फतेह लाइव, रिपोर्टर.
आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व सोहराय पर्व शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। सोहराय पर्व के दुसरे दिन गोट बोंगा का आयोजन किया गया, जिसमें सदियों से गाँव के नायके बाबा द्वारा इष्ट देवताओं के सामने बलि चढ़ाने की प्रथा हैं। सामुहिक रुप से गाँव के लोग अपनी क्षमता और अपनी रीति रिवाजों के अनुसार बलि चढ़ाते हैं। फिर इसका सोड़े बनाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता हैं।
इसमें गाँव के सभी पुरुष और बच्चे अपनी अपनी पारंपरिक परिधान (फुटा काचा) पहनकर गोट बोंगा में शामिल होते हैं।
गोट बोंगा में सारजमदा निदिरटोला के मारांग माझी निमाई बास्के, टोला माझी सुरेश हांसदा, टोला माझी हाजु हेम्ब्रम, टोला माझी मनोज हांसदा, भुगलू सोरेन, मंगल बेसरा, राजेश मार्डी, बिरम हेम्ब्रम, सुखलाल माझी, पोटरा टुडू, भीम मार्डी, जयराम हांसदा, गोपाल किस्कू, रंजीत हांसदा, कृष्णा बेसरा, राजा पूर्ती, सिद्धेश्वर हेम्ब्रम, गोपाल सोरेन, बीरसिंह सोरेन, रामदास टुडू, अमित मार्डी, कृति किस्कू, गुलशन टुडू, विश्वनाथ हांसदा समेत गाँव के कई पुरुष और बच्चे शामिल रहें। शाम को बोंगा संपन्न होने के बाद सभी अपने अपने घरों में भी अपने बड़े बुजुर्गों को याद करते हुए हड़िया का पूजा करते हैं। इसके बाद गाय और बैलों के सिंगों में तेल लगाया जाता है और उनको दुल्हन की तरह सजाया जाता हैं। वहीं गाँव की महिलाएं सूप में दिया जलाकर गाय और बैलों का चुमावन करते हुए मधुर अंदाज में सोहराय गीत गाती हैं। इसमें महिलाएं भी अपनी पारंपरिक परिधान फुटा साड़ी में शामिल होती हैं।
सोहराय पर्व का तीसरा दिन आज
आज के दिन को दाकाय माहा के नाम से जाना जाता है और इस दिन सभी महिलाएं और पुरुष अपने अपने घरों में पकाकर खाते हैं तथा अपने मेहमान और रिश्तेदारों को भी इसमें आमंत्रित करते हैं। गाँव घर की बेटी दामाद और बहनों को इस सोहराय पर्व में विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता हैं। उन सबों का अतिथि सत्कार के बाद खाने पीने का रिवाज चलता है फिर सभी नाचते गाते हुए खुशियाँ मनाते हैं और एक दूसरे को सोहराय पर्व की बधाई देते हुए नजर आते हैं।