जेएन टाटा को स्टील कारखाना लगाने का विचार क्याें आया, आज इस दूसरी कड़ी में पढ़े ये रिपोर्ट…


फतेह लाइव, रिपोर्टर.
टाटा स्टील 117 साल की हो चली है. 26 अगस्त 1907 में सर दोराबजी टाटा के नेतृत्व में स्थापित टाटा स्टील कारखाना की स्थापना का सपना इसके संस्थापक जेएन टाटा ने वर्ष 1880-82 में ही देख लिया था. भारत के एक सफल कपड़ा मील के मालिक जेएन टाटा को स्टील कारखाना लगाने की प्रेरणा कैसे और कहां से मिली? यह भी एक रोमांचक कहानी है. किसी व्यक्ति की बात आपको कितना प्रभावित कर सकती है कि आप दुनिया बदल देने का संकल्प ले लेते है. ऐसा कारनामा और प्रयास विरले लोग ही करते हैं. इसी में से एक थे जेएन टाटा. जेएन टाटा जब युवा (22 से 25 वर्ष आयु रही होगी) थे, तो उन्होंने मानचेस्टर में एक प्रसिद्ध विद्वान दार्शनिक, साहित्यकार थॉमस कार्लाइन का व्याख्यान सुना था. घंटों चले इस व्याख्यान की एक लाइन जेएन टाटा के दिल में उतर गई. वह बात थी जिसमें कार्लाइन ने कहा था कि जिस राष्ट्र के पास स्टील है, उसी के पास सोना होगा. एक वाक्य जमशेतजी को इतनी गहराई तक प्रभावित किया, कि वे अपने अलग अलग व्यवसाय में लगे होने के बाद भी इसे याद रखे थे और 43 वर्ष की उम्र में उन्हें यह बात उन्हें स्टील कारखाना लगाने की ओर प्रेरित किया और वे इससे संकल्पित होकर निकल पड़े अपनी यात्रा में. असंभव जैसी यह यात्रा को संभव कर पाने के लिए ही शायद ईश्वर ने जेएन टाटा को भेजा था.
यह भी इत्तफाक है कि जिस वर्ष 1839 में जेएन टाटा का जन्म हुआ, उसी वर्ष एक महान विद्वान जेएम हीथ ने कहा था, किसी भी दूसरी खोज की तुलना में मानवीय सभ्यता से जुड़ी कलाओं और उत्पादन उद्योग को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली खोज को लेकर भारत के दावे पर किसी भी तरह का कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है. यह बात लोहे की खोज से ही संबंधित थी. भारत में हजारों वर्षों से लौह भंडारों का पता लगाया जाता रहा था. पश्चिम भारत के पंचगनी की तलहटी पर स्थित वई नामक स्थान में लौह चून के भारी भंडार मिले थे.
सपना जो इस कारण से बना ठोस संकल्प
1882 में जब जमशेतजी टाटा ने स्टील कारखाना लगाने का विचार किया, तो उस वक्त पूरे विश्व का कुल स्टील उत्पादन महज 42 लाख टन था. आज अकेला टाटा स्टील ही इससे ज्यादा उत्पादन कर देता है. उस दौर में भी इस्पात का सबसे बड़ा उपभोक्ता भारतीय रेलवे था. इसके बाद पुल और समुद्री जहाजों के निर्माण में भी स्टील की खपत सबसे ज्यादा थी.
1889 में पेरिस के मशहूर एफल टावर का उदघाटन हुआ. इसके निमार्ण में इस्पताल की सबसे अधिक उपयोगिता ने विश्व के सामने इसके सबसे अधिक खपत को सामने लाया. जमशेतजी की नजरों में इस्पात वह प्रवेशद्वार था जिसके माध्यम से भारत को एक औद्योगिक क्रांति के दौर में प्रवेश करना था. (आरएम लाला की किताब टाटा स्टील का रोमांच से) वॉन श्वार्ज की 1882 में रिपोर्ट पढ़ने के बाद जमशेतजी को अहसास हुआ कि भारत में इस्पात उद्योग की स्थापना का समय आ गया है.
कई खोज और आधार रख चुके जेएन टाटा अब कारखाना लगाने की तैयारी कर चुके थे इसी बीच एक बुरी खबर आई कि जर्मनी में उनका निधन हो गया. 19 मई 1904 को जेएन टाटा दुनिया छोड़ कर चले गये. लेकिन वह कारखाना लगाने की इतनी ठोस आधार रख चुके थे कि उनकी अगली पीढ़ी पर उस पर अमल करना था. जेएन टाटा के सबसे बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा ने पिता के सपनों और उनके संकल्प को पूरा करने का न केवल बीड़ा उठाया बल्कि टाटा स्टील की स्थापना से भारत में उद्योग क्रांति की नींव रख डाली.
पीएन बोस की एक चिट्ठी ने न केवल बल प्रदान किया, बल्कि कालीमाटी सोना होने का मार्ग प्रशस्त किया
टाटा स्टील की स्थापना के साथ ही देश में औद्योगिक क्रांति की नींव रखी गई थी. टाटा स्टील देश की पहली स्टील उत्पादन कंपनी है जिसकी स्थापना वर्ष 1907 में हुई. स्थापना के पहले भू-वैज्ञानिक पीएन बोस ने सर दोराबजी टाटा को 24 फरवरी 1904 को एक पत्र भेजा था. 24 फरवरी को उस भेजे गए पत्र के 108 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस पत्र के कारण ही देश में औद्योगिक क्रांति की शुरूआत हुई थी.
ऐसे बदल गया मार्ग
स्थापना से पहले जेएन टाटा को पर्याप्त व अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चा माल जैसे आयरन ओर व कोयले की आवश्यकता थी. इसकी खोज के लिए जेएन टाटा ने इंगलैंड की विभिन्न पत्रिकाओं में विज्ञापन दिए. साथ ही घोषणा की कि जो भी कोक साथ आयरन ओर को गलाने की विधि विकसित करेगा, उन्हें इनाम दिया जाएगा. हालांकि इसके कुछ उत्साहनजक परिणाम नहीं मिले. जबकि जेएन टाटा को प्लांट शुरू करने से पहले खनिज के साथ-साथ तकनीक की भी आवश्यकता थी. हालांकि प्रारंभिक जांच में मध्य प्रांत के चंदा जिले के लोहरा में लौह अयस्क व कोयला के पर्याप्त भंडार होने की सूचना मिली थी ताकि स्टील कंपनी का निर्माण किया जा सके. लेकिन दुर्भाग्यवश कोयले की गुणवत्ता अपर्याप्त रही.
दूसरी साइट की मिली जानकारी, लेकिन छाेड़ना पड़ा
जेएन टाटा के बेटे सर दोराबजी टाटा स्टील प्लांट लगाने के लिए आयरन ओर व कोयले का भंडार पता लगाने के लिए विशेषज्ञों से मिल रहे थे. इसी क्रम में वे नागपुर सचिवालय में आयुक्त से मिलने पहुंचे. लेकिन आयुक्त कुछ समय के लिए उपलब्ध नहीं थे तो सर दोराबजी टाटा सचिवालय के रोड़ के दूसरी तरफ एक संग्रहालय चले गए. जहां एक रंगीन भूवैज्ञानिक मानचित्र से वे आकर्षित हुए. इस मानचित्र में दर्शाया गया था कि दल्ली-राजहरा में लौह अयस्क का भंडार है और उसकी गुणवत्ता भी अच्छी है लेकिन कोयले व पानी वहां उपलब्ध नहीं था. ऐसे में सर दोराबजी टाटा को दल्ली-राजहरा को भी छोड़ना पड़ा.
पीएन बोस ने भेजा पत्र, दी भंडार की जानकारी
24 फरवरी 1904 को भारतीय भूवैज्ञानिक पीएन उर्फ प्रमथ नाथ बोस ने सर दोराबजी टाटा को एक पत्र भेजा. जिसमें उन्होंने मयूरभंज राज्य में अच्छी गुणवत्ता वाले लौह अयस्क व झरिया में कोयले की उपलब्धता की जानकारी दी. साथ ही छोटानगापुर के सिंहभूम में दो नदियों के संगम, यानि स्वर्णरेखा व खरकई नदी के बारे में बताया जहां से पानी की उपलब्धता संभव थी. इस पत्र के मिलने के बाद सर दोराबजी टाटा ने साकची नाम एक छोटे से गांव में स्टील प्लांट की स्थापना की जिसे अब जमशेदपुर के नाम से जाना जाता है.