फतेह लाइव, रिपोर्टर.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने दो दिन पूर्व अपनी 44 सदस्यीय टीम की सूची जारी कर दी. इस सूची में ज्यादातर पुराने पदाधिकारियों के साथ ही कुछ नये चेहरों पर भी मुहर लगाई गई है. हालांकि प्रदेश में सिखों की 4 लाख से भी ज्यादा की आबादी होने के बावजूद किसी जिले से एक भी सिख को प्रदेश कमिटी में शामिल नहीं किया गया है, जबकि मुस्लिम समुदाय से राफिया नाज को कमिटी में प्रदेश प्रवक्ता जैसे महत्वपूर्ण पद दे दिया है. हालांकि पार्टी ने अल्पसंख्यक मोर्चा में दोनों ही जाति के लोगों को जगह भले ही देने की योजना बनाई हो, लेकिन पार्टी के मेन विंग में सिखों को नदारद रखा गया है.
झारखंड में इंदर सिंह नामधारी के बाद अब तक केवल अल्पसंख्यक आयोग को छोड़ न तो लोकसभा, न राज्यसभा और न ही विधानसभा में किसी सिख को कभी भी भाजपा से मौका मिला है. हां पार्टी ने झारखंड बनने के बाद इंदर सिंह नामधारी को न सिर्फ विधानसभा बल्कि लोकसभा में भी मौका दिया था और राज्यसभा में भी राष्ट्रीय स्तर का चेहरा मुख्तार अब्बास नकवी को केंद्र से लाकर बैठाया था. इस लंबे अंतराल के बाद कभी किसी सिख को राज्यसभा या लोकसभा में मौका नहीं दिया गया, जबकि सिखों को भाजपा का ही वोट बैंक माना जाता है.
झारखंड में सिखों के चर्चित चेहरों में रांची से अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष रहे गुरविंदर सिंह सेठी, जमशेदपुर से रघुवर दास के करीबी और पार्टी के जिला मंत्री मंजीत गिल, कुलवंत सिंह बंटी, गुरदेव सिंह राजा, सतबीर सिंह सोमू, सरदार शैलेंद्र सिंह सहित धनबाद, बोकारो, रामगढ़ और हजारीबाग जैसे सिख बहुल जिलों से पार्टी ने किसी भी सिख को जगह नहीं दी.
अब सिखों में अंदर ही अंदर इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि जब एक मुस्लिम महिला को प्रदेश कमिटी में जगह मिल सकती है तो फिर वोट बैंक होने के बावजूद सिखों को क्यों दरकिनार कर दिया गया है. एक तरफ तो सिखों के चर्चित नेता अमरप्रीत सिंह काले को 2019 से ही पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाकर पार्टी से बाहर रखा गया है, हालांकि वे खुद को आज भी पार्टी का अघोषित कार्यकर्ता मानते हैं. कभी काले भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता भी रह चुके हैं, लेकिन उस समय वे अर्जुन मुंडा के करीबी थे. पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी के कई दिग्गज दरकिनार कर दिए गए थे, जिसमें अमरप्रीत सिंह काले भी एक चर्चित सिख नेता हैं. इसके बावजूद काले खुद को भाजपा कार्यकर्ता ही मानते हैं और आज भी पार्टी में उनकी मज़बूत पकड़ मानी जाती है.
सिख बहुल इलाकों में पार्टी विस चुनाव हारी
2019 में पार्टी को जमशेदपुर पश्चिम, जमशेदपुर पूर्वी, रामगढ़, झरिया, जुगसलाई जैसी सिख बहुल सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा. अगर इस भी सिखों की अनदेखी हुई तो इस बार इसका असर लोकसभा से लेकर विधानसभा तक में देखने को मिल सकता है.
रांची, रामगढ़ और जमशेदपुर से प्रत्याशी दे पार्टी
सिखों की सभी संस्थाओं ने रांची, रामगढ़, जमशेदपुर पूर्वी व पश्चिम से अब तक सिख प्रत्याशी देने की मांग की है. यह मांग वर्षों पुरानी है और इसे लेकर लगभग हर लोकसभा और विधानसभा में सिख नामधारी संगठन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से पत्राचार भी कर चुके हैं, लेकिन सिखों को केवल अल्पसंख्यक आयोग तक ही सीमित रखा गया है और वह भी सरकार बनने तक.
झामुमो ने पूर्वी से कमलजीत को दिया था टिकट
कुछ सिखों ने कमलजीत कौर गिल को वर्ष 2014 में पूर्वी जमशेदपुर से टिकट मिलने पर भाजपा को नसीहत लेने की जरूरत बताई थी.हालांकि कमलजीत हार गई लेकिन झामुमो ने सिखों के दिल में थोड़ी जगह जरूर बना ली.