- सद्गुरु मां ने जीवन में भक्ति, विवेक और वैराग्य अपनाने का संदेश दिया
फतेह लाइव, रिपोर्टर
श्री कबीर ज्ञान मंदिर में निर्जला एकादशी के पावन अवसर पर भगवद कीर्तन का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु सद्गुरु मां के सानिध्य में भगवान के नाम का भजन-कीर्तन करते हुए उपस्थित रहे. सद्गुरु मां ने इस अवसर पर कहा कि निर्जला एकादशी को सबसे शक्तिशाली एकादशी माना जाता है, जिसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि इस व्रत के फलस्वरूप साल भर की सभी एकादशियों के व्रतों का फल प्राप्त होता है. इस पावन दिन पर सभी ने भक्ति और श्रद्धा के साथ भगवान का नाम लिया और जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रार्थना की.
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निर्जला एकादशी का महत्व और धार्मिक विधि
सद्गुरु मां ने आगे कहा कि हमारे पूर्वज कमल की तरह संसार में रहते हुए भी असंग रहते थे और भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य को जीवन का आधार बनाते थे. उन्होंने सभी को प्रेरित किया कि वे जीवन में प्रसन्नता बांटने की आदत डालें क्योंकि जो हम देते हैं वही हमें वापस मिलता है. फूल बांटने वाले को सुगंध और मेहंदी लगाने वाले का हाथ रंगा होता है. सद्गुरु मां ने कहा कि यदि हम अपने जीवन में शांति और सुख चाहते हैं तो खुशियां बांटना सीखें. जीवन मूल्यों को अपनाना मानव का वास्तविक कर्तव्य है. जब हम जनहित के लिए पुण्य कर्म करते हैं, तब आत्मा को संतोष और पोषण मिलता है.
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संतों के उपदेशों से जीवन में शांति कैसे लाएं
उन्होंने बताया कि निर्जला एकादशी ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष में आती है और इसे निर्जल व्रत के साथ मनाया जाता है, इसलिए इसका नाम निर्जला एकादशी पड़ा है. यह व्रत हमारे इंद्रियों को वश में करने तथा जीवन की क्षणभंगुरता को समझने का अवसर प्रदान करता है. सद्गुरु मां ने सभी श्रद्धालुओं से जीवन की सच्चाई को समझकर सादगी और संयम के साथ जीवन जीने का आह्वान किया.