घाटशिला के झामुमो प्रत्याशी रामदास सोरेन से “फतेह लाइव “की खास मुलाकात
“”हर झारखंडी जानता है कि चंपाई ने दिशोम गुरू के साथ दगा किया
अपमान हुआ होता तो सीएम बनने के बाद मंत्री की शपथ नहीं लेते
देख लीजिएगा, घाटशिला में जन बल के आगे धन बल की हार होगी
घाटशिला की जनता शांतिप्रिय, रायफल-बंदूक को स्वीकार नहीं करेगी
कोल्हान में अब कोई भाजपाई परिवारवाद की माला नहीं जप रहा””
चरणजीत सिंह.


झारखंड के जल संसाधन मंत्री सह घाटशिला से इंडिया गठबंधन के तहत झामुमो उम्मीदवार रामदास सोरेन ने कहा कि चंपाई सोरेन पहले शेर होते थे। अब गीदड़ है। गीदड़ का बेटा कभी शेर नहीं हो सकता। हां, बेटा की जीत के लिए चंपाई सोरेन जिस तरीके से घाटशिला की दौड़ लगा रहे हैं, उससे संभव है कि सरायकेला में उनकी बुरी तरीके से हार हो जाय। सरायकेला की जनता भी उनसे बेहद नाराज है, यह सबको पता है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा के शीर्ष नेता घूम-घूम कर बोल रहे हैं कि झामुमो में चंपाई सोरेन का अपमान हुआ।

बताइए कि कैसे अपमान हुआ। जितनी बार सरकार बनी, उतनी बार उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। सबसे अनुभवहीन होने पर भी बाबूलाल सोरेन को केंद्रीय महासचिव का पद दिया गया। हेमंत सोरेन को केंद्र सरकार ने जबरन जेल भेजा, तो इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को समझा बुझाकर चंपाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया गया। इंडिया गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों के कहने पर ही हेमंत सोरेन को दोबारा मुख्यमंत्री पद संभालना पड़ा। अगर अपमान हुआ होता तो मुख्यमंत्री बनने के बाद चंपाई सोरेन कतई कैबिनेट मंत्री के पद की शपथ नहीं लेते।

कैबिनेट मंत्री बनने के बाद याद आया कि अपमान हुआ है। रामदास सोरेन के मुताबिक चंपाई सोरेन के झामुमो छोड़ने और अपमान होने का अनर्गल आरोप लगाने के पीछे दो वजह है। उम्र 70 साल होने को है। पुत्र मोह पर दिशोम गुरू के साथ उन्होंने दगा किया, झामुमो को छोड़ दिया। दस साल से भाजपा के शीर्ष नेता परिवारवाद की रट लगाए हुए हैं। यहां पिता और पुत्र को टिकट थमा दिया। यह भी संभव है कि ईडी और सीबीआई के भय से चंपाई सोरेन भाजपा में चले गए हो। कोल्हान प्रमंडल में कोई भाजपाई परिवारवाद की माला नहीं जप रहा है।

घोड़ाबांधा आवास पर फतेह लाइव से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्होंने कहा कि झारखंड में हमेशा जन बल के आगे धन बल की हार हुई है। इस बार भी होगी। घाटशिला की जनता अमन पसंद है। शांतिप्रिय हैं, तभी पर्यटकों का खूब आगमन होता है। रायफल और बंदूक दिखाने वाले को घाटशिला की जनता ने न पहले स्वीकार किया है, न आगे स्वीकार करेगी। उन्होंने कहा कि घाटशिला, मुसाबनी, धालभूमगढ़, मऊभंडार, कासिदा, जादूगोड़ा, माटीगोड़ा तक किसी भी दुकानदार, व्यापारी या संवेदक से बात कीजिए, हर कोई सशंकित है, भीतर से भयभीत हैं। कुछ तो वजह होगी ना। यहां एचसीएल, आईसीसी की खदानें हैं। कई विशेषज्ञ ऐसे हैं जो देश के दूसरे हिस्से से आकर काम कर रहे हैं। आतंकित किया जाएगा तो छोड़ कर भाग जाएंगे। दुष्प्रभाव होगा कि यहां के लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार मारा जाएगा, फिर खदानें बंद हो जाएंगी। फिर कालोनियां उदास होंगी, बाजार सूने हो जाएंगे। वे सिर्फ इतना कह सकते हैं कि रामदास सोरेन के जिंदा रहते कोई उनका अहित नहीं कर सकता। झारखंड के कठिन बैटल फील्ड के योद्धा रामदास सोरेन से फतेह लाइव के साक्षात्कार के मुख्य अंश-(नीचे पढ़ें)

फतेह लाइव – घाटशिला से दूसरी बार विधायक बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती क्या रही है?
विधायक – विधानसभा चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद कोरोना फैल गया था। कोरोना में क्या होगा, कुछ भी अंदाजा नहीं था। रोजगार के लिए घाटशिला से बाहर गए लोग वापस आने लगे थे। उनके सामने भोजन का संकट था। चार हजार से अधिक लोगों को विधायक निधि से सीधे राशि दी गई। कुल 25 लाख। जगह जगह पर भोजन का प्रबंध कराया गया। रहने का इंतजाम हुआ। घाटशिला में इलाज का इंतजाम किया गया। टीएमएच लाने की व्यवस्था की गई। सच बताएं तो उस वक्त क्या किया गया, सब बता नहीं सकते। एक-एक इंसान को जिंदा रखना यही सबसे बड़ा काम था। बस भगवान राह दिखाता गया और वे काम करते गए।
फतेह लाइव – घाटशिला में स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यवस्था तो बहुत खराब थी। आखिर कैसे कोरोना काल में काम किया गया?
विधायक – एचसीएल और आईसीसी जब फायदे में थे तो घाटशिला की स्वास्थ्य सुविधाएं उतनी खराब नहीं थी। हां, कंपनी की हालत खराब हुई तो स्वास्थ्य सुविधाएं भी प्रभावित होती गई। कोरोना काल में महसूस हुआ कि घाटशिला अनुमंडल अस्पताल में आईसीयू को और बेहतर करना होगा। विधायक निधि से आईसीयू बेड समेत और उपकरण दिए गए। जमशेदपुर से ब्लड ले जाना पड़ता था। वहां ब्लड को संरक्षित रखने का इंतजाम किया गया। अब स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से बहुत बेहतर है।
फतेह लाइव – लोकसभा चुनाव के दौरान पुल के लिए धालभूमगढ़ के एक हिस्से में वोट बहिष्कार हुआ था। इस बार भी ऐसा होगा क्या?
विधायक – धालभूमगढ़ प्रखंड में सुवर्णरेखा नदी के पंपू घाट पर पुल निर्माण की पुरानी मांग रही है। कोरोना के कारण दो साल तक कई काम नहीं हो सके थे। कोरोना खत्म हुआ तो पुल निर्माण की दिशा में प्रयास किया गया। मिट्टी जांच कराई गई। पुल स्वीकृत हो गया। टेंडर निकल गया। 14 करोड़ की लागत से पुल बनाने की दिशा में काम बढ़ चुका है। जहां 40 किमी का सफर करना पड़ता है, वह दूरी सिर्फ 10 किमी में तय हो जाएगी।
फतेह लाइव – घाटशिला रेलवे स्टेशन एवं रेलवे ओवरब्रिज एवं अंडरब्रिज बनाने का श्रेय भाजपाई ले रहे हैं?
विधायक – रेलवे की ऐसी योजना अकेले केंद्र सरकार नहीं करती। इसमें आधी रकम केंद्र देता है तो आधी राज्य सरकार। राज्य सरकार के पथ निर्माण विभाग की भी बड़ी भूमिका होती है। घाटशिला के कासिदा एवं गालूडीह में रेलवे क्रासिंग पर अंडरब्रिज बनाने के लिए कितनी बार पथ निर्माण विभाग में जाना पड़ा है, बता नहीं सकते।
फतेह लाइव – घाटशिला विधानसभा क्षेत्र में ऐसा गांव है जहां डीसी अपनी कार से नहीं जा सके थे। आखिर ऐसा क्यों?
विधायक – हां, यह सच है कि मुसाबनी प्रखंड में पहाड़ की चोटी पर बसे सूर्याबेड़ा गांव तक तत्कालीन उपायुक्त सूरज कुमार खुद की कार से नहीं जा सके थे। सूर्याबेड़ा के कुछ ग्रामीणों ने संपर्क किया था। वे लोग दावा कर रहे थे कि उनके गांव में गाड़ी से नहीं पहुंच सकते। विधायक प्रतिनिधि को भेजा तो सच पता चला। उस गांव तक जाने को रास्ता नहीं था। मोटरसाइकिल से भी जाना मुश्किल था। इसके बाद तत्कालीन उपायुक्त सूरज कुमार से बात की। अनुरोध किया कि वहां जनता दरबार लगाए ताकि पहाड़ों पर बसे गांवों के लोगों की तकलीफ को सुना और समझा जाय। डीसी को बाइक से गांव तक लेकर गए थे। जनता दरबार लगा। सिर्फ सूर्याबेड़ा नहीं अपितु पहाड़ियों पर बसे गांवों के लोगों की मूलभूत समस्याओं का निराकरण हुआ। पीसीसी रोड बनाया गया। बिजली आई। चापाकल गाड़े गए। वहां काम हुआ तो सचमुच संतोष महसूस हुआ।
फतेह लाइव – घाटशिला में बेरोजगारी के मसले पर क्या काम किया गया?
विधायक – पहली बार विधायक बना था तो मऊभंडार से मुसाबनी तक कालोनियों में उदासी का आलम था। जिधर जाइए उधर लोगों के चेहरे बुझे दिखते थे। जिससे भी मदद मिल सकती थी, उसके पास गया था। अभी की बात करे तो सुरदा माइंस के लीज अवधि विस्तार के लिए झारखंड सरकार से लीज बंदोबस्त कराया गया। दो साल लगातार मेहनत की गई। लीज एरिया का भी विस्तार हुआ है। एचसीएल और ईसीसी में रोजगार का सृजन किया गया। राखाकापर की केंदाडीह माइंस का भी अवधि विस्तार किया गया। अब उत्पादन भी जल्द शुरू होगा।
फतेह लाइव – घाटशिला पर्यटन स्थल है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ऐसा क्या किया गया जिसका दूरगामी प्रभाव होगा?
विधायक – घाटशिला में 12 पर्यटन स्थल है जो झारखंड की पर्यटन स्थल सूची में दर्ज हैं। प्रति वर्ष सभी पर्यटन स्थलों पर कुछ न कुछ काम जरूर कराया जाता रहा है। बुरूडीह डैम प्रमुख स्थल है। उसके आगे धारागिरी जल प्रपात है। पथ निर्माण विभाग से घाटशिला शहर से बंगाल सीमा के नजदीक तक चौड़ी सड़क बनाई जा रही है। इसका दूरगामी लाभ होगा। बुरूडीह डैम के लिए 63 करोड़ की योजना ली गई है। बुरूडीह डैम में रेस्टोरेंट, हास्टल, 42 कमरे का गेस्टहाउस बनाया जाएगा। और भी बहुत कुछ होगा। योजना स्वीकृत हो चुकी है। विधानसभा चुनाव के बाद काम शुरू होगा। सिर्फ इतना ही नहीं, पूरे घाटशिला विधानसभा क्षेत्र के गांवों में सांस्कृतिक केंद्र खोले गए हैं। लोगों को वाद्य यंत्र दिए गए हैं। गांवों में जाएंगे तो उसे भी एक पर्यटन स्थल की तरह पाएंगे। एक और अहम बात। सुरदा क्रासिंग के दिशोम जाहेरथान को ऐसा बनाया जा रहा है कि लोग देखते रह जाएंगे। वहां पूजा पाठ भी होगा। पार्क भी बनाया जाएगा। लोगों के चिंतन मंथन के लिए भी निर्माण कार्य चल रहा है। जल्द सब दिखेगा।
फतेह लाइव – झारखंड का अर्थ है जंगल का खंड। प्रदेश के नाम के अनुरूप कोई काम हुआ है?
विधायक – घाटशिला शहर के नजदीक 18 करोड़ की लागत से जैविक उद्यान तैयार किया जा रहा है। वहां हवन वन बनाया जाएगा। ऐसे पौधे लगाए जाएंगे जो लुप्त हो रहे हैं। ऐसे पौधे भी लगाने की योजना है जो पहले यहां नहीं होते थे। जैविक उद्यान ऐसा होगा जहां पर्यावरण के विद्यार्थी शोध कर सकेंगे।
फतेह लाइव – घाटशिला में जनजातीय विश्वविद्यालय कब अस्तित्व में आएगा?
विधायक – झारखंड सरकार ने तय किया था कि प्रदेश में एक जनजातीय विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी। संतालपरगना में खुलता या कोल्हान प्रमंडल में। बहुत मेहनत कर पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय को घाटशिला में खोलने की स्वीकृति दिलाई। गालूडीह के हेंदलजुड़ी में जमीन का चयन हो चुका है। इसमें जनजातीय संस्कृति, परंपरा, रहन सहन समेत कई विषयों पर शोध कार्य हो सकेंगे। पीएचडी भी किया जा सकेगा। जल्द वाइस चांसलर का चयन हो जाएगा। इसके बाद काम में तेजी आएगी। 2025 में जनजातीय विश्वविद्यालय जमीन पर दिखने लगेगा।
फतेह लाइव – आप घाटशिला में शिक्षा जगत का हब बनाने की बात करते रहे हैं। इसके लिए क्या किया गया?
विधायक – घाटशिला वास्तव में शिक्षा हब बनने के लिए बेहद उपयुक्त स्थान है। घाटशिला कालेज में बीबीए, बीसीए, बीएड समेत क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई इसी शैक्षणिक सत्र से शुरू हो जाएगी। मुसाबनी में भी डिग्री कालेज स्वीकृत हो चुका है। इसमें 30 करोड़ से अधिक खर्च होंगे। मुसाबनी प्रखंड में राजकीय अभियंत्रण महाविद्यालय की स्थापना के लिए भी मंत्रिपरिषद से सैद्धांतिक स्वीकृति हो चुकी है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत भी इस दिशा में काम किए जा रहे हैं। घाटशिला में सोना देवी विश्वविद्यालय खुलवाने में सहयोग किया। वहां व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। निजी विश्वविद्यालय खुलने से कुछ लोगों को रोजगार मिला है। वहां जो विद्यार्थी पढ़ाई करेंगे, उन्हें भी रोजगार मिलेगा।
फतेह लाइव – ऐसा क्या काम किए जिससे आत्मिक खुशी मिली है?
विधायक – बाघुड़िया की मेधावी आदिवासी किशोरी जर्मनी में पढ़ने का मौका मिला। वो आर्थिक तौर पर कमजोर परिवार से है। जानकारी मिली तो उस बच्ची को जर्मनी भेजने की ठानी। खुद भी खर्च उठाया। टाटा स्टील से भी सहयोग दिलाया। वो किशोरी घाटशिला की शान है। (नीचे भी पढ़ें)

झारखंड आंदोलन से राजनीति में आए थे रामदास
रामदास सोरेन। घोड़ाबांधा के ग्राम प्रधान। अविभाजित बिहार में दिशोम गुरू शिबू सोरेन के आह्वान पर साधारण परिवार के रामदास सोरेन झारखंड आंदोलन में कूद पड़े थे। न बहुत अच्छे वक्ता थे न आकर्षक व्यक्तित्व। साधारण अंदाज। हां, एक बात सब मानते थे और मानते हैं कि रामदास सोरेन जिसे अपना मानते हैं, उसके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। झारखंड आंदोलन के जमाने में वे न ज्यादा कानून जानते थे न राजनीति। बस इतना मालूम था कि रेल चक्का जाम या आर्थिक नाकेबंदी का आह्वान हो चुका है तो कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहना होगा चाहे जेल जाना पड़े या जान चली जाय।

केस मुकदमे शुरू हुए। जेल यात्रा भी होती रही। रामदास सोरेन के लिए अलग झारखंड ही बस सपना था। अलग राज्य बना तो उनके साथी राजनीति में आगे निकलते गए। रामदास घोड़ाबांधा के ग्राम प्रधान बनकर खुश थे। झामुमो के संगठन के कामकाज में जरूर वो दिलचस्पी दिखाते थे। संगठन के कामकाज से घाटशिला जाते थे तो वहां के गांवों के लोग अक्सर उन पर चुनाव लड़ने का दबाव बनाते रहे। आखिरकार वो वक्त आ गया। पहली बार रामदास सोरेन को जन दबाव में निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। नतीजा आया तो हर कोई भौचक। लगातार तीन बार विधायक रहे प्रदीप बलमुचू भीतर से हिल गए।

2009 में रामदास सोरेन पहली बार घाटशिला के विधायक चुने गए। उस वक्त अधिकतर खदानें बंद थी या उनमें उत्पादन नहीं के बराबर हो रहा था। यदि कहीं काम हो रहा था तो संवेदक के जरिए। घाटशिला, कासिदा, मुसाबनी…जिधर जाओ उधर उदासी का आलम। घाटशिला रेलवे स्टेशन के बाहर निकलने पर सड़कें गवाही देती थी कि कभी पर्यटकों का स्वर्ग कहा जाने वाला घाटशिला बदरंग हो चुका है। राष्ट्रीय उच्च पथ 33 की ऐसी हालत थी कि भारी वाहनों के बड़े चक्के तक गड्ढों को पार नहीं कर पाते थे। ग्रामीण इलाकों में तब जबरदस्त माओवाद था। सुवर्णरेखा परियोजना का काम तभी होता था जब माओवादी हरी झंडी दिखाते थे।
रामदास सोरेन के असल चुनौती यह थी कि आखिर घाटशिला के लोगों के चेहरे पर मुस्कान लाने की शुरूआत कहां से की जाय। कम बोलने और ज्यादा सुनने वाले रामदास सोरेन ने सबसे पहले शहर से गांव के लोगों को भरोसे में लेना शुरू किया। उन्हें यकीन दिलाया कि एकजुट होकर दलगत राजनीति से परे हटकर प्रयास किया जाय तो बदलाव संभव है। धीरे धीरे घाटशिला के लोगों के चेहरे पर खुशहाली आती गई। इसे बड़ा बदलाव ही कहा जाएगा कि जिस बाघुड़िया में माओवादियों ने झामुमो सांसद सुनील महतो की हत्या की थी, उसी बाघुड़िया की किशोरी को पढ़ने के लिए जर्मनी से आमंत्रण मिला। आदिवासी बाला के परिवार के पास पैसे नहीं थे। रामदास सोरेन ने उस किशोरी को पढ़ने के लिए जर्मनी भेजने में सफलता पाई। घोड़ाबांधा में रामदास सोरेन के कार्यालय में जाएंगे तो इस किशोरी के जर्मनी जाने की समाचार पत्र की खबर दीवार पर पाएंगे। उसे फ्रेम कर लगाया गया है। वे बाघुड़िया में मौत के तांडव के बाद शिक्षा की अलख की यात्रा को याद करते हैं तो उन्हें बेहद सुकून मिलता है।
खैर, इस बार विधानसभा चुनाव में उन्हें कभी बेहद अजीज रहे चंपाई सोरेन के पुत्र बाबूलाल सोरेन से मुकाबला करना पड़ रहा है। रामदास सोरेन को भली भांति पता है कि बाबूलाल सोरेन तो महज चेहरा है। उनका असल मुकाबला चंपाई सोरेन हैं। चंपाई सोरेन सरायकेला से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। मगर, उनका ज्यादा वक्त घाटशिला में गुजर रहा हैं। झामुमो के चुनाव लड़ने के सारे दांव पेंच से वे अच्छी तरह वाकिफ भी है। चंपाई सोरेन ने जब भाजपा का झंडा उठाया था तभी रामदास सोरेन जान गए थे कि पूरे झारखंड में घाटशिला भी एक ऐसी सीट है जहां भाजपा अपनी पूरी ताकत लगाएगी और चंपाई सोरेन भी। घाटशिला में मुकाबला भी खूब हो रहा है।