(दिल्ली से मनप्रीत सिंह खालसा)
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि 1984 के सिख नरसंहार मामले में बरी किए गए लोगों के खिलाफ अपील दायर न करने के लिए ‘मुकदमा केवल दिखावे के लिए नहीं, बल्कि गंभीरता से चलाया जाना चाहिए’. न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उंजल भुइया की पीठ ने कहा कि बरी किये गये लोगों के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की जानी चाहिए और मामला ईमानदारी से लड़ना चाहिए.
अब सवाल यह उठता है कि दिल्ली कमेटी ऐसे मामलों की पैरवी कर रही है और नवंबर 1984 के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए जोर-शोर से मुहिम चला रही है, जिसका सबूत हाल ही में एक मामले में कोर्ट द्वारा सज्जन कुमार को दोषी करार देने और कमेटी के सदस्यों द्वारा उनका श्रेय लेने से साबित हो गया है जबकि इस मामले में उनकी कोई भूमिका नहीं है. लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और दम तोड़ते मामलों की जिम्मेदारी क्यों नहीं लेते..? उनके कार्यकाल के दौरान हुई खामियों ने जहां पंथ को शर्मसार किया है.
वहीं पंथ की कुछ सम्पति कुर्क होने की भी चर्चा है. कमेटी के सदस्यों को सिख संगत और पीड़ितों को जवाब देना चाहिए कि इन मामलों में हुई गलतियों का जिम्मेदार कौन है और इन मामलों के पीड़ितों को कैसे न्याय मिलेगा..?
यह शब्द शिरोमणि अकाली दल दिल्ली इकाई के अध्यक्ष सरदार परमजीत सिंह सरना ने मीडिया को जारी एक बयान के माध्यम से व्यक्त किये.