फतेह लाइव, रिपोर्टर.

सहयोग बहुभाषीय संस्था के बैनर तले हिन्दी साहित्य के दो विभूतियों की जयंती के अवसर पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया।

आरंभ में सभी साहित्यकारों ने दोनों के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि अर्पित की। अतिथियों ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। संस्था की सचिव विद्या तिवारी ने स्वागत संबोधन प्रस्तुत किया।

इस गोष्ठी में विस्तार से आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के व्यक्तित्व कृतित्व पर चर्चा हुई।
साहित्य अनुरागियों और साहित्य मनीषियों की इस संक्षिप्त गोष्ठी में बहुत विस्तार से वरिष्ठ साहित्यकार डॉक्टर अरुण कुमार सज्जन ने जानकी वल्लभ शास्त्री के जीवन से जुड़े अनेक संस्मरण को साझा किया। उन्होंने उनकी कविताओं में युग बोध,आत्म बोध और अध्यात्म बोध की व्याख्या की।

सुधा गोयल ने महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के विषय में अपने विचारों के साथ विदुषी डॉक्टर रागिनी भूषण के विचारों को भी सबों के समक्ष रखा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉक्टर शकुंतला पाठक थी और विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद थीं श्रीमती लक्ष्मी झा। डॉ.जूही समर्पित ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि निराला और जानकी वल्लभ शास्त्री जैसे प्रेरक कवियों को आज की पीढ़ी नहीं जानती क्योंकि पाठ्यक्रम में आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की कविताएं शामिल नहीं की गई है। जिन्होंने एक बार नहीं दो- दो बार पद्मश्री को ठुकरा दिया था, ऐसे साहित्यकार के स्वाभिमान को नई पीढ़ी समझ नहीं सकती, जिन्होंने पद्मश्री को नीलाम होते देखा है। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी है जहां हम डिग्री तो देते हैं पर ज्ञान नहीं दे पाते।

डॉक्टर कल्याणी कबीर का अत्यंत सुन्दर संचालन प्रभावशाली था. डॉ अनीता शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के बाद सबने दो मिनट का मौन रखा. समाजसेवी और निखिल भारत बंग साहित्य के पूर्व अध्यक्ष दिलीप भट्टाचार्य को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। आज की इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में वरिष्ठ रंगकर्मी हरि मित्तल, डॉ. संध्या सिन्हा, किरण सज्जन बबली, वसंत जमशेदपुरी, पुष्पांजलि मिश्रा, डॉ. पुष्पा कुमारी, पूर्णिमा मिश्रा आदि उपस्थित थी।

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