• सिदो-कान्हू, फूलो-झानो को याद कर जल, जंगल, जमीन की रक्षा का संकल्प

फतेह लाइव, रिपोर्टर

सिंदरी के आरएमके फोर कॉलोनी स्थित बिरसा समिति परिसर में 30 जून को हूल दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया. यह कार्यक्रम ज्ञान विज्ञान समिति और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) के संयुक्त तत्वावधान में संपन्न हुआ. कार्यक्रम की अध्यक्षता एडवा की जिला अध्यक्ष रानी मिश्रा ने की जबकि संचालन ज्ञान विज्ञान समिति के जिला सचिव भोला नाथ राम ने किया. संगोष्ठी के मुख्य वक्ता भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. काशीनाथ चटर्जी ने कहा कि 1855-56 में दामिन-ए-कोह (वर्तमान संथाल परगना) में हुआ हूल आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्यवाद, जमींदारी प्रथा और महाजनी शोषण के खिलाफ संथाल आदिवासियों का एक ऐतिहासिक प्रतिरोध था. इसका नेतृत्व सिद्धो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो ने किया था.

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हूल आंदोलन ने तय की थी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि

डॉ. चटर्जी ने आगे कहा कि यह आंदोलन सिर्फ आदिवासी समुदाय का नहीं, बल्कि उस दौर के समस्त गरीबों और किसानों का संगठित विद्रोह था. इस हूल ने अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी को बुरी तरह हिला दिया. जब शोषकों की मदद के लिए अंग्रेजों की बंदूकधारी सेना आई, तो लगभग 60 हजार संथाल विद्रोहियों ने अपने पारंपरिक हथियारों के साथ उनका डटकर मुकाबला किया और उन्हें खदेड़ दिया. किसान सभा के वरिष्ठ नेता संतोष महतो ने बताया कि महान चिंतक कार्ल मार्क्स ने इस हूल को भारत का पहला जन विद्रोह बताया था. इस आंदोलन में 10 हजार से अधिक लोग शहीद हुए, जिनमें सिद्धो-कान्हू प्रमुख थे. यह विद्रोह स्वतंत्रता संग्राम की नींव बना.

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छोटानागपुर और संथालपरगना काश्तकारी कानून हूल आंदोलन की ही देन

कार्यक्रम में वक्ताओं ने यह भी कहा कि संथाल हूल और बिरसा मुंडा के उलगुलान जैसे संघर्षों की बदौलत ही छोटानागपुर और संथालपरगना काश्तकारी कानून अस्तित्व में आए, जो आज आदिवासियों की जमीन की सुरक्षा का एक मजबूत कवच हैं. ज्ञान विज्ञान समिति के सक्रिय कार्यकर्ता विकास कुमार ठाकुर ने कहा कि वर्तमान समय में कॉरपोरेट पूंजीपतियों की मदद से सरकारें इन कानूनों को कमजोर कर रही हैं. संविधान की पांचवीं अनुसूची और ग्रामसभाओं के अधिकारों को भी निष्क्रिय किया जा रहा है. ऐसे में झारखंड और देश के आदिवासी समुदायों को संथाल हूल की गौरवशाली विरासत को याद करते हुए जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष को और तेज करना होगा.

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कॉरपोरेट गठजोड़ और संसाधनों की लूट के खिलाफ जनसंघर्ष की जरूरत

कार्यक्रम में कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे. ज्ञान विज्ञान समिति के राज्य उपाध्यक्ष हेमंत कुमार जयसवाल, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रवि सिंह, एडवा जिला अध्यक्ष उपासी महताइन, मिठू दास, सविता देवी, रंजू प्रसाद, ठेका मजदूर यूनियन के महासचिव गौतम प्रसाद और सचिव सूर्य कुमार सिंह ने कहा कि आज हूल आंदोलन के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है. मधुमिता मिस्त्री, राजू बाउरी, डॉ. हेडलाल टुडू, सुबल चंद्र दास, जितेंद्र शर्मा, सागर मंडल, और अन्य कई वक्ताओं ने भी जल-जंगल-जमीन के अधिकारों की रक्षा पर बल दिया. कार्यक्रम को सफल बनाने में मधेश्वर नाथ भगत, नरेंद्र नाथ दास, शिबू राय, प्रमोद सिंहा, शिवेंद्र पांडे और ज्योति राय की सराहनीय भूमिका रही.

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