26 तक शहर में चलाएंगे गुरबाणी का प्रवाह, फिर सिलीगुड़ी की भरेंगे उड़ान, 15 की शाम तारकंपनी गुरुद्वारा में कार्यक्रम
फतेह लाइव, रिपोर्टर.
जमशेदपुर में वर्षों से लौहनगरी की संगत को नाम बाणी से जोड़ते आ रहे भाई निर्मल सिंह खालसा “पटियाला वाले” का शहर आगमन हो चुका है. वे गुरुवार को जालियांवाला बाग ट्रेन से टाटानगर पहुंचे. इस दौरान टेल्को और तारकंपनी के सिख परिवारों ने उन्हें रिसीव किया. इनमें सतविंदर सिंह, प्रधान नौजवान सभा भी शामिल रहे.
इधर, शनिवार को उन्होंने रिफ्यूजी कॉलनी गुरुद्वारा के सिख संगत को दर्शन दिए. यहां संगत को नाम बाणी से जोड़ा. श्री गुरुग्रंथ साहेब में दर्ज गुरबाणी लाहे को तूँ ढीला ढीला, सोते को बेग ढाया. सत वखर तूँ किने नाहीं, पापी बाधा रे नायां …शब्द की महत्ता पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि जिस अमृत वेला में, उठकर नाम बाणी का नितनेम करना चाहिए, जो अंत समय में साथ जाएगी, लेकिन हम ये नहीं कर वैसी चीज के पीछे दिन भाग दौड़ करते हैं जो हमारे साथ कभी नहीं जाएगी. गुरबाणी के उपदेश सुनकर संगत निहाल हुई. उन्होंने संगत को गुरु घर से जुड़ने के लिए प्रेरित किया. इसके बाद टेल्को में एक गुरु प्रेमी के घर सुखमणि साहेब के पाठ भी किये गए. रविवार 15 सितंबर की शाम 6.30 से 8.00 बजे तक तारकंपनी गुरुद्वारा में उनका कार्यक्रम तय है. संगत से अपील है कि वह पहुंचकर गुरु घर की खुशियां प्राप्त करें
मालूम हो कि भाई निर्मल सिंह लौहनगरी में आकर संगत के घर घर जाकर गुरबाणी का प्रवाह चला रहे हैं और गुरबाणी की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं. अपने दौरे में 26 सितंबर तक जमशेदपुर में रहेंगे. इसके बाद कोलकाता से सिलीगुड़ी के लिए रवाना हो जायेंगे. इक्छुक संगत गुरवाणी कराने के लिए उनसे संपर्क कर सकती है. उन्होंने बताया कि हर साल शहर आने पर अमृत की पहुल भी तैयार की जाती है. इस बार भी संगत अपना नाम दर्ज करा सकते हैं, तांकी उसकी तैयारी की जा सके.
अब तक 50 हजार लोगों को करा चुके हैं अमृत संचार
बकौल भाई निर्मल सिंह खालसा जी बताते हैं कि गुरबाणी का प्रचार करने के लिए उन्होंने 1996 में सेना की नौकरी छोड़ दी. तब से अब तक देश विदेश में वह 45 हजार से अधिक प्राणियों को गुरु वाले बना चुके हैं. वह निष्काम सेवा करते आ रहे हैं. उन्होंने बाणी का हवाला देते हुए कहा कि “आप जपो अवरा नाम जपावो”. उन्होंने कहा कि इसी वचनों के साथ दो मिशन पर लगातार निष्काम सेवा करते आ रहे हैं कि बाणी दूसरों को भी पढ़ाएं. उन्होंने फिर कहा कि “वाहो वाहो बाणी निरंकार है”. जब हम अपने मां और बाप को नहीं बेच सकते, तो फिर बाणी को कैसे बेच सकते हैं. यह उनका एक तंज था आज, के रागियों और प्रचारकों पर. उन्होंने कहा कि आज के रागी कीर्तिनिये दो से तीन लाख लेकर हवाई यात्रा करके आते हैं. उन्होंने साफ कहा कि बाणी बेचने की चीज नहीं है. भाई निर्मल सिंह ने कहा कि वह संगत को नशा त्यागने और नाम जपने के लिए गुरु उपदेशों के अनुसार प्रेरित करते हैं. संगत को बताया जाता है कि सरबत दा भला करो और अपनी किरत कमाई का दशवंद जरूर निकालें.