लेखक: मुकेश मित्तल. अध्यक्ष, पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन एवं पूर्व उपाध्यक्ष, सिंहभूम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
अमेरिका द्वारा भारत के निर्यात पर 50% तक का टैरिफ लगाने के फैसले ने द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में तनाव की नई लहर पैदा कर दी है। यह निर्णय मुख्य रूप से भारत के रूस से कच्चे तेल एवं रक्षा खरीद जारी रखने के विरोध में लिया गया है। भारतीय सरकार ने इसे “अनुचित, एकतरफा और अंतरराष्ट्रीय व्यापार मानकों के विपरीत” करार देते हुए कूटनीतिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर कड़ा जवाब तैयार करना शुरू कर दिया है।
7 अगस्त 2025 से प्रभावी इस नए टैरिफ के तहत, अमेरिका ने भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्रों—कपड़ा, आभूषण, चमड़ा, समुद्री उत्पाद और कुछ इंजीनियरिंग वस्तुओं—पर शुल्क बढ़ा दिया है। इसका सीधा असर भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मकता पर पड़ेगा। अनुमान है कि लगभग 80 बिलियन डॉलर मूल्य का निर्यात अमेरिकी बाजार में महंगा हो जाएगा।
• गहना एवं हीरा उद्योग: सूरत और मुंबई के निर्यातकों ने चेतावनी दी है कि निर्यात ऑर्डर्स में 40% तक की गिरावट संभव है, जिससे हजारों नौकरियों पर संकट आ सकता है।
• कपड़ा उद्योग: प्रमुख निर्यात कंपनियों का कहना है कि यह निर्णय उनके लिए “व्यापार प्रतिबंध” जैसा है, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित करेगा।
• कुल आर्थिक प्रभाव: भले ही निर्यात-GDP अनुपात कम होने के कारण भारत की समग्र विकास दर पर तात्कालिक प्रभाव सीमित हो, लेकिन रोजगार और विशेष क्षेत्रों में नुकसान गंभीर हो सकता है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह मामला केवल व्यापारिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय संप्रभुता और स्वतंत्र विदेश नीति का प्रश्न है। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अमेरिकी निर्णय पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा— “भारत अपने आर्थिक हितों और अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को बाहरी दबाव में बदलने वाला देश नहीं है। हम वैश्विक दक्षिण की आवाज़ हैं और उसी जिम्मेदारी के साथ आगे बढ़ेंगे।”
भारत सरकार ने तत्काल वाशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास और अमेरिकी विदेश विभाग के बीच उच्चस्तरीय संवाद प्रारंभ कराया है। इसके साथ ही, उन्होंने BRICS, G20 और WTO मंचों पर भी इस मुद्दे को उठाने के निर्देश दिए हैं।
वाणिज्य मंत्रालय और वित्त मंत्रालय संयुक्त रूप से इस पर विचार कर रहे हैं कि यदि अमेरिका अपने टैरिफ में नरमी नहीं दिखाता, तो भारत अमेरिकी निर्यातित वस्तुओं पर 20% से 40% तक का अतिरिक्त शुल्क लगा सकता है।
संभावित प्रभावित अमेरिकी वस्तुएँ:
• उच्च तकनीकी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद
• लक्ज़री वाहन
• कृषि उत्पाद (सोया, बादाम, अखरोट)
• उपभोक्ता ब्रांडेड सामान
इस कदम का उद्देश्य केवल आर्थिक जवाब नहीं, बल्कि अमेरिका को वार्ता के लिए बाध्य करना भी होगा।
भारत ने इस मुद्दे पर BRICS देशों—ब्राज़ील, रूस, चीन, और दक्षिण अफ्रीका—से परामर्श शुरू कर दिया है।
• चीन और रूस ने पहले ही संकेत दिया है कि वे अमेरिका की “टैरिफ आक्रामकता” के खिलाफ भारत के साथ खड़े होंगे।
• BRICS बैंक (न्यू डेवलपमेंट बैंक) के माध्यम से प्रभावित उद्योगों को आसान वित्तीय सहायता देने की योजना पर चर्चा चल रही है।
• BRICS देशों के बीच पारस्परिक व्यापार को डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं में करने का विकल्प तेज़ी से आगे बढ़ाया जा रहा है, ताकि अमेरिकी वित्तीय दबाव को कम किया जा सके।
भारत सरकार की बहुस्तरीय भूमिका
1. कूटनीतिक दबाव निर्माण: अमेरिकी सीनेट और कांग्रेस के प्रभावशाली सदस्यों से सीधे संपर्क, यह समझाने के लिए कि टैरिफ न केवल भारत बल्कि अमेरिकी कंपनियों और उपभोक्ताओं को भी नुकसान पहुँचाएगा।
2. वैश्विक मंच पर वकालत: WTO में भारत के पक्ष को मजबूती से पेश करना, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन है।
3. क्षेत्रीय और बहुपक्षीय गठजोड़: BRICS, ASEAN और अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार विस्तार समझौते को तेज़ करना।
4. जन कूटनीति: भारतीय प्रवासी समुदाय के माध्यम से अमेरिकी जनमत को प्रभावित करने का अभियान।
भारत के विभिन्न उद्योग संगठनों—FICCI, CII, GJEPC—ने सरकार के कड़े रुख का समर्थन किया है। कई राज्यों में व्यापारी संगठनों ने ‘Boycott US Goods’ जैसे अभियान शुरू किए हैं। किसान संगठनों ने अमेरिकी कृषि आयात पर रोक लगाने की मांग की है।
अमेरिका का यह कदम उसके ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे का हिस्सा है, लेकिन भारत जैसे उभरते बाज़ार पर इस तरह का दबाव लंबे समय में उसके ही हितों के खिलाफ जा सकता है। यदि भारत अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिटैरिफ लगाता है और BRICS इसका सामूहिक समर्थन करता है, तो यह वैश्विक व्यापार शक्ति संतुलन में एक महत्वपूर्ण बदलाव होगा।
अगले कुछ हफ्तों में तीन अहम घटनाएँ इस विवाद के भविष्य को तय करेंगी:
1. BRICS शिखर सम्मेलन — जहाँ संयुक्त रणनीति पर मुहर लग सकती है।
2. WTO विशेष बैठक — भारत अमेरिका के खिलाफ औपचारिक शिकायत दर्ज करेगा।
3. संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी-ट्रम्प मुलाकात — जहाँ संभवतः उच्चस्तरीय समझौते की राह बन सकती है।
सारांश
अमेरिका का 50% टैरिफ निर्णय सिर्फ एक आर्थिक बाधा नहीं, बल्कि भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और वैश्विक व्यापार में उसकी स्थिति की परीक्षा भी है। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह दबाव में झुकने के बजाय, बहुपक्षीय सहयोग और रणनीतिक प्रतिकार के रास्ते पर चलेगा—चाहे इसके लिए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाना पड़े या BRICS के साथ एकजुट आर्थिक मोर्चा खड़ा करना पड़े।