(लेखक: मुकेश मित्तल राष्ट्रवादी चिंतक एवं सामाजिक विचारक)
अमेरिकी आंतरिक राजस्व सेवा (IRS) ने अपनी आउटबाउंड मनी ट्रांसफर नियमावलियों (Remittance Services Agreement) में बड़ा परिवर्तन करते हुए अमेरिका से भारत भेजी जाने वाली सभी राशि पर 3.5% कर लगाने की घोषणा की है। इसके तहत केवल भारत नहीं, बल्कि किसी भी विदेशी गंतव्य को भेजी जाने वाली रकम पर ये कर प्रभावी होगा, जिससे अनुमानित 8,000 करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक राजस्व अर्जित होने की उम्मीद है।
भारत दुनिया में सबसे बड़ा रेमिटेंस रिसीवर देश है। वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत को विदेशों से 111 बिलियन अमेरिकी डॉलर की रेमिटेंस प्राप्त हुई थी। इनमें से सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है, जहाँ 45 लाख से अधिक प्रवासी भारतीय रहते हैं। इन परिवारों की आर्थिक निर्भरता अक्सर भारत में बुजुर्ग माता-पिता, शिक्षा या निवेश के लिए भेजी जाने वाली रेमिटेंस पर निर्भर करता है।
कर की मुख्य विशेषताएं 
1. कर दर: सभी आउटबाउंड मनी ट्रांसफर पर 3.5% दर से शुल्क लगेगा।
2. लागू होने की तिथि: यह नीति 1 जुलाई 2025 से प्रभावी होगी।
3. प्रभावित राशि: अमेरिका से भारत को भेजी जाने वाली हर धनराशि पर यह कर स्वतः काट लिया जाएगा।
4. उद्देश्य : IRS के अनुसार, इसका उद्देश्य कर चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग की संभावनाओं को रोकना तथा सरकारी राजस्व में वृद्धि करना है।
वित्तीय प्रभाव 
यदि कोई एनआरआई अमेरिकी डॉलर में 1 करोड़ रुपये (लगभग 1,20,000 डॉलर) अपने परिवार को भारत भेजना चाहता है, तो उसे 3.5% यानी करीब 4,200 डॉलर (लगभग 3.5 लाख रुपये) अतिरिक्त कर के रूप में देना होगा। अनुमान है कि भारत के लिए अमेरिकी रेमिटेंस से ही हर वर्ष लगभग 8,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त संग्रह होगा। “आज हमारे प्रवासी बहन-भाइयों के लिए यह बड़ी चुनौतियाँ खड़ी कर देगा। सिर्फ भावनात्मक संबंधों को कर की परिधि में लाकर यह एक प्रकार से ‘प्यार पर कर लगाया जाना’ जैसा है।”
 “प्यार पर कर” की बहस
इस कदम को कई विशेषज्ञ ‘मन की मजबूरी पर टैक्स’ या “टैक्स ऑन लव इन डॉलर” भी कह रहे हैं, क्योंकि अमेरिका को इन पारिवारिक रेमिटेंस से न तो कोई प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ होता है और न ही ये कोई निवेश धनराशि है।
• मध्यमवर्गीय परिवारों पर असर: अमेरिका में कार्यरत प्रवासी भारतीय मध्यमवर्गीय अक्सर अपनी बचत का एक बड़ा हिस्सा माता-पिता और परिवार के लिए भेजते हैं। इस कर से उनकी बचत कम हो जाएगी और परिवार को मिलने वाली सहायता प्रभावित होगी।
• छात्रों और हाउसिंग लोन: अमरीका पढ़ने जाने वाले कई भारतीय छात्र अपनी फीस और खर्चों के लिए भारत से धन अमरीका ट्रांसफर करते हैं। किंतु गृहऋण या निवेश के लिए वापस अपने देश भारत में धन भेजते हैं, तो इन पर भी 3.5% कटौती की दर से भार बढ़ेगा।
 अंतरराष्ट्रीय पक्ष 
इस प्रकार का कर न केवल अमेरिका, बल्कि अन्य देशों में रहने वाले भारतीयों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है।
• विकासशील देशों की प्रतिस्पर्धा: भारत छोड़कर फिलीपींस, मेक्सिको, बांग्लादेश जैसे कई देशों को भी बड़ी मात्रा में रेमिटेंस मिलती है। यदि अमेरिका ने यह नीति अपनाई, तो दूसरे देशों पर भी इसी तरह का असर पड़ सकता है।
• वैश्विक कराधान पर सवाल: क्या देश अब माइग्रेशन और रेमिटेंस को राजस्व स्रोत मानते हुए ‘वैश्विक व्यक्तिगत संपत्ति फ्लो (flow)” पर टैक्स की राह पर चलेंगे?
भारत सरकार की संभावित प्रतिक्रिया  भारत सरकार ने अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है, लेकिन
•  भारत-यूएस आर्थिक संबंधों के तहत एक संयुक्त समूह बनाए जाने की संभावना है, जो इस नए नियम के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का आकलन करेगा।
•  भारत सरकार तेजी से डिजिटल रेमिटेंस प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा दे सकती है, ताकि बिचौलियों पर निर्भरता कम हो और पारदर्शिता बने।
प्रवासी भारतीयों के विकल्प
• डिजिटल वॉलेट और फिनटेक:
कंपनियाँ जैसे Wise, Remitly, PayPal आदि पहले से ही कम शुल्क पर तेज आंतरिक लेनदेन की सुविधा देती हैं, लेकिन नए नियम के बाद इन कंपनियों को भी कर के दायरे में रगड़ा जा सकता है।
• बैंकिंग चैनल के जरिए निवेश:
अमेरिका में बैंकिंग चैनलों से डायरेक्ट निवेश विकल्प जैसे NRE/NRO खातों के जरिए निवेश पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
• परिवार से समन्वय:
भारत में प्राप्तकर्ताओं के नामांकन को वैकल्पिक खातों में विभाजित करना, जिससे एक बार में बड़ी राशि न जाए और कर प्रभार संचालित राशि को कम किया जा सके।
 सारांश 
अमेरिका द्वारा रेमिटेंस पर 3.5% कर लगाने का निर्णय प्रवासी भारतीयों के परिवारिक और आर्थिक संबंधों को गहराई से प्रभावित करेगा। जहाँ एक ओर यह कदम अमेरिकी राजस्व में इजाफा करेगा, वहीं दूसरी ओर भारतीय मध्यमवर्गीय परिवारों, छात्रों, बुजुर्ग माता-पिता व निवेशकों के लिए चिंता का विषय बनेगा। इस नीति ने वैश्विक माइग्रेशन प्रिंसिपल धन के प्रवाह पर कराधान की नई बहस छिड़वा दी है। क्या व्यक्तिगत रिश्तों और पारिवारिक समर्थन को भी राजस्व के रूप में देखा जाएगा? आने वाले महीनों में दोनों सरकारों की बातचीत और प्रवासी समुदाय के विकल्प तय करेंगे कि “प्यार पर कर” की इस नई अवधारणा का वास्तव में कौन सामना करेगा।
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