• बिरसा चौक में बजट प्रस्ताव और चार श्रम संहिताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और पुतला दहन

फतेह लाइव, रिपोर्टर

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र फेडरेशनों के संयुक्त मंच द्वारा 5 फरवरी 2025 को पूरे कोल्हान क्षेत्र में विरोध कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य केंद्रीय बजट प्रस्ताव 2025-26 और चार श्रम संहिताओं को लागू करने की पहल के खिलाफ था. विरोध प्रदर्शन का आयोजन बिरसा चौक, साकची में किया गया, जहां दोपहर 12 बजे से नुक्कड़ सभा आयोजित की गई और इसके बाद बजट प्रस्ताव और श्रम संहिताओं का पुतला दहन किया गया. नुक्कड़ सभा में वक्ताओं ने एकजुट होकर केंद्रीय बजट की निंदा की और इसे आम आदमी के साथ विश्वासघात बताया. उन्होंने कहा कि यह बजट राष्ट्रीय संपत्ति की लूट का खाका प्रस्तुत करता है. इसके साथ ही श्रम संहिताओं को लागू करने की सरकार की पहल को भी आलोचना का शिकार बनाया गया.

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वक्ताओं ने कहा कि चारों श्रम संहिताएं श्रमिकों के अधिकारों की हत्या के समान होंगी और यदि इन्हें लागू किया जाता है तो अखिल भारतीय स्तर पर हड़ताल की जाएगी. इस अवसर पर बिनोद राय, अंबुज कुमार ठाकुर, बिश्वजीत देब, परविंदर सिंह सोहल, हीरा अरकाने, संजय कुमार, धनंजय शुक्ला सहित अन्य नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने बताया कि बजट प्रस्ताव से कॉरपोरेट घरानों को अनेक लाभ दिए गए हैं, जैसे कि परमाणु ऊर्जा और कृषि जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में उनका हस्तक्षेप बढ़ेगा. वहीं दूसरी ओर, बीमा क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण तेज होगा. इस बजट में रोजगार सृजन और न्यूनतम मजदूरी बढ़ाने का कोई उल्लेख नहीं किया गया, जबकि सरकार केवल कॉरपोरेट सेक्टर को राहत दे रही है.

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संगठनों ने यह भी बताया कि बजट प्रस्ताव में किसानों के लिए वैधानिक एमएसपी, शहरी रोजगार गारंटी योजना और असंगठित श्रमिकों के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं. इसके साथ ही पेट्रोलियम उत्पादों के शुल्क में कटौती और जीएसटी कानून में संशोधन के लिए भी कोई ध्यान नहीं दिया गया. विरोध प्रदर्शन में उपस्थित ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने जनता से अपील की कि वे इस जनविरोधी और मजदूर-विरोधी बजट के खिलाफ आवाज उठाएं और श्रम संहिताओं के क्रियान्वयन को रोकने के लिए निर्णायक संघर्ष में भाग लें. इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मजदूर, कर्मचारी और आम लोग शामिल हुए, जिन्होंने सरकार के फैसलों का विरोध किया और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर बल दिया.

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