आनंद सिंह की कलम से.
गोरखपुर के सांसद रविकिशन इन दिनों चर्चा में हैं. चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि लोकसभा में उन्होंने सवाल पूछा और इस बात पर दुख जाहिर किया कि गोरखपुर समेत देश भर में समोसे का साइज एक जैसा क्यों नहीं है! उनका यह सवाल वायरल हुआ. उनका वीडियो आपके मोबाइल पर भी तैर रहा होगा. बुद्धिजीवी वर्ग में इस बात पर चर्चा हो रही है कि रविकिशन ने पूछा भी तो क्या पूछा? क्या संसद में समोसे पर सवाल पूछने का कोई औचित्य है या फिर एक बड़े गंभीर मुद्दे को उन्होंने बेहद हल्का बना दिया?
दरअसल, वह हर वक्त ‘हर हर महादेव’ और ‘ॐ नमः पार्वती पतये हर हर महादेव’ कहते रहते हैं. उनकी आस्था अपनी जगह है, सांसदी अपनी जगह. उनके अधिकांश वीडियो में आप इस मंत्र का उच्चारण अवश्य सुनेंगे. इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन आप जनता की समस्या को दूर करने के लिए भी तो कुछ जतन करेंगे या यूं ही बाबा का नाम लेते रहेंगे, हर हर महादेव करते रहेंगे?
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार सिंह कहते हैं कि रविकिशन हों या राहुल गांधी, दोनों में एक समानता है. दोनों पढ़े-लिखे हैं लेकिन दोनों किसी भी भारी-भरकम मुद्दे को अपनी प्रस्तुति से बेहद असरहीन कर देते हैं. रविकिशन ने जैसे समोसा का मुद्दा उठाया तो वह उसकी साइज पर ही जाकर अटक गये. समोसा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, लाभदायक है, एसिडिटी बढ़ाने वाला है या इसको खाने से चर्बी पर क्या असर पड़ता है, इसमें प्रयुक्त होने वाले तेल की गुणवत्ता कैसे होती है. इन तथ्यों पर शोध करके आम जनमानस से जुड़ा अगर वह कोई सवाल उठाते तो जनता में एक अच्छा मैसेज जाता, एक गंभीरता रहती.
वह तो सीधे उसके साइज पर चले गये. उनके घर में ही जो रोटी बनती होगी, पराठा बनता होगा, पूड़ी या भटूरे बनते होंगे, वो उनकी पड़ोसी के घर में बनने वाले रोटी, पराठे, पूड़ी और भटूरे से भिन्न होती होगी. तो यह हर आदमी के ऊपर निर्भर करता है कि उसे किस साइज की कौन सी सामग्री खानी है. रही बात समोसे की तो मैं भी पूर्वांचली हूं. कहीं एक साइज का समोसा नहीं बनता क्योंकि समोसे का साइज बाजार के उपभोक्ता तय करते हैं. उसके साइज पर सवाल खड़ा करके एक बड़े मुद्दे को बेहद छोटा बना दिया रविकिशन ने क्योंकि उस पर शोध नहीं किया गया.
गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार और अधिवक्ता रत्नाकर सिंह कहते हैं-गोरखपुर के सांसद श्री रवि किशन शुक्ला द्वारा संसद के जीरो ऑवर के महत्वपूर्ण और बहुमूल्य समय पर दाल-तड़का और समोसे की साइज पर प्रश्न करने से गोरखपुर के लोग बहुत ज्यादा अचंभित नहीं है क्योंकि संसद सदस्य के दो सत्रों में भी रवि किशन जी अपनी एक गंभीर छवि नहीं बना पाए हैं. शायद यही कारण है कि हर मंच पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी माहौल को हल्का करने के लिए उनके साथ हास्य की छेड़खानी किया करते हैं. उनकी इसी छवि के आगे उनके द्वारा किए गए कुछ अच्छे काम भी चर्चा का सबब नहीं बन पाते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार और केमिकल इंजीनियर आशुतोष मिश्रा बताते हैं-इस सिक्के के दो पहलू हैं. पहले पहलू में आप मान सकते हैं कि संसद देश के गंभीर मुद्दों जैसे बेरोज़गारी, महंगाई, कृषि संकट, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि पर गहन चर्चा का सर्वोच्च मंच है. ऐसे में गोरखपुर के सांसद रवि किशन का “समोसे के आकार” पर सवाल उठाना, भले ही स्थानीय संस्कृति या उपभोक्ता अधिकार के संदर्भ में हो, लेकिन यह प्राथमिकता सूची में अत्यंत गौण विषय प्रतीत होता है. जनता अपने जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा करती है कि वे समय और संसदीय मंच का उपयोग राष्ट्रहित के ज्वलंत प्रश्नों के समाधान हेतु करें. ऐसे प्रश्न संसद की गरिमा और गंभीरता को कमज़ोर कर सकते हैं.
दूसरा दृष्टिकोण यह है कि सांसद रवि किशन द्वारा “समोसे के आकार” का मुद्दा उठाना, उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा और आमजन के दैनिक जीवन से जुड़े सूक्ष्म किंतु सार्थक विषयों को संसद के उच्च मंच पर स्थान देने का एक प्रतीकात्मक प्रयास माना जा सकता है. यह संकेत देता है कि जनप्रतिनिधि केवल व्यापक नीतिगत या जटिल मसलों तक सीमित न रहकर, आम नागरिक की रोज़मर्रा की जरूरतों और अपेक्षाओं के प्रति भी सजग हैं. ऐसे प्रश्न, यद्यपि बेहद साधारण प्रतीत होते हैं, किंतु उचित मूल्य के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण वस्तु उपलब्ध कराने की अनिवार्यता और बाजार में पारदर्शिता की महत्ता को प्रभावी रूप से रेखांकित करते हैं.
अधिकांश अभिमत यही कहते हैं कि संसद में आम जन से जुड़े मुद्दों को ही उठाना चाहिए ताकि उसका असर आम जनता, जिसकी संख्या इस देश में 140 करोड़ से ज्यादा की हो चली है, पड़े. समोसे का मुद्दा निश्चित तौर पर कम महत्व का नहीं पर जब आप सिर्फ उसके साइज पर चले जाएंगे तो प्रदीप जी के शब्दों में “महत्वपूर्ण होकर भी कम महत्व” का मुद्दा बन जाएगा.