मनिर्भर बनने के लिए इन सामग्रियों की घरेलू आपूर्ति श्रृंखला विकसित करनी होगी. साथ ही, वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए नीति, निवेश और नवाचार को एकीकृत करना आवश्यक है.
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रणनीतिक धातुओं की वैश्विक मांग और भारत की चुनौतियों पर बोले डॉ. सारस्वत
डॉ. सारस्वत ने राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन 2025 की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत को स्थायी विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चक्राकार अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना चाहिए. उन्होंने सीएसआईआर-एनएमएल की भूमिका को इस दिशा में बेहद अहम बताया. उन्होंने बताया कि कैसे एनएमएल निम्न-श्रेणी के अयस्क प्रसंस्करण, द्वितीयक संसाधन मूल्यांकन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग से महत्वपूर्ण सामग्रियों के क्षेत्र में नए आयाम जोड़ सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत को तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए सामूहिक दृष्टिकोण अपनाना होगा. कार्यक्रम का समापन प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जिसमें छात्रों, वैज्ञानिकों और उद्योग प्रतिनिधियों ने भाग लेकर विषय की गहराई को और बढ़ाया.