निशिकांत ठाकुर.

सच में, अब ऐसा लगने लगा है कि बिहार में जो बाहुबली है उसके लिए कोई रोकटोक नहीं है और वह जब चाहे जहां चाहे किसी की हत्या कर सकते है , करवा सकते हैं. पिछले दिनों जिन दुर्दांत अपराधियों ने सरेशाम राज्य की राजधानी पटना में उद्योगपति गोपाल खेमका की हत्या को अंजाम दिया. इसका दूरगामी परिणाम निश्चित रूप से आज नहीं कल सामने आएगा ही. हत्या के बाद अपराधियों को पकड़ लेना या इनकाउंटर में मार देना यह एक अलग बात है, लेकिन घटना घटी क्यों, हत्या को अंजाम किस तरह से दिया गया, यह भी जांच का मुद्दा होना चाहिए.

सभी इस बात के सख्त विरोधी होते हैं कि किसी भी राज्य का राज्य से बाहर दुष्प्रचार नहीं किया जाना चाहिए , लेकिन आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से कोई बच नहीं सकता और वह राज्य से लेकर केंद्र सरकार के भी कानों को खड़े करता है. घटना के बाद उसकी जांच करना और गुनहगारों को सामने लाना तो एक अस्त्र है, लेकिन घटना घटे ही नहीं, यही पुलिस– प्रशासन का तो काम होना चाहिए.

लेकिन , क्या ऐसा हो रहा है ? या प्रशासन इतना ढुलमुल हो गया है कि इन घटनाओं की जानकारी ही नहीं होती और हत्याएं हो जाती है, हत्यारे हत्या करके आसानी से भाग निकलते में सफल हो जाते हैं. जांच और सावधानी तो इस पर बरती जानी चाहिए. आज ऐसा नहीं हो रहा , लेकिन क्या आज पुलिस या प्रशासन का इकबाल इतना कमजोर और गैर महत्वपूर्ण हो गया है कि अपराधी जब कभी चाहे अपराध करके प्रशासन को चुनौती दे दे ? उनकी सूचनाओं के तंत्र इतने कमजोर हैं कि उनके खुफिया तंत्र उन्हे जानकारी देने से कतराते हैं. खुफिया तंत्र निष्प्रभावित और अकर्मण्य हो गई है ? बिहार के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जातीय नफरत के जहरीले धुएं ने सारे वातावरण को काला कर दिया है. हिंसा की भावना, जो शायद पश्चिम की मनोवृत्ति में छिपी पड़ी थी अब आखिरकार बाहर आ गई है और बिहार में छा गई है.

पुलिस समाज का रक्षक और सरकार का प्रतिनिधित्व करती है, पर आज अब देश का हर व्यक्ति ऐसी क्रूर हत्याओं को उदाहरण मानकर डरा हुआ है. वैसे इस तरह की घटना तो कमजोर प्रशासनिक व्यवस्था के कारण देश के कोने –कोने में होती रहती है, लेकिन इस तरह के अपराध यही दर्शाता है कि दहशतगर्दी का खौफ बिहार में बढ़ता जा रहा है. दूसरी घटना उसी राजधानी पटना में पिछले दिनों हुई –जब इलाज के लिए अस्पताल में अहले सुबह घुसकर एक सजायाफ़्ता अपराधी को दो दर्जन से अधिक गोलियां मारकर मौत के घाट उतार दिया और फिर वे अपराधी गिरोह अपने हथियारों को लहराते हुए अस्पताल से बाहर चलें गए.

यहां प्रश्न है कि वे हत्यारे निजी अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था को भेदकर वहां पहुंचे कैसे ? वैसे पुलिस हत्यारे तक पहुंच गई है और अब मुकदमा चलेगा तथा अपराधियों को न्यायालय द्वारा दंडित किया जाएगा. लेकिन, भारतीय न्यायपालिक न्याय के मामले कुछ धीमी है, इसलिए पता नहीं कितने वर्षों बाद इस पर फैसला आए तथा उन्हें सजा दी जाए. हो सकता है कि इन घटनाओं को जनता भूल जाए, समाज भूल जाए. अथवा अपराधी, पुलिस की कमजोर तफ्तीश में कोई झोल छोड़ जाए और हत्यारे बरी कर दिए जाएं.

जब बात चली है तो दूर तक जाएगी , जब देश के अन्य राज्यों और व्यवसायियों तक पहुंचेगी तो फिर बिहार में उद्योग –धंधा करने कौन आएगा ? यही तो दुर्भाग्य इस राज्य का अभी तक रहा है कि हर उद्योगपतियों से सरकारी टैक्स के बाद गुंडागर्दी टैक्स भी वसूला जाता है. पर, साथ ही उद्योगपति गोपाल खेमका की तरह कौन किस तरफ से कब आकर सरेआम गोलियों से छलनी कर दे. इस कमजोर प्रशासनिक व्यवस्था में यह कोई नहीं जानता. अब गोपाल खेमका की पिछली जिंदगी पर जाएंगे तो पाएंगे कि इन्हों दहशतगर्दों ने कुछ वर्ष पहले उनके बेटे को गोलियों से भूना था , अब उनकी हत्या उनके घर बाहर कर दी गई.

यह कैसा प्रशासन , यह कैसी पुलिस व्यवस्था जो निर्भीक होकर धीरे धीरे एक परिवार का कत्लेआम करता रहे. घटनाएं छिनौती , डकैती तो हर राज्य में होती रहती है, लेकिन जिस तरह के हालत यहां बना दिए गए हैं कि कोई उद्योग लगाने की बात सोच भी कैसे सकता है, कौन परिवार सहित अपनी जान को जोखिम में डालना चाहेगा. बिहार में हो रहे इन हत्याओं के बारे में जानने के प्रयास किया गया तो आज की तारीख में सबका यही मानना था कि इस प्रकार के वारदात को अभी इसलिए अंजाम दिया जा रहा है क्योंकि अगले कुछ दिनों में विधान सभा का चुनाव होने ,जा रहा है. परिणाम स्पष्ट है कि चाहे कुछ भी हो सरकार उन्हीं के दल की बनेगी. एक अन्य राज्य से आए उद्योगपति ने कहा हमारी कंपनी ने यह तय कर लिया था बिहार के युवाओं के रोजगार के लिए कुछ किया जाए, लेकिन इस तरह की खबरों के कारण उन्होंने अपना इरादा बदल दिया.

अब किसी अन्य राज्य में अपने प्रोजेक्ट को लॉन्च करने का मन बना लिया. इसी तरह जैसे–जैसे बात फैलती जाएगी वैसे– वैसे उद्योगपतियों का बिहार में उद्योग लगाने के प्रति मन खट्टा और भयभीत हो जाएगा वे अपने उद्योग को बिहार से अन्यत्र स्थानांतरित कर देंगे.

फिर बिहार के युवाओं का क्या होगा जो आज देश के शहर–शहर में रोजगार पाने के प्रयास में भटकते रहते हैं. राज्य के भूतपूर्व उद्योगमंत्री ने कहा था कि केंद्र सरकार के निर्देश हैं कि अब सरकार किसी भी राज्य में सरकारी उद्योग लगाने के पक्ष में नहीं है. हां, यदि राज्य का कोई उद्योगपति अपने राज्य के लिए कुछ करना चाहें तो उसके लिए वह स्वतंत्र हैं, लेकिन किसी उद्योगपति के लिए क्या यह संभव है कि बिना सरकार के सहयोग वह कहीं भी उद्योग लगा ले ? यदि आप बिहार में रहते हैं तो एक बार देश के अन्य शहरों में जाकर देखें कि आपके उन भाई बंधुओं को किस स्थिति का सामना करना पड़ता है.

हम भले ही यह दावा कर लें कि यदि बिहार के लोग वहां नहीं होंगे तो उस राज्य का उद्योग धंधा या खेती कौन करेगा — उद्योग धंधे ठप्प हो जाएंगे. सच तो यह है कि यह आत्मसंतुष्टि की बात है, लेकिन यदि यही उद्योग बिहार में लगे होते तो बाहरी राज्यों में ऐसे लोगों को जो अपमान समय– समय पर झेलना पड़ता है, ऐसी स्थिति तो नहीं आती. दरअसल, हमारे राजनीतिज्ञ नहीं चाहते कि हर किसी के घर अपने यहां की रोटी बने, अपने यहां की शिक्षा बेहतर हो , यदि ऐसा होगा तो फिर वे नेता कैसे बनेंगे. इतनी बुरी स्थिति बिहार की मात्र इसलिए कर दी गई है कि वे नेतागिरी करते रहें उनके बच्चे विदेशों में शिक्षा प्राप्त कर सके और वहीं अच्छी नौकरी या व्यवसाय कर सकें. ऐसे राजनीतिज्ञ काबिल हैं और हम आप पर शासन करना जानते हैं. इसलिए सतर्क रहिए और शिक्षित के हाथों में राज्य के बागडोर को सौंपिए वही हमारा आपका कुछ न कुछ भला करेंगे. आप भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दीजिए ताकि वह आगे चलकर मज़दूरी करने के लिए अपमानित किए जाने वाले राज्यों में जाकर जीविकोपार्जन न कर सके.

सरकारी नौकरी आज सबको मिल जाए यह किसी भी राज्य के लिए संभव नहीं है. इसलिए उद्योगपतियों को अपने राज्य में उद्योग लगाने के लिए उन्हें पानी, बिजली, सड़क, सुरक्षा, टेक्स देने की सुविधा देनी होगी. यदि ऐसा नहीं करेंगे तो फिर वहीं प्रश्न उठता है कि आपके राज्य में क्यों और किसके लिए उद्योग लगाएंगे. देश के जो राज्य विकास की बुलंदियों पर हैं उनके कई कारणों में एक कारण वहां सरकारों द्वारा, वहां के जागरूक समाज द्वारा औद्योगिक क्रांति को अपनाने के कारण, संपन्न और विकसित हो सका है. इस तरह की योजना की नींव सरकार में ऊपर बैठे राजनीतिज्ञ, वरिष्ट अधिकारी, जिनको देश– विदेश घूमने और उस योजना को अपने यहां लाने के लिए आमंत्रित करना है. यदि पंजाब , महाराष्ट्र , गुजरात, हरियाणा जाएंगे तो सभी के पास अपने रोजगार है या किसी न किसी उद्योग से जुड़े हुए हैं. इसलिए उनकी रोजी तो लगी हुईं है और उनका और कैसे विकास हो इसलिए सदैव सोचते रहते हैं.

उनका लक्ष्य सदैव अपने विकास और बच्चों की शिक्षा पर रहती है , इसलिए वे विकसित और दुनियादारी पर नजर रखते है और अपने विकास की मानसिकता को जगाकर कर रखते है. हम असत्य आचरण करके अपनी समृद्धि चाहते हैं, ईर्ष्या में अपने को जलाते रहते है जिसके कारण चाही हुई चीज नहीं मिलती और हम अपना नाश करते रहते हैं.

(लेखक वरिष्ट पत्रकार और स्तंभकार हैं)

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