अमृतसर.
विश्व में बस रहे सिखों के लिए शुक्रवार का दिन खास रहा. समाज के धार्मिक चार प्रमुख तख्तों के धार्मिक आगूओं का फेरबदल किया गया है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की बैठक में यह निर्णय हुआ है. इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि धार्मिक मामलों में भी राजनितिक हावी है. क्यूंकि सर्वोच्च तख्त श्री हरिमंदिर जी, अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को उस वक्त हटाया गया है, जब उनकी पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से नहीं पट रही थी. वैसे कहा जाता है कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने भी ताबदले को लेकर एसजीपीसी को दरखास्त दी थी. उन्हें तख्त दमदमा साहेब का जत्थेदार नियुक्त किया गया है. वहां से रघुवीर सिंह को अमृतसर का नया जत्थेदार बनाया गया है. ज्ञानी सुल्तान सिंह को श्री केशगढ़ साहेब का जत्थेदार बनाया गया है. एक अन्य फैसले में तख्त पटना कमेटी ने भी ज्ञानी बलदेव सिंह को स्थाई तौर पर जत्थेदार बनाने की घोषणा कर दी है. मालूम हो कि पटना साहेब में पुराने जत्थेदार को लेकर काफी विवाद था. जिसके बीच बलदेव सिंह को प्रभार दिया गया था.
राघव चड्ढा के सगाई के बाद निशाने पर जत्थेदार हरप्रीत
आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा की सगाई के बाद जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह चर्चा में आ गए थे. अकाली दल ने भी इसका विरोध किया था. यह भी कहा जा रहा है कि राघव चड्ढा की सगाई ने शिरोमणि अकाली दल और जत्थेदार के बीच ‘टकराव’ को और हवा दे दी गई.
अकाली दल से जत्थेदार के संबंधों में आई खटास
श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और शिरोमणि अकाली दल के बीच पिछले एक साल से सब ठीक नहीं चल रहा था. जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अकाली दल को सरेआम पूंजीपतियों की पार्टी बताया था. इतना ही नहीं जत्थेदार और अकाली दल के बीच कुछ समय से रंजिश चल रही थी. जत्थेदार अक्सर अकाली दल की कमजोरी की बात करते रहे हैं. इतना ही नहीं एक बार जत्थेदार ने अकाली दल को मजबूत करने की सलाह भी दी थी.
2018 में जत्थेदार बने थे ज्ञानी हरप्रीत सिंह
आपको बता दें कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक की आंतरिक कमेटी ने साल 2018 में श्री अकाल तख्त साहिब का कार्यवाहक जत्थेदार नियुक्त किया था. इससे पहले जत्थेदार गुरबचन सिंह का इस्तीफा स्वीकार कर ज्ञानी हरप्रीत सिंह को जत्थेदार नियुक्त किया गया था. गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के बाद गुरमत के सिद्धांतों के अनुसार गुरुद्वारों के प्रबंधन के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की स्थापना की गई थी. उसके बाद से समिति द्वारा ही अकाल तख्त के जत्थेदार की नियुक्ति की जाती है.