फतेह लाइव, रिपोर्टर.
कोल्हान के तीनों जिलों में लॉटरी, मटका और जुआ का खेल बगैर पुलिस की इजाजत के असंभव है ये साबित करना कोई बड़ी बात नहीं है. तीनों जिलों के दर्जनो मामले ही पुलिसिया सांठ-गांठ की गवाही दे रहे हैं. जिन थाना क्षेत्रों में मटका-लॉटरी और जुए के अड्डे संचालित होते हैं. वहां छापेमारी से पहले ही संचालक गायब हो जाते हैं या यूं कहें कि यह महज खानापूर्ति वाली छापेमारी ही होती है, जिसे सुनियोजित तरीके से किया जाता है.
चार दिन पहले साकची के मानसरोवर होटल के पीछे और 23 मार्च को बिष्टुपुर के चुना बाबा मार्केट में हुई छापेमारी इस बात की ही गवाही दे रहे हैं. यह खानापूर्ति वाली छापेमारी में वे लोग पकड़ में आ गए जो खिलाड़ी हैं यानि संचालकों को पूर्व सूचना थी, इसलिए वे गायब हो गए.
साकची का राकेश पंडित, बिष्टुपुर का राकेश सोनकर उर्फ राकेश खटिक, मोहम्मद इरफान, कदमा का सदरुज्जमा उर्फ भोला, बाचा खान, सोनारी का धंधेबाज मुजाहिद हुसैन उर्फ काला बबलू और न जाने ऐसे कितने ही नाम हैं जो संचालक के रूप में चर्चित हैं.
अब इन लोग का जरा इतिहास खंगालें तो उदाहरण के लिए अगर बीते चार-पांच सालों में 8-10 छापेमारी हुई है तो उनमें किसी एक में ये लोग जेल गए होंगे तो दो-तीन केस में केवल नामजद आरोपी रहे और घटना स्थल से फरार बताए गए. इतना ही नहीं 4-5 मामले तो ऐसे होंगे जिनमें संचालकों के नाम ही गायब कर दिए गए हैं. बस पिछले एक सप्ताह की छापामारी में हुई प्राथमिकी भी कुछ ऐसा ही उदाहरण है जो कि सेटिंग-गेटिंग से धंधा चलाने का सबूत है.
सिदगोड़ा और सीतारामडेरा में कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं. जहां धंधे बंद हुए तो अब तक चालू ही नहीं हुए. यानी वहां सेटिंग खराब हो गई या फिर ऊपर से प्रेशर है. दो माह पहले ही सीतारामडेरा के बस स्टैंड में अड्डे के संचालक टकलू लोहार की हत्या मटका और जुए के वर्चस्व में हुई. ये भी किसी से छिपा नहीं है. वैसे इस धंधे में संचालकों के पैरविकार नेता ही होते हैं. बागबेड़ा क्षेत्र में भी चोरी छिपे यह खेल संचालित हो रहा है. पुराने अड्डे में ज्यादातर आईपीएल का सट्टा जोरों से चल रहा है. एन केन प्रकरण सोनारी की हत्या की कड़ी भी इसी से जुड़ी थी.