आकर्षण का केंद्र बन रही हैं वन विभाग के अतिथि गृह में कलाकारों की पेंटिंग्स, नेशनल आर्ट कैंप का दूसरा दिन
फतेह लाइव, रिपोर्टर.
सुबह के दस बज रहे थे। वन विभाग के विश्राम गृह (पायल सिनेमा रोड, मानगो) के लॉन में अलग-अलग कृतियां आकार ले रही थीं। कहीं स्केच तैयार था तो कहीं रंग भरा जा रहा था। कहीं स्त्री-पुरुष के पेड़ की शाखा के नीचे बैठ कर प्रेमालाप का दृश्य था, तो कहीं मां भवानी की पेंटिंग को अंतिम रुप दिया जा रहा था। कुछ लोग कैनवास स्टैंड को दुरुस्त कर उस पर कैनवास रखने की तैयारी में थे तो कुछ लोग लाल चाय की चुस्कियों के बीच विषय तय कर रहे थे।

यह सब चार दिनों तक चलने वाले नेशनल आर्ट कैंप में आए हुए कलाकार हैं। ये यहां 9 नवंबर तक रहेंगे। कोई मोबाइल फोन देख कर विषय का चयन कर रहा है तो कोई गुमसुम होकर आसमान की तरफ ताक रहा है। कोई कैनवास पर फटाफट रंगों का चयन कर रहा है तो कोई रंगों की क्वालिटी को लेकर नाखुश है।

शहर की जानी-मानी चित्रकार मुक्ता गुप्ता की संस्था ‘अन्विति’ की तरफ से यह राष्ट्रीय स्तर का आयोजन हो रहा है। कलाकारों की कला देखते ही बनती है। सुबह के वक्त सभी रेडी होकर अपने-अपने कैनवास के सामने हैं। दो कैनवासों के बीच 10 फीट से ज्यादा की दूरी है। ये जब अपने काम से ब्रेक लेते हैं तो आपस में गुफ्तगू करते हैं। 25 कलाकारों की जुटान है। प्रायः लोग एक-दूसरे को जानते हैं। घर-परिवार के बारे में बातचीत करते हैं। जो पहली बार जमशेदपुर आए हैं, वो आयोजक के आतिथ्य की सराहना करते नहीं थकते। कई को 9 के पहले जाना है। कई 9 तक रहेंगे।

यहां जुटे कलाकारों को कोई थीम नहीं दी गई है। कुछ स्वर्गीय रतन टाटा का स्केच बना रहे हैं तो कोई मां भवानी की पेंटिंग बना कर खुद में प्रसन्न है। यहां झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और न जाने कहां-कहां के कलाकार आए हुए हैं।
रांची से आए कलाकार दीपांकर कर्मकार की पेंटिंग ध्यान खींचती है। उनका कांसेप्ट सबसे जुदा है। उनकी तस्वीर में दिख रहा है कि इंसान को विकास तो चाहिए पर विनाश की कीमत पर। वह पेड़ पर पंखा लगा रहा है और उसी पेड़ की एक शाखा पर बैठ कर लैपटॉप भी चला रहा है। दीपांकर की इस कलाकृति में गहरा आक्षेप हैःबुद्धजीवियों पर। उन्होंने अपनी पेंटिंग में यही बताने का प्रयास किया है कि इंसान नेचर को बर्बाद करने की कीमत पर भी विकास चाहता है।
अब जमशेदपुर में ये कलाकार आए हुए हैं तो रतन टाटा को कैसे भूल सकते हैं। रतन टाटा की तस्वीर बनाने वाले कलाकार डॉ. मल्लिकार्जुन बागोड़ी कलबुर्गी (कर्नाटक) के रहने वाले हैं। जब यह जमशेदपुर के लिए चले थे, तभी इन्होंने तय कर लिया था कि वह अपनी पेंटिग में दिखाएंगे कि रतन टाटा कैसे थे और शहर को लेकर उनका कांसेप्ट कैसा था। इन्होंने सिर्फ रतन टाटा की ही तस्वीर नहीं बनाई है बल्कि जमशेदपुर शहर को भी अपनी पेंटिंग में स्थान दिया है।
कोई कलाकार खाली नहीं। सभी अपनी-अपनी पेंटिंग्स में लगे हुए हैं। भोपाल से आए आर. अखिलेश हों या फिर रांची के रामानुज शेखर। अपने शहर जमशेदपुर के जॉयदेव चटर्जी हों या फिर बिप्लब रॉय, अशोक कुमार मइती, कृष्णा महतो, या फिर बोकारो से पधारे रणजीत कुमार। यहां असम से पधारे कौशलश कुमार भी व्यस्त हैं और जमशेदपुर के पब्लिक विश्वास। बिहार की वीरभूमि बक्सर के नरेंद्र कुमार भी व्यस्त हैं तो कोलकाता से पधारे संजय मजूमदार भी व्यवस्त हैं। इनकी कलाकृतियों को देखना हो तो आपको सुबह 11 से शाम के पांच बजे तक वन विभाग के अतिथि गृह में जरूर जाना चाहिए। देखने के लिए बहुत कुछ है, समझने के लिए भी।


