वेल्ला आ गया है जुदाई दा असां हुण मुड़ के औणा नइ ……
साकची गुरुद्वारा मैदान में ‘सफर-ए-शहादत’ का सातवां दिन: निडरता के प्रतिक छोटे साहिबजादों की शहादत वृतांत सुन नम हुई संगत की आँखे
फतेह लाइव, रिपोर्टर.
जमशेदपुर के साकची गुरुद्वारा मैदान में ऐसा सुखद माहौल था जिसे एक गुरु का सच्चा सिख ही समझ सकता था. एक तरफ़ संगत नम आँखे लेकर दीवान से बाहर निकल रही थी. दूसरी तरफ इन गौरवशाली क्षणों पर गर्व करते हुए नम आँखो से ही बोले सो निहाल के जयकारे लगा रही थी.
मौक़ा था ‘सफर-ए-शहादत’ शहीदी सप्ताह का सातवां दिन और अंतिम दिन का विशेष समागम जहाँ पंथ के महान प्रचारक डॉ सुखप्रीत सिंह उधोके ने छोटे साहिबज़ादों की निडरता, वीरता और शहीदी प्राप्ति की गाथा काफ़ी सरल तरीक़े से संगत के सामने रखी.
सर्व्वोच्च शहादत पर गर्व महसूस कर आंखों में आंसू लिए दिवान से विदा हुई संगत
डॉ सुखप्रीत सिंह उधोके शहीदी गाथा की ऐसी लहर लेकर आए की संगत भाव विभोर हो उठी. डॉ उधोके के बताया दिसंबर सर्द रात में ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजर कौर ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से नीले वस्रों में तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा. यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे. यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया गया.
यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजर कौर के पास पहुंची, वे यह पीड़ा सह ना सकी और उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए. इस तरह गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज का पूरा परिवार धर्म रक्षा की खातिर शहीदी प्राप्त कर गया.
इससे पूर्व, शहीदी सप्ताह ‘सफर-ए-शहादत’ के सातवें और अंतिम दिन के विशेष समागम में साकची गुरुद्वारा मैदान में शाम की शुरुआत नन्हे बच्चे गुरकीरत सिंह ने की और गुरु महाराज जी के सम्मान में कीर्तन की प्रस्तुति दी. उसके बाद, जमशेदपुर में बीबियों के ढाढी जत्था में शामिल बीबी रविंदर कौर, अवलीन कौर तथा जुड़वाँ बहने भवनीत कौर और भावलीन कौर ने एक बार फिर पातसाह गुरु गोबिंद सिंह जी की वीरता को ढाढी अंदाज में पेश किया. कदमा के हरिंदर सिंह और अमृतवेला परिवार ने भी गुरबाणी कीर्तन कर गुरु साहब की महिमा का बखान किया. “मेरे लालन की शोभा”, “हम चाकर गोबिंद के” सबद गायन किए गए. सीजीपीसी के सलाहकार सुखविंदर सिंह राजू ने जहन में जोश भरती और वीरता का बयान करती कविता पाठ किया. उन्होंने साहिबज़ादों और सूबे सरहिंद के बीच हुए विरोधाभासी वार्तालाप का वर्णन सुंदर कविता के द्वारा बताया. वहीं कीर्तन दरबार के बाहर जमशेदपुर में टर्बनेटर नाम से मशहूर राजकमलजीत युवकों को पगड़ी सजाने की कला सीखा रहे थे।
अंत में सेंट्रल गुरुद्वारा के प्रधान सरदार भगवान सिंह ने समस्त सिख संगत का धन्यवाद किया, जिनकी गरिमामयी हाजरी से विशेष समागम अति सफल हुआ.
भगवान सिंह गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी, साकची के प्रधान का विशेष धन्यवाद ज्ञापन किया साथ ही लंगर की सेवा करने वालों के लिए भी आभार प्रकट किया. भगवान सिंह ने कहा – आज भी जब वे साहिबजादों की शहीदी गाथा सुनते हैं तो वे अपने आंसू नहीं रोक पाते हैं क्योंकि छोटे साहिबजादे की वीरता सिखों के इतिहास का लहू से सना सुनहरा पन्ना है और धर्म रक्षा के लिए किये गए बलिदान का ऐसा उदाहरण कहीं नहीं है. मंच का संचालन मानगो गुरुद्वारा के महासचिव जसवंत सिंह जस्सू और अमृतपाल सिंह ने किया. संगत ने घर लौटने से पहले प्रसाद के रूप में गुरु का लंगर छका.
संगत की गरिमामयी हाजरी से भरे दीवान में सरदार भगवान सिंह, गुरचरण सिंह बिल्ला, जसवंत सिंह जस्सू, सतबीर सिंह सोमू, परमजीत सिंह काले, तरणप्रीत सिंह बन्नी, कुलविंदर सिंह पन्नू, सुखविंदर सिंह राजू, चंचल सिंह, अमरीक सिंह, अजीत सिंह गंभीर, परमजीत सिंह रोशन, परविंदर सिंह सोहल, सुरजीत सिंह खुशीपुर, जसबीर सिंह गांधी, अजीत सिंह गंभीर, हरविंदर सिंह मंटू मुख्य रूप से शामिल हुए.