निशिकांत ठाकुर.
“तलाक” (वैवाहिक संबंध विच्छेद) एक ऐसा शब्द है जिसके दर्द और पीड़ा को वही समझ सकता है. जहां इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति आई होगी. यह किसी भी परिवार को अंदर तक झकझोर देने वाली स्थिति होती है. इस पर विचार करने के बदले पुलिस और अदालती चक्करों में ऐसे दाम्पत्य अपनी सुखपूर्ण जीवन को समाप्त कर लेते हैं. जीवन तो सच में दुरूह ऊबड़ खाबड़ रास्तों से भरा हुआ है, जिन मार्गों को पार करने में 99 प्रतिशत तो सफल हो जाते हैं, लेकिन 1 प्रतिशत वे दम्पत्ति होते हैं जो इन कठिन रास्तों पर चलने में सफल नहीं हो पाते.
वही कुछ पीछे छुटकर अपने जीवन को नर्क बना लेते हैं. ऐसा क्यों होता है. इस पर विश्व के अनेक स्थानों पर रिसर्च किए जा रहे, बड़ी बड़ी स्वयंसेवी संस्थाएं इस दुर्भाग्यपूर्ण मामले को सुलझाने में लगे हुए हैं और समाधान ढूंढने का प्रयास कर रहे हैं. कुछ का तो समाधान हो भी जाता है, लेकिन कुछ अनसुलझे रह जाते हैं. वैसे इस तरह की बुराइयों को दूर करने के लिए कुछ समाजसेवी संस्थाएं भी हैं, पर जब उनसे विवाद नहीं सुलझता तो फिर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ता है.
आखिर तलाक होते क्यों है ? इस विषय को जब खोजा गया तो इसमें मूलतः पाया जाता है कि प्रतिबद्धता की कमी, बेवफाई, अत्यधिक संघर्ष और बहस, शारीरिक अंतरंगता का अभाव ,वित्तीय परेशानियां , उर लत. इसके अलावा आपसी समझ की कमी , संचार की कमी, एक दूसरे के प्रति सम्मान की कमी भी तलाक के कारण बन सकती है. अध्ययन में जो कई और कारण सामने आए उनमें प्रतिबद्धता की कमी, उनमें जब दरारें आती है जैसे पति पत्नी शादी के बाद एक दूसरे के प्रति बेवफा हो जाते हैं. चाहे शारीरिक हो या भावनात्मक , संबंधों में अविश्वास पैदा करने लगते हैं.
लगातार झगड़े और बहस , जब पति पत्नी के बीच शारीरिक संबंध , धन संबंधी मतभेद, मुख्य कारण हो जाते हैं, नशे को लत, आपसी तालमेल,मानसिक और शारीरिक दुर्व्यवहार आदि और भी कई कारण होते हैं जो अलग –अलग महिलाओं और पुरुषों से बात करने के बाद सामने आते रहते हैं. ध्यान रखने की बात यह है कि हर तलाक के पीछे अलग अलग कारण भी होते है । ऐसे मुद्दे भी होते जो घर के बाहर नहीं आ पाते और सम्बन्ध विच्छेद ( तलाक ) हो जाते हैं, परिवार टूट जाता है.
यदि एक एक मुद्दों की व्याख्या करें तो यह अनुसंधान का विषय हो जाएगा, लेकिन एक बात जो सामान्यतः देखने में आती है वह यह कि कई स्थानों पर पुरुष अपने पुरुष प्रधान होने के कारण अत्याचारी हो जाते हैं तो कई मामलों में महिला कानूनी प्रक्रिया की मानसिकता को अपनाते हुए उसका लाभ उठाने का प्रयास करती है. स्थिति ऐसी हो जाती है कि किसी भी पक्ष में किसी का हस्तक्षेप आग में घी डालने का काम करता है. फिर ऐसी स्थिति में हस्तक्षेप कर मुद्दे का हल कैसे निकाला जाए। यह ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति समाज के किसी खास वर्ग में होता हो, आज समाज का हर वर्ग इसमें उलझा हुआ है.
तलाक होने से परिवार तो टूटता ही है, उसके साथ ही समाज भी इस मुद्दे पर चर्चा कर उसे और विषाक्त कर देता है,जिन्होंने इस कष्ट को भोगा है. वह समाज में अलोकप्रिय और उपहास के पात्र हो जाते है और समाज ताने मार मार कर उसे छोड़ने या कुछ अनिष्ट करने के लिए मजबूत कर देता है. आज विश्व की एक बड़ी समस्याओं में एक समस्या यह भी है और इसका हल ढूंढने में आज विश्व में बड़े बड़े शोध किए जा रहे हैं.
कई अनुसंधानकर्ताओं का यह भी कहना है कि समाज के कुछ वर्ग विशेष इस तरह अपने कार्यों में व्यस्त हो जाते है कि उनका पति पत्नी का संबंध नहीं के बराबर रह जाता है. वह अपने कार्यों में इस प्रकार व्यस्त हो जाते हैं कि एक दूसरे की जानकारी नहीं होती है, संबंध दिन प्रतिदिन कमजोर होने लगते है. फिर स्थिति तलाक तक पहुंच जाती है. कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि एक सदस्य के नशे की लत के कारण जीवन दूभर हो जाता है फिर परिवार को संबंध विच्छेद करने के लिए मजबूर हो जाना पड़ता हैं. कुछ शोधकर्ताओं ने अपने शोध में माना कि किसी तीसरे पक्ष चाहे वह महिला हो या पुरुष के आ जाने से रोज मारपीट की स्थिति बनने लगती है और अन्ततः मामला तलाक तक पहुंच जाता है.
कई स्थानों पर यह भी पाया जाता है कि आर्थिक स्थिति भी तलाक के कारण बन जाते है. आर्थिक स्थिति का अर्थ यहां यह नहीं है कि कमजोर हो यह आर्थिक रूप से संपन्न दोनों कारणों से तलाक हो जाते है. कुल मिलाकर यह परम्परा नहीं बल्कि आधुनिक पढ़े लिखे समाज में अधिक होने लगी है. लेकिन यह भी सच है कि महिला तो आदिकाल से ही अपमानित होतीं रही है. साथ ही तर्क यह भी दिया जाता रहा है कि पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को पुरूषों की बराबरी करने का अधिकार नहीं है. अब विश्व की महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि वह पुरुष से किसी प्रकार पीछे नहीं, लेकिन पुरुष प्रधान की मानसिकता को बदलने में अभी समय लग रहा है और महिलाओं पर अब भी अत्याचार किए जाते हैं.
आखिर जो जटिल प्रश्न है वह अभी भी उलझा हुआ है कि समाज के टूटते इन रिश्तों का हल कैसे हो ? अमेरिकी विश्वविद्यालय के रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्व की आबादी 2100 के आने तक आधी रह जाएगी और भारत की आबादी मात्र सौ करोड़ हो जाएगी. स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के रिसर्च में एक विकराल मुद्दा तलाक का भी आया है जिसमें कहा गया है कि पारिवारिक रिश्तों के टूटने के कारण और विशेष रूप से पति पत्नी के तलाक के कारण बच्चों के जन्म का असर विश्व पर पड़ेगा आबादी दिन प्रतिदिन गिरती जाएगी. उदाहरण कई देशों का देते हुए शोधकर्ताओं ने भारत का भी उल्लेख किया है और सच में अब ऐसा देखने को मिल भी रहा है. जहां बच्चों की औसत जनसंख्या एक परिवार में दो मानी जाती थी अब वह एक पर सीमित हो गई है.
बच्चों के जन्म न होने के कई कारणों में एक कारण यह भी माना गया है वह परिवार के टूटते संबंध का भी असर है. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि पहले भारतीय संयुक्त परिवार में रहते थे जिनके कारण बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह उनके ऊपर होती थी, लेकिन अब बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी माता पिता को स्वयं उठाना पड़ता है, लेकिन ऐसी स्थिति में तलाक हो गया हो तो उस बच्चे का पालन– पोषण कौन करेगा ?
इन्हीं सब मुद्दों पर विचार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस पीएस नरसिम्हा और अतुल एस चांदूरकर की एक पीठ ने तलाक के मामले में दांपति से कहा कि वे आपसी विवाद को सौहाद्रपूर्ण ढंग से सुलझा लें. पीठ ने कहा कि बदले की जिंदगी मत जिए क्योंकि आगे भी लंबी जिंदगी है. आपको एक अच्छा जीवन जीना चाहिए. न्यायालय की यह सलाह आज के समाज के दोनों पक्षों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण तथा किसी भी विवाहित जीवन को आगे सुखमय बनाएं रखने के लिए बेहतरीन सीख है, जो नज़ीर बन सकता है. काश, इसका असर विशेषरूप से युवाओं के लिए आदर्श वाक्य हो उनके जीवन को सुखमय बनाने वाली हो. समाज को यही आशा करनी चाहिए इससे समाज का टूटना , संबंध विच्छेद होना हो सकता है कि रुक जाए.
(लेखक वरिष्ट पत्रकार और स्तंभकार हैं)