फतेह लाइव, रिपोर्टर.
झारखंड के जमशेदपुर शहर की लेखिका दिवंगत कुमारी छाया की जीवन यात्रा अब एक किताब “वक्त के पार” के रूप में आपके सामने है. मृत्यु के सन्नाटे में शब्दों की ज्योति जलाने वाली कुमारी छाया की अधूरी किताब जो स्मृतियों साथ पूर्ण हुई. कभी-कभी एक व्यक्तित्व अपने जीवनकाल से परे भी जीता है – विचारों में, शब्दों में और यादों की उस अदृश्य रेखा में जो दिलों को जोड़ती है. यह किताब उसी रेखा की खोज है.
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पुस्तक का प्रकाशन नोशन प्रेस ने किया है. यह पुस्तक ऑनलाइन सेलिंग प्लेटफार्म अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है. यह केवल एक लेखिका और शिक्षिका के रूप में उनके योगदान का दस्तावेज़ नहीं है, बल्कि उस स्त्री की अदम्य साहस और संघर्ष की कहानी है, जिसने कैंसर जैसे भयंकर रोग से लड़ते हुए भी साहित्य और शिक्षा के माध्यम से जीवन को नया अर्थ दिया. यह किताब उनकी मृत्यु के बाद, उनके अंतिम दिनों की रचनात्मक यात्रा को समर्पित है.
पुस्तक में कुमारी छाया के व्यक्तित्व की परतों को उकेरा गया है, जिसमें उनके लेखन, शिक्षण, और व्यक्तिगत संघर्ष को संवेदनशील तरीके से दर्शाया गया है. वह स्त्री, जो आखिरी समय तक भी कहती रही “जिंदगी अभी बाकी है”, उसकी आवाज़ और शब्दों की गूंज अब इस किताब में अमर हो गई है. यह पुस्तक उनके अधूरे स्वप्नों, अधूरी किताबों, और उनके द्वारा दी गई शिक्षा का प्रतीक बनकर पाठकों के दिलों तक पहुंचेगी.
“वक्त के पार” न केवल कुमारी छाया की श्रद्धांजलि है, बल्कि यह एक गहरी संवाद की शुरुआत भी ह—उन सभी से जो जीवन के संघर्षों से गुजर रहे हैं और उम्मीद की रौशनी की तलाश में हैं. यह किताब उन पाठकों को जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए प्रेरित करती है, जो मृत्यु के पार भी अपने प्रियजनों की यादों को संजोते हैं. पुस्तक कुमारी छाया की पहली पुण्यतिथि 17 मई को रिलीज हुई.
कुमारी छाया की किताबें—‘एक प्याली चाय’, ‘मेरी उम्मीद की ओर, ‘जिंदगी अभी बाकी है’और ‘चाय सा हमसफर’ आज भी हमें जीवन के संघर्ष और आशा की राह दिखाती हैं, लेकिन, ‘वक्त के पार’ पुस्तक में, हम उन शब्दों से और गहरे जुड़ते हैं जो उन्होंने अंतिम समय में लिखे थे. ‘वक्त के पार’ केवल एक पुस्तक नहीं है, यह एक संवाद है—उन सभी से जो उम्मीद की रौशनी की तलाश में हैं. आप भी इस यात्रा का हिस्सा बनिए और कुमारी छाया के शब्दों में जीवन की गहरी समझ को महसूस कीजिए.