- पूर्व मुख्यमंत्री को मिला आदिवासी समाज के धर्मगुरुओं का समर्थन, हजारों की भीड़ ने उठाए दोनों हाथ
- राजनगर में हजारों की सभा में गूंजा आदिवासी अस्मिता का स्वर
फतेह लाइव, रिपोर्टर






































राजनगर (सरायकेला-खरसावाँ) में आयोजित एक विशाल कार्यक्रम में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन ने धर्मांतरण और बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला. अमर शहीद सिदो-कान्हू की जयंती के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत देश परगना और मांझी परगनाओं द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुई. इसके बाद मंच से आदिवासी धर्मगुरुओं ने धर्मांतरण को समाज के लिए घातक करार देते हुए इसे रोकने की पुरजोर अपील की. चम्पाई सोरेन ने कहा कि आदिवासियों के अस्तित्व की रक्षा के लिए उनके पूर्वजों ने जो लड़ाई लड़ी, अब उसी भावना से समाज को फिर से एकजुट होना होगा.
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आदिवासी धर्मगुरुओं ने धर्मांतरण को बताया अस्मिता के लिए खतरा
अपने भावुक संबोधन में चम्पाई सोरेन ने कहा कि 1967 में तत्कालीन सांसद कार्तिक उरांव ने संसद में डीलिस्टिंग बिल पेश किया था, जिसमें धर्मांतरण कर चुके लोगों को आरक्षण से बाहर रखने का प्रावधान था. लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया. उन्होंने कहा कि 1951 की जनगणना तक आदिवासी धर्म कोड था, जिसे 1961 में कांग्रेस सरकार ने हटा दिया. यह आदिवासी समाज के साथ ऐतिहासिक अन्याय था. उन्होंने कहा कि जो लोग आदिवासी परंपरा और जीवनशैली को छोड़ चुके हैं, उन्हें आदिवासी आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए.
चम्पाई सोरेन बोले – डीलिस्टिंग बिल था अस्मिता की रक्षा का उपाय
चम्पाई सोरेन ने संथाल परगना के साहिबगंज, पाकुड़ और सरायकेला-खरसावाँ के उदाहरण देते हुए कहा कि इन इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठिये आदिवासियों की जमीन और अस्मिता पर हमला कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि साहिबगंज में कई जिला पार्षद और मुखिया आदिवासी सीट से चुनाव जीतने के बाद भी उनके पति मुस्लिम हैं, जिससे समाज की पहचान को खतरा है. उन्होंने कहा कि हमारे पूजा स्थलों – जाहेरस्थान, देशाउली और सरना स्थल – पर भविष्य में कौन पूजा करेगा अगर धर्मांतरण इसी तरह चलता रहा? उन्होंने चेतावनी दी कि आने वाले समय में वे 10 लाख आदिवासियों के साथ संथाल परगना की धरती से इस मुद्दे को दिल्ली तक पहुंचाएंगे.