फतेह लाइव, रिपोर्टर.
राजनगर प्रखंड में महाभारत काल की धरोहर है. धार्मिक आस्था का केंद्र है भीमखांदा. राजनगर प्रखंड के बाना पंचायत अंतर्गत टंगरानी गांव तक 15 किलोमीटर जाने के बाद भीमखांदा जाने के लिए रास्ता निकला है. टंगरानी से भीमखांदा तक एक किलोमीटर पक्की सड़क बनाई गई है. जमशेदपुर से करीब 13 किलोमीटर तक जाने के बाद कुनाबेड़ा गांव पार करने के बाद चाबर बाधा डूंगरी में भीमखांदा जाने के लिए तीर का निशाना दिया गया है.
चाबर बंधा डूंगरी से लगभग तीन किलोमीटर तक पक्की सड़क है. महाभारत काल के कई ऐतिहासिक धरोहरो को समेटे है भीमख़ाँदा. स्थल के लिए भी ख्याति उपलब्ध है यह धरोहर. राजनगर प्रखंड के भोंग भोंगा नदी किनारे स्थित पिकनिक मनाने के लिए भी लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है. भीमखांदा में राजनगर प्रखंड के अलावे सरायकेला, जमशेदपुर, हाता, आदित्यपुर,गम्हरिया आदि छेत्र से प्रति वर्ष नया साल में लोग आते हैं. सरकार की ओर से कुछ सुंदरीकरण का काम भी किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. इस धरोहर को बचाने के लिए.
भीमख़ाँदा में एक सेवा ट्रस्ट बनाया गया है, जो सेवा सहायता करता है. यहां एक आवासीय विद्यालय भी है जो टाटा स्टील के देख रेख में चलता है. जहां पर अभी 120 बच्चे हैं. मान्यता है कि भीमख़ाँदा में महाभारत काल के समय अर्जुन द्वारा यहां शिव लिंग की स्थापना की गई है. इस शिवलिंग पर हर सोमवार को शिव भक्त पूजा करने आते हैं. सावन महीने में यहां मेला लगता है.
सावन में सरायकेला जिला के अलावे पूर्वी और पश्चिम सिंहभूम के साथ साथ पड़ोसी राज्य ओडिशा के मयूरभंज जिला से भी यहां भक्त आते हैं. प्रतिवर्ष मकर सक्रांति के आख्यान के दिन यहां टुसु मेला लगता है. यहां का जो राजा था उनकी लड़की का नाम टुसु था. उसकी अकाल मृत्यु हो गई थी, इसलिए उनकी याद में राजा ने टुसु मेला का प्रचलन किया था. इस मेले में हज़ारों लोग जुटते हैं. कहा जाता है कि महाभारत काल मे पांडवों ने वनवास के दौरान यहां कुछ दिन गुजारे थे.
भीम द्वारा बनाया गया चूल्हा जो पत्थर का है, भीम का पैर का निशाना, हाथी का पैर का निशाना, पांडव द्वारा लिखी गई लिपि,अर्जुन द्वारा स्थापित शिव लिंग, अर्जुन पेड़ जहाँ अर्जुन ने तीर मारकर छेद किया था. राधा कृष्ण का मंदिर, हनुमान मूर्ति जो लोगो को आकर्षित करता है. इसके अलावे सरकार द्वारा सांस्कृतिक भवन, पंचायत का संसद भवन भी है. यहाँ के महतो से मुलाकात की जो, यहां विगत 11वर्ष से सेवा दे रहा है. उन्होंने यहां के लोक कहानी और कथा सुनाया और हमे सब कुछ जानकारी दी.
यहां मान्यता है कि हिडिम्बा के साथ भीमसेन की शादी हुई थी और उनके पुत्र घोटतकोच का राज्याभिषेक भी हुआ था. यहां पांडव ने शिव जी की प्रतिष्ठा की थी इसलिए शिव जी को पंडबेश्वर शिव कहा जाता है.
कालांतर में सरायकेला राजा के अधीनस्थ बाना के जमींदार स्वर्गीय गंगाधर सिंह देव के काल में करीब तीन सो साल पहले एक किसान की एक गाय थी. गाय यहां आती थी और शिव लिंग के ऊपर खड़ी होती थी और अपने आप दूध निकल कर शिव लिंग के ऊपर गिरता था. घर जाने के पश्चात गाय दूध कम देती थी. तब किसान को संदेह हुआ कि कोई न कोई गाय का दूध चूरा लेता है. तब एकदिन जानकारी लेने के लिए वह किसान ने गाय की पीछा किया. तब देखा कि गाय एक पेड़ के नीचे आकर खड़ी हो गई और आपने आप दूध गिरने लगा. तब आकर देखा कि यहां एक शिव लिंग है जिसके ऊपर दूध गिर रहा है.
उसके बाद उन्होंने आकर जमींदार को सारी कहानी सुनाई. उसके बाद जमींदार गंगाधर सिंह देव ने शिव जी का पूजा अर्चना शुरू कर दी, जो अभी तक जारी है. धीरे धीरे लोग यहां आने लगे, मन्नत करने लगे. मन्नत पूरी होने लगी और जगह का महत्व प्रचार होने लगा. आज भीम खंडा का पंडबेश्वर धाम आस्था का केंद्र बन चुका है.