फतेह लाइव, रिपोर्टर.

         

जमशेदपुर की गुरुद्वारा कमेटियां अभी हाय तौबा मचा रही है कि राजनीतिक दल को किसी सिख नेता को टिकट देना चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि राजनीतिक दल से जुड़े सिख नेताओं के रास्ते में यह कांटे बिछाते हैं। जो सिख राजनीति करते हैं और राजनीतिक दल में सक्रिय हैं, उसकी आर्थिक सामाजिक पेशेवर हैसियत को लेकर यह लोग उसका मजाक उड़ाते हैं।

राष्ट्रीय सनातन सिख सभा के राष्ट्रीय संयोजक अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने कहा कि राजनीतिक दल अपने समर्पित निष्ठावान और जीतने वाले व्यक्ति को ही टिकट देते हैं। किसी धार्मिक सामाजिक संगठन के कहने पर टिकट नहीं दिया जाता है और कोई एक धर्म समाज जाति विशेष पर आधारित व्यक्ति की राजनीति ज्यादा दिन चलती भी नहीं है और वह जीतता भी नहीं है।

1971 में दिग्गज नेता केदार दास को सरदार स्वर्ण सिंह ने हरा दिया क्योंकि उसके पीछे कांग्रेस के समर्पित नेताओं कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी थी। उसके पीछे सेन्ट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी नहीं थी।

1980 और 1990 में सरदार बलदेव सिंह, 2005 में सरदार इंद्रजीत सिंह कालरा, बीबी धरमजीत कौर, 2015 में बीबी कमलजीत कौर गिल का साथ किसी गुरुद्वारा कमेटी ने नहीं दिया। समर्पित कार्यकर्ता नहीं रहा तो यह हार गए। 

1996 में सरदार इंद्र सिंह नामधारी और साल 2000 में सरदार शैलेंद्र सिंह को केंद्रीय कमेटी ने सहयोग दिया। क्या हुआ, दोनों हारे, शैलेंद्र सिंह की तो जमानत जप्त हो गई। 

हार जीत समर्पित कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज और पार्टी के कार्यक्रम नीतियां तय करती है।

यहां सिख नेता तभी स्वीकार्य होगा और पार्टी टिकट देगी। जब प्रधानमंत्री के बुलावे पर एक करिंदे की भांति नतमस्तक गुरुद्वारा के प्रधान नहीं होंगे। प्रधान खुद पार्टी के सिख नेता के पीछे चलेगा तभी कुछ होना है। अन्यथा झूठी वाह वाही लेने और अपनी पीठ थपथपाने से किसको इंकार है।

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