टाटा स्टील के संस्थापक जेएन टाटा की 185वीं जयंती पर विशेष रिपोर्ट की इस तीसरी कड़ी में पढ़िए जेएन टाटा के सपनों का शहर कैसे बसा
शेर, बाघ, भालू, हाथी वाले घनघोर जंगल से घिरे साकची गांव में एक ऐसा शहर बसा दिया, जो आज विश्व मानचित्र पर अपनी अलग पहचान रखता है
जमशेतजी नसरवानजी टाटा के महत्वपूर्ण योगदान को देखते 1919 में लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने हुए साकची गांव को जमशेदपुर और कालीमाटी रेलवे स्टेशन को टाटानगर नाम रखने की घोषणा की थी
फतेह लाइव, रिपोर्टर.
“इस बात का ध्यान रखना कि सड़कें चौड़ी हों और उन पर छायादार पेड़ हो, हर दूसरा पेड़ जल्दी बढ़नेवाली किस्म का लॉन हो और उद्यानों के लिए काफी जगह छोड़ने का ध्यान रखना. फुटबाल, हॉकी और पार्कों के लिए भी जगह आरक्षित रखना. हिन्दू मन्दिरों, मुहम्मदी मस्जिदों और ईसाई चर्चों के लिए भी जगह छोड़ना.”
-जमशेतजी टाटा द्वारा 1902 में अपने पुत्र दोराब को लिखे गए पत्र के अंश
कई तरह की परेशानी और चुनौतियों का सामना करने के बाद सुवर्णरेखा और खरकई नदी के दोमुहानी तट पर बसे कालीमाटी के साकची गांव का चयन कारखाना लगाने के लिए हो चुका था. जेएन टाटा के स्टील कारखाना बनने का सपना साकार लेने लगा था. इस महान दूरदृष्टी रखने वाले व्यक्ति की मानवता और जनेसवा का भाव इसी बात से समझ में आता है कि कंपनी की नींव रखने के पूर्व ही उन्होंने 1902 अपने बेटे सर दोराबजी टाटा को पत्र लिख कर एक ऐसे शहर बसाने की बात कही, जहां उनके कर्मचारियों के लिए हर सुविधा हो, उस दौर में जब गाड़ियां नहीं थी, लोग बैल गाड़ी पर चलते थे और पर्यावरण कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं था, तब भी उन्होंने चौड़ी सड़क और सड़क के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगाने को कहा. जेएन टाटा जानते थे कि कंपनी में स्थानीय के साथ दूसरे प्रदेश से भी लोग काम करने के लिए निश्चित तौर पर आएंगे. उन्होंने इस ध्यान में रखते हुए बेटे दोराब को लिखे पत्र में इस बात को प्रमुखता से लिखा कि शहर में हर जाति, धर्म के सम्मान के लिए हिंदुओं के मंदिरख् मुहम्मदी मस्जिद, और ईसाई चर्चों के निर्माण के लिए जगह छोड़ कर रखना. शहरवासियों और कर्मचारियों के मनोरंजन के लिए पार्क, खेलकूद के मैदान व अन्य जरूरी सुविधा उपलब्ध कराने की बात जेएन टाटा ने अपने पत्र में लिखा. कर्मचारियों व समुदाय के बच्चों के लिए शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध हो इस बात पर उन्होंने जोर दिया था.
पिता के सपनों को पुत्र दोराबजी ने किया पूरा
14 लाख से भी ज्यादा आबादी वाला जमशेदपुर शहर आज से 110 साल पहले तक महज कुछ सौ आदिवासी जनसंख्या वाला साकची गांव हुआ करता था. साकची गांव के दलमा से सटा होने के कारण यह पूरा क्षेत्र घना जंगल था. यहां के जंगल में उस वक्त शेर, बाघ, भालू, हाथी, अन्य जानवर रहते थे. जंगली जानवरों के बीच आदिवासी जनजाति (भूमिज और संथाल) यहां निवास करती थी. चलने के लिए आज के जैसी न तो चौड़ी सड़कें थी और न कोई गाड़ी. इस वृहद जंगल वाले क्षेत्र में कंपनी स्थापित करने के साथ ही शहर बसाने का सपना जेएन टाटा ने देख लिया था. हालांकि कंपनी बनने के पूर्व ही उनका देहांत 19 मई 1904 में हो गया. लेकिन तब तक कंपनी स्थापित करने की कमान पुत्र सर दोराबजी टाटा ने संभाल लिया था. दोराबजी न केवल कंपनी निर्माण करने में जुटे बल्कि अपने पिता के सपने और संकल्प को भी पूरा करने का काम किया. एक ओर जहां कंपनी निर्माण का काम तेज गति से 1908 में आरंभ हुआ, तो वहीं साथ ही साथ शहर बसाने का मास्टर प्लान तैयार कर लिया गया. इसलिए जमशेदपुर को भारत का पहना सुनियोजित (प्लांड) सिटी कहा जाता है. जहां कर्मचारियों के रहने के लिए क्वार्टर बनाए गए. उनके परिवार और बच्चों की लिए सभी सुविधा को लागू किया गया. हाट बाजार भी तैयार किया गया. यही नहीं इसके अलावा कर्मचारियों के लिए एक रात्रि स्कूल का गठन भी किया गया, ताकि उन्हें शिक्षित किया जा सके.
तीन वर्ष बाद फरवरी, 1911 में, एक अंग्रेज पत्रकार लॉवेट फ्रेजर ने लिखा था “मैं ईटों से बने एक मंजिली और लंबे-चौड़े घरों की कतारों के बीच गली-दर-गली घूमता रहा. सब के सब अच्छे हवादार घर थे और सभी में पानी के नल और बिजली की सुविधा थी. बहुत से घरों में बिजली के पंखे भी थे.”
हर सुविधा मिली, पांच बेड से नींव पड़ी थी आज के विशाल टीएमएच की
एक पूरा शहर बसाया जा रहा था. भारत का पहला सुनियोजित आधुनिक शहर. नई दिल्ली और चंडीगढ़ इसके बाद अस्तित्व में आए. वरिष्ठ अधिकारियों के लिए गेंदबाजी, क्रिकेट और अन्य खेलों में भाग लेने के लिए एक विश्राम एवं मनोरंजन केंद्र भी था. हर शनिवार को ब्रिटिश और अमेरिकी अधिकारी साकची के बीचोबीच करीम टॉकीज के पास घुड़दौड़ का आयोजन करते थे. बाद में वे शहर के बाहर इसका आयोजन करने लगे जहां आजकल एयरपोर्ट स्थित है. कुछ अधिकारी और कर्मचारी घुड़दौड़ पर अनधिकृत बाजियां लगाने लगे. जल्दी ही निर्देशकों को इस बात का पता चल गया और उन्होंने घुड़दौड़ बंद करवा दी. शहरियों को एक रंग-बिरंगे सामाजिक जीवन का अनुभव देने के लिए एक स्थानीय बैंड की स्थापना की गई. दो छप्परों के नीचे एक कामचलाऊ अस्पताल भी बना दिया गया. इसमें पांच बिस्तर और एक पुरुष नर्स थी. धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, एक सपना ठोस आकार लेता प्रतीत हो रहा था. पांच बेड वाला झोपड़ीनुमा अस्पताल आज टीएमएच के रूप में हमारे सामने एक मल्टिस्पेशलिस्ट विशाल अस्पताल के रूप में चिकित्सीय सेवा प्रदान कर रहा है.
आज नौकरी के लिए मारा मारी, सौ साल पहले ट्रेन में आवाज लगाकर बुलाते थे कर्मचारी
आज के मॉल युग में हाट बाजार में भी बोली लगाकर समान की बिक्री नहीं हाेती है. ग्राहक खुद ही आकर अपने पंसद का सामान खरीदते हैं. लेकिन एक वह भी दौर था जब टाटा स्टील की स्थापना हो रही थी, लेकिन कुशल तो दूर अर्धकुशल व श्रमिक मिलना तक मुश्किल था. ऐसे में टाटा के भर्ती अधिकारी उस वक्त कालीमाटी (आज का टाटानगर) रेलवे स्टेशन जाकर ट्रेनों में जा रहे यात्रियों को नौकरी के लिए आवाज लगाया करते थे. रेलगाड़ियों के डिब्बों में झांक-झांककर आवाजे लगाते थे कि अगर उन्हें बढ़ई, वेल्डर या अर्द्ध-प्रशिक्षित-श्रमिकों की नौकरियां चाहिए तो वे लोग वहीं उतर जाएं. आरएम लाला द्वारा लिखित किताब के अनुसार 1921 में कारखाना में भर्ती होनेवाले पीके चटर्जी बताते हैं, “उन दिनों वहां किसी का भी बेकार रहना मुश्किल था. बेरोजगार पुरुषों का कोई झुंड दिखाई देते ही घोड़ों पर सवार भर्ती अधिकारी उनके पास जा पहुंचते थे और उन्हें पीतल का एक टोकन पकड़ाकर उसी दिन से या अगले दिन से काम पर रख लेते थे.”
पढ़ें अगली और अंतिम कड़ी में कब से व क्यों शुरू हुआ संस्थापक दिवस समारोह. (नीचे भी देखें तस्सवीरें)