आनंद सिंह.

सोशल मीडिया पर इन दिनों दो-तीन आक्रामक शब्द खूब लिखे जा रहे हैं. ये हैः धो दिया. गर्दा उड़ा दिया  परखच्चे उड़ा दिये. इसी तरह के बड़े जुझारू शब्द लिखे जा रहे हैं. प्रसंग है संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर बहस. ये सारे जुझारू टाइप के शब्द प्रधानमंत्री मोदी के जवाब के बाद सोशल मीडिया पर अवतरित हुए हैं. प्रधानमंत्री मोदी के टारगेट पर सदैव से कांग्रेस रही है. इस बार भी कांग्रेस ही रही. प्रियंका गांधी ने ठीक ही कहा कि अरे आपको तो एक बहाना चाहिए नेहरू खानदान का नाम गिनाने का! जब मौका मिलता है, आप नेहरु जी से लेकर हम लोगों का नाम लगते हो गिनाने.

प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर ‘ताबड़तोड़ हमले’ किये और पानी पी-पी कर कोसा. मोदी ने अपने भाषण में कहाःअगर सन 1971 में तत्कालीन नेतृत्व यानी इंदिरा गांधी के पास विजन होता तो पाक अधिकृत कश्मीर हमारा होता. उनके इस बयान पर संसद में जबरदस्त हंगामा हुआ. कांग्रेसियों ने संसद के अंदर और बाहर कहा कि 2025 में ऑपरेशन सिंदूर में उन्हें यानी प्रधानमंत्री मोदी को मौका मिला तो उन्होंने इसे क्यों गंवा दिया? क्यों नहीं सेना को आदेश दिया और पीओके पर कब्जा कर लिया?

संसद में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर लगातार चर्चा हो रही है. यह चर्चा ऑपरेशन सिंदूर पर कम, कांग्रेस और भाजपा के ज्यादा केंद्र में आकर खड़ी हो गई है. भाजपा वाले कांग्रेस पर हमला करते-करते एकाध बार ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र कर देते हैं. ऐसे ही कांग्रेस वाले भाजपा पर हमला करते-करते एकाध बार ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र कर देती है. दोनों ही पार्टियों ने ऑपरेशन सिंदूर की आड़ में एक-दूसरे पर जितने हमले करने थे, किये. देश को क्या मिला? देश को जो जवाब चाहिए था, वह तो मिला ही नहीं. देश के सामने यह सवाल था कि उसके कितने लड़ाकू विमान मार गिराए गये, हमने पाकिस्तान के कितने लड़ाकू विमान मार गिराये गए और भारत-पाक के कितने सैनिकों ने अपनी जान कुर्बान की? लेकिन, इस सवाल पर तो कोई चर्चा हुई ही नहीं. आपको कोई जवाब मिला हो तो मुझे भी बताइएगा.

आपको याद होगा, इस चर्चा की शुरुआत रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने की थी. उन्होंने एक बार भी चीन का नाम नहीं लिया. उन्होंने एक बार भी हमारे लड़ाकू जहाजों के बारे में मुंह तक नहीं खोला. घंटा भर के भाषण में वह सरकार का ही, खास कर प्रधानमंत्री मोदी का ही गुणगान करते नजर आए. अगर गुणगान नहीं करेंगे तो कहीं रक्षामंत्री की कुर्सी हाथ से न चली जाए. उन्होंने एक बार भी यह सच देश को बताने का प्रयास नहीं किया कि हमारे लड़ाकू जहाज गिराए गये या नहीं या फिर चीन की इसमें भूमिका क्या रही, जबकि पूरी दुनिया जानती है कि चीन और तुर्किए ही दो ऐसे देश थे, जिन्होंने ताल ठोक कर भारत के खिलाफ पाकिस्तान को हर तरह की सहायता दी. तुर्किए ने अपना समुद्री जंगी जहाज और ड्रोन आदि पाकिस्तान को दिया था और चीन ने तो आर्टिलरी से लेकर एचक्यू9 और एचक्यू 15 (बैलेस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली) दिया था. इसके अलावा अपने घातक मिसाइल भी दिये थे। इन सभी पर राजनाथ सिंह ने एक शब्द भी नहीं बोला.

उन्हें प्रियंका गांधी और बाद में राहुल गांधी ने घेरा. दोनों ने चुभते हुए सवाल खड़े किये. राहुल गांधी ने नेता विपक्ष होते हुए हिंदी में कम, अंग्रेजी में ही अपना भाषण रखा, सवाल पूछे और उनकी बॉडी लैंग्वेज से लगा कि वह सरकार को हिलाने के मूड में हैं. उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि मोदी, सेना की आड़ में अपनी छवि चमका रहे हैं. उनमें इतना आत्मबल नहीं कि ट्रंप के 29 बार के दावे में एक बार सिर्फ कह दें कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं. राजनीतिक इच्छाशक्ति मोदी में है ही नहीं. सेना का हाथ आपने बांध दिया। चीन ने पाकिस्तान की मदद की. लेकिन इसका जिक्र न तो रक्षामंत्री ने अपने भाषण में किया, न ही मोदी ने.

दरअसल, संसद के दोनों सदनों में ऑपरेशन सिंदूर को लेकर जो बहस चली, और आज जिस बहस में विदेश मंत्री भी शामिल हुए, वह कोई मैसेज कम्युनिकेट कर पाने में अभी तक विफल रहा है. यह बहस कम, लफ्फाजी ज्यादा है जिसमें वर्तमान का कम, पचास साल पुराने इतिहास का ज्यादा जिक्र देखा जा रहा है. बड़ा सवाल यह है कि जब अमेरिका का राष्ट्रपति यह कहता है कि उसने भारत-पाकिस्त्तान के बीच युद्ध को रुकवाया और उसका हथियार बना बिजनेस डील तो हमारी प्रतिक्रिया क्या रही? अमेरिकी राष्ट्रपति यह भी कहता है कि उसने मोदी को फोन किया और युद्ध रुकवाया.

अब मोदी ने डायलॉग मारा है कि दुनिया के किसी भी देश ने युद्ध रोकने को नहीं कहा. तो फिर जब भारतीय जांबाज सैनिक युद्धक्षेत्र में आगे बढ़ रहे थे, विजय प्राप्त ही करने वाले थे, तब एकाएक युद्धविराम हुआ ही क्यों? क्या एक डीजीएमओ के कहने पर युद्धविराम करना उचित था? मोदी ने अपने भाषण में एक बार भी यह क्यों नहीं कहा कि ट्रंप एक नंबर के झूठे हैं और युद्ध रुकवाने वाली बात भी सफेद झूठ है. भाजपा के एक कट्टर समर्थक ने अपने वीडियो में कहा भी कि जब हम विजयश्री का वरण करने के लिए आगे बढ़ रहे थे, तभी जैसे इमरजेंसी ब्रेक लगा दिये गए हों और युद्ध को रोक दिया गया. यह मुझे सालों-साल तक खलेगा कि हम पीओके ले सकते थे, पाकिस्तान को उसके ही घर में मात दे सकते थे लेकिन हमने ऐसा किया नहीं. भाजपा और उसकी एक सहयोगी पार्टी के विधायकों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हम लोग पीओके ले ही लेते, अगर फैसला सही होता और ट्रंप का फैक्टर बीच में न आया होता.

सोशल मीडिया में क्या चल रहा है…

सोशल मीडिया पर इस बहस को लोग जनता को उल्लू बनाने का उपक्रम बता रहे हैं. फेसबुक पर अनिल जैन नामक एक सज्जन ने वीडियो अपलोड किया है जिसमें मोदी भाषण दे रहे हैं और सत्ता पक्ष के लोग सो रहे हैं. इस पर शानदार कमेंट्स भी आए हैं. एक ने लिखाः फेंकू को सुनकर अब नहीं झेलना होता. थोड़ा आरम ही कर लिया जाए. दूसरे ने इस पर टिप्पणी कीः बकवास सुनकर नींद आना अच्छी सेहत की पहचान है. तीसरे यूजर ने लिखाः सबको पता है कि सूरज डूब रहा है. एक और सज्जन ने लिखाः उनको भी पता है कि ये नेहरू जी को याद करेंगे, बाकी तो कुछ करेंगे नही. जब जवाब नही देते बनेगा तो पानी पीयेंगे. एक सज्जन ने लिखा है-सुनते सुनते भाव विभोर हो गए भगत लोग….

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