छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश की सीमा पर देश का सबसे बड़ा नक्सली पत्नी के साथ मारा गया
सीमा पर अर्ध सैनिक बलों के जवानों ने मौत के घाट उतारा
छत्तीसगढ़ सरकार ने एक करोड़ का इनाम रखा था हिड़मा पर
फतेह लाइव, रिपोर्टर.
छत्तीसगढ़-आंध्र प्रदेश की सीमा पर जवानों की नक्सलियों के साथ सीताराम राजू ज़िले के जंगलों में मंगलवार को भीषण मुठभेड़ छिड़ गई. इस मुठभेड़ में कम से कम 6 नक्सली मारे गए हैं. इनमें देश का खूंखार नक्सली माडवी हिड़मा भी शामिल है और साथ में उसकी पत्नी भी. हिडमा दंडकारन्य के माओवादी कैडरों का हीरो था.
यह कुख्यात नक्सली एनकाउंटर में आंध्र प्रदेश में मारा गया है. इस पर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक करोड़ रुपये का इनाम घोषित कर रखा था.हिड़मा के अलावा उसकी पत्नी राजे सहित कुल 6 नक्सलियों के शव सुरक्षाबलों ने बरामद किए है. बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने कुख्यात माओवादी कमांडर माडवी हिड़मा के एनकाउंटर की पुष्टि की है
1996 में जुड़ा था संगठन से, इन नामों से जाना जाता था हिड़मा
माडवी हिड़मा साल 1996 में नक्सल संगठन से जुड़ा था. तब उसकी उम्र महज 17 साल थी. हिड़मा को हिदमाल्लु और संतोष नाम से भी जाना जाता है. वह अब तक कई निर्दोष ग्रामीण और पुलिस जवानों को मार चुका. उसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था. एक जानकारी के मुताबिक 150 से अधिक जवानों का हत्यारा था माडवी हिड़मा.
दक्षिण बस्तर के घनेचुप जंगलों में एक नाम फुसफुसाहट बनकर दौड़ता था, वह था हिड़मा
माड़वी हिड़मा किसी के लिए खूंखार माओवादी कमांडर, तो किसी के लिए बस्तर का हीरो. वहीं हिड़मा जिसके अब एक मुठभेड़ में मारे जाने का दावा किया गया है, लेकिन उनकी कहानी आने वाले कई सालों तक बस्तर में रहेगी.
साल 1981 में छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले के पूवर्ती इलाक़े में जन्मा यह लड़का गांव के दूसरे लड़कों की तरह ही था. पुवर्ती वह गांव है, जहां से कम से कम दो दर्जन से अधिक लोग माओवादी संगठन में थे.
गांव की उन्हीं पगडंडियों पर बड़े होते-होते माड़वी हिड़मा उस रास्ते पर निकल पड़ा, जहाँ लौटकर आने की गुंजाइश बहुत कम होती है. इसी मिट्टी में पले-बढ़े आदिवासी हिड़मा जंगल, पहाड़, नदी-नालों जितना ही स्थानीय लोगों के जीवन का हिस्सा थे. माड़वी हिड़मा, हिदमाल्लु, संतोष, संगठन के भीतर उसके कई नाम थे.
जल्द ही बन बन गया संगठन की केंद्रीय कमेटी का सदस्य
एक मामूली माओवादी लड़ाका, जल्द ही माओवादी संगठन की केंद्रीय कमेटी का सदस्य बन गया. असल में माओवादी संगठन पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि उसमें स्थानीय, ख़ासकर छत्तीसगढ़ से कोई भी माओवादी, शीर्ष नेतृत्व में शामिल नहीं है. माना जाता है कि इसी आरोप से छुटकारा पाने के लिए 44 साल के हिड़मा को माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में जगह दी गई.
हिड़मा के साथ काम कर चुके और बाद में आत्मसमर्पण कर चुके माओवादी बताते हैं कि वो कम बोलता था. उसके बारे में कहा जाता है कि वो चुपचाप रहता था, लेकिन बेहद चौकन्ने और जिज्ञासु.
उन्हें नई चीज़ें सीखने का शौक था. गोंडी और हल्बी बोलने वाले, सातवीं तक की पढ़ाई कर चुके हिड़मा ने बरसों का अभ्यास करके हिंदी सीखी और फिर अंग्रेज़ी भी. लेकिन इन सबसे परे, स्थानीय होने के कारण, उनके अनुभव और युद्धनीति ने उन्हें किताबों के डिग्रीधारी नेताओं से कहीं आगे खड़ा कर दिया.
22 जवानों की हत्या का भी था आरोपी
गत तीन अप्रैल को सुरक्षाबल पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की बटालियन नंबर-1 के कमांडर माड़वी हिड़मा को ही पकड़ने निकले थे. पुलिस को ये जानकारी मिली थी कि हिड़मा और उसके साथी इस इलाक़े में मौजूद हैं.
लेकिन, मौके पर नक्सलियों ने जवानों पर हमला बोल दिया और इस मुठभेड़ में 22 जवानों की मौत हो गई. 40 साल के इस माओवादी विद्रोही नेता को पिछले एक दशक में दंडकारण्य में कई मौतों के लिए ज़िम्मेदार बताया जाता है.
वे दक्षिण बस्तर इलाक़े में सुकमा ज़िले के पुवर्ती गाँव के रहने वाले हैं. बताया जाता है कि इस गाँव से 40-50 माओवादी निकले हैं. नक्सलियों से जुड़ने से पहले हिड़मा खेती किया करता था.


