जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह ने कहा- एक सितंबर के बाद अमृत नहीं छकने, बाल-दाढ़ी रंगने व बांधने वाले की सदस्यता खारिज की जाए
फतेह लाइव, रिपोर्टर.
सिख पंथ की सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा जारी ताजा हुक्मनामे को लेकर सिख समाज में गंभीरता और प्रतिबद्धता का वातावरण बनता जा रहा है. गुरुवार को सिख धर्म के युवा प्रचारक, विचारक व चिंतक ज्ञानी हरविंदर सिंह जमशेदपुरी ने बयान जारी कर सेंट्रल गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (सीजीपीसी) से मांग की है कि वह कोल्हान क्षेत्र के सभी 34 गुरुद्वारों में इस हुक्मनामे को तत्काल प्रभाव से लागू करे.
ज्ञात हो कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज ने एक हुक्मनामा जारी किया है, जिसमें यह स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि गुरुद्वारा कमिटी के प्रबंधन से जुड़े सभी सदस्य एक सितंबर, 2025 तक अमृतधारी बन जाएँ. इसके अलावा दाढ़ी-बाल रंगना या दाढ़ी बांधना सख्त वर्जित किया गया है. जत्थेदार ने यह भी कहा है कि जो सदस्य अमृतधारी नहीं होंगे उनकी सदस्यता रद्द की जाए.
इस आदेश का समर्थन करते हुए ज्ञानी हरविंदर सिंह जमशेदपुरी ने कहा, “यह हुक्मनामा सिख मर्यादा की पुनः स्थापना की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है. हमें इसे भावनात्मक, धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार कर हर गुरुद्वारा में इसे सख्ती से लागू करना चाहिए.”
उन्होंने बताया कि वे शीघ्र ही सीजीपीसी के प्रधान सरदार भगवान सिंह से भेंट कर इस संबंध में एक लिखित ज्ञापन सौंपेंगे, जिसमें कोल्हान के सभी गुरुद्वारों में हुक्मनामे के अनुपालन की मांग की जाएगी. उन्होंने सभी गुरुद्वारा प्रबंधकों से अपील की कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में सिर्फ अमृतधारी सिखों को कार्यकारिणी में शामिल करें और खुद इसका पालन कर उदाहरण प्रस्तुत करें.
ज्ञानी जमशेदपुरी ने आधुनिक जीवनशैली और फैशन के प्रभाव को सिख पहचान पर खतरे के रूप में चिन्हित करते हुए कहा कि “गुरबाणी स्पष्ट रूप से कहती है कि सिखों को केशधारी, अमृतधारी, साबत सूरत और सहज रूप में रहना चाहिए. आज सिख युवा अपनी मूल पहचान को भूलते जा रहे हैं, जो आत्ममंथन और चिंता का विषय है.”
हालांकि यह हुक्मनामा फिलहाल चीफ खालसा दीवान से संबद्ध कमेटियों के लिए जारी किया गया है, लेकिन इसे सभी तख्त साहिब और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों पर लागू माना जा रहा है. ऐसे में जमशेदपुर सहित पूरे कोल्हान में इसके प्रभावी क्रियान्वयन की जिम्मेदारी सीजीपीसी पर आ गई है.
सिख समुदाय के भीतर यह पहल धार्मिक अनुशासन, पहचान की रक्षा और मूल मर्यादाओं की पुनःस्थापना की दिशा में एक अहम मील का पत्थर मानी जा रही है.