एससी ने पूछा 26 दिन क्या किया











फतेह लाइव रिपोर्टर
इलेक्ट्रोल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई इस दौरान एसबीआई की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को फटकार लगाते हुए 24 घंटे के अंदर इलेक्टोरल बांड से जुड़ी जानकारियों को जारी करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई के द्वारा 30 जून तक समय सीमा बढ़ाने की मांग पर कहा गया की 26 दिनों तक वह क्या कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के निर्देश के मुताबिक काम करना होगा सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का तत्काल पालन करें. अन्यथा कोर्ट की अवमानना के खिलाफ एसबीआई के खिलाफ कार्रवाई होगी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने SBI की याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि SBI को 12 मार्च तक इन इलेक्टोरल बॉन्ड्स से जुड़ी जानकारियों को जारी करना है. 15 मार्च की शाम 5 बजे तक ECI अपनी वेबसाइट पर इसे कंपाइल करके पब्लिश करेगी.
कोर्ट ने कहा कि SBI को अपने अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक का एक हलफनामा दाखिल करना है. हालांकि, कोर्ट ने ADR की अवमानना की याचिका पर सुनवाई नहीं की. कोर्ट ने कहा,
“हम SBI को नोटिस देते हैं कि यदि SBI इस आदेश में बताई गई समय सीमा के भीतर निर्देशों का पालन नहीं करता है तो कोर्ट जानबूझकर अवज्ञा के लिए उसके खिलाफ कार्यवाही कर सकती है.”
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा,“यदि आप अपना आवेदन देखेंगे तो आपने कहा है कि दान देने वाले की जानकारी एक ब्रांच में एक सीलबंद लिफाफे में रखी गई थी. और सभी सीलबंद लिफाफे मुंबई के मेन ब्रांच में जमा किए गए थे. दूसरी ओर, राजनीतिक दल 29 अधिकृत बैंकों में पैसा भुना सकते हैं. आप ये कह रहे हैं कि दान देने वालों की जानकारी मुंबई मेन ब्रांच को भेजी गई थी और राजनीतिक दलों की जानकारी भी उसी शाखा को भेजी गई थी. इस प्रकार जानकारी के दो सेट थे.”
उन्होंने आगे कहा कि ये कहा गया कि एक साइलो से दूसरे साइलो के जानकरी का मिलान करना समय लेने वाली प्रक्रिया है. चीफ जस्टिस ने कहा,“यदि आप हमारे निर्देश को देखें तो हमने आपसे मिलान करने के लिए नहीं कहा है. हमने स्पष्ट खुलासा करने का निर्देश दिया है. इसलिए ये कहते हुए समय मांगना कि मिलान किया जा रहा है, उचित नहीं है. हमने आपको ऐसा करने के लिए नहीं कहा था.”
सुप्रीम कोर्ट ने SBI से पूछा कि इतने दिनों में क्या किया गया है? कोर्ट ने कहा,“पिछले 26 दिनों में आपने (SBI) किया ही क्या है? हमने 15 फरवरी को फैसला सुनाया. आज 11 मार्च है. पिछले 26 दिनों में आपने क्या कदम उठाए? ये आपको बताना चाहिए कि हमने इतना काम किया है, इतना बाकी है. और इस वजह से हमें वक्त चाहिए. SBI को साफ-साफ जवाब देना चाहिए.”
कोर्ट में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक अलग याचिका सुनवाई नहीं की गई. ADR ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन नहीं करने के लिए SBI के खिलाफ अवमाना की कार्रवाई की मांग की थी.
इससे पहले SBI के खिलाफ ADR की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. उन्होंने कोर्ट में कहा था कि चुनावी चंदे वाले हर बॉन्ड को SBI देने वाले के नाम और KYC डिटेल के साथ रजिस्टर करती है. फिर जब कोई पार्टी उस बॉन्ड को जमा कराती है तो SBI बॉन्ड नंबर की जांच करती है. उन्होंने कहा था कि SBI ये आश्वस्त करती है कि ये बॉन्ड पिछले 15 दिनों में खरीदा गया था या नहीं. और इस सब के बाद भी डाटा जमा करने के लिए SBI को 140 दिनों की मोहलत चाहिए!
उनके तर्क सुनकर CJI चंद्रचूड़ ने कहा था कि आपकी बात में दम है. यही कहकर वो SBI के खिलाफ कोर्ट की अवमानना पर सुनवाई करने राजी हुए.
इस मामले में अब तक अब तक
लोकसभा चुनाव के एलान से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 15 फरवरी को एक बड़ा फैसला सुनाया. CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने मोदी सरकार की लाई गई चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी. साथ ही उसे ‘असंवैधानिक’ भी बताया.
: ‘मोदी से ठेके लेने वालों के सौदे पकड़ जाएंगे?’ इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर खड़गे ने बहुत बड़ा आरोप लगा दिया
CJI Chandrachud की अध्यक्षता वाली बेंच का तर्क था कि इलेक्टोरल बॉन्ड RTI यानी सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है. जनता के पास चुनावी पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग के बारे में जानने का पूरा अधिकार है. फिर कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि भारतीय स्टेट बैंक को 2019 से अब तक की सारी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी तीन हफ्ते के अंदर चुनाव आयोग को देनी होगी. और चुनाव आयोग को इन सारी जानकारियों को अपने आधिकारिक वेबसाइट पर पब्लिश करना होगा. माने डेडलाइन मिली 6 मार्च तक की.
कोर्ट ने ये भी कहा कि बॉन्ड जारी करने वाली बैंक तुरंत बॉन्ड जारी करना बंद कर दें. कोर्ट के आदेश के बाद भी SBI ने 6 मार्च तक सारा डाटा जमा ना कर पाने की बात कही. उनका तर्क है कि पहले हमें डोनर की पहचान गुप्त रखनी थी. इसलिए अब इलेक्टोरल बॉन्ड की डिकोडिंग करनी होगी. फिर डोनर की डोनेशन से उसे मैच करना हमारे लिए मुश्किल हो रहा है. बॉन्ड खरीद की सारी डिटेल अलग-अलग ब्रांच में रखी है. इसे सेंट्रल रूप से किसी एक जगह नहीं रखा जाता ताकि डोनर की पहचान गुप्त रहे.
SBI ने सब इकट्ठा कर, इलेक्शन कमिशन को देने के लिए कोर्ट से 30 जून तक का समय मांगा. और एक याचिका दाखिल की. इसी के खिलाफ ADR भी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और कहा कि SBI सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहा है. ADR एक नॉन पॉलिटिकल और नॉन प्रॉफिटेबल संगठन है. ये 25 साल से ज्यादा समय से चुनावी और राजनीतिक सुधारों पर काम कर रहा है.
ADR ने कहा
ADR का कहना है कि KYC के सारे जरूरी डॉक्यूमेंट इलेक्टोरल बॉन्ड की धारा 4 में लिखे हुए हैं. तो जाहिर सी बात है कि SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड के हर खरीददार की सारी जानकारी है. वहीं SBI का तर्क सुनने के बाद विपक्ष भी खासा नाराज दिखा. उनका कहना है कि चुनाव से पहले SBI ये जानकारी ना देकर किसे बचा रहा है?
2018 में केंद्र सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई थी. इलेक्टोरल बॉन्ड किसी गिफ्ट वाउचर जैसे होते हैं. सरकार हर साल चार बार- जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10-10 दिन के लिए बॉन्ड जारी करती है. मूल्य होता है- एक हजार, दस हजार, दस लाख या एक करोड़ रुपये. राजनीतिक पार्टियों को 2 हजार रुपये से अधिक चंदा देने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति या कॉरपोरेट हाउस भारतीय स्टेट बैंक की तय शाखाओं से ये बॉन्ड खरीद सकते हैं.इलेक्टोरल बॉन्ड मिलने के 15 दिनों के भीतर राजनीतिक पार्टी को इन्हें अपने खाते में जमा कराते हैं. बॉन्ड भुना रही पार्टी को ये नहीं बताना होता कि उनके पास ये बॉन्ड आया कहां से. दूसरी तरफ भारतीय स्टेट बैंक को भी ये बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, कि उसके यहां से किसने, कितने बॉन्ड खरीदे.
क्यों लाया गया था electoral bond?
इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने के पीछे मोदी सरकार का मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था. हालांकि आरोप लगते रहे हैं कि योजना मनी लॉन्ड्रिंग या काले धन को सफेद करने के लिए इस्तेमाल हो रही थी.