फतेह लाइव, रिपोर्टर. 

         

गुजरात 2002 दंगा पीड़िता बिल्किस बानो के परिवार के हत्यारे एवं दुष्कर्मियों को दोबारा जेल भेजने का फैसला ही काफी नहीं है। शहर के अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू के अनुसार सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि वह इस मामले के जिम्मेदार पदाधिकारी के खिलाफ भी उचित कार्रवाई करें।जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का काम किया।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं वरीय अधिवक्ता के अनुसार उन 11 लोगों को जब गुजरात सरकार ने सजा की अवधि पूर्ण होने से पहले रिहा किया तो कुछ बेशर्म लोगों ने टिप्पणी की थी कि ये संस्कारी लोग है। ऐसी टिप्पणी करनेवालों को चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी बी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइया की खंडपीठ ने गुजरात सरकार के फैसले को पलट कर लोकतंत्र एवं संविधान में आस्था रखने वाले के लोगों के भरोसे को कायम रखा है।

गुजरात सरकार अच्छी तरह से जानती थी कि यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है उसके बावजूद मनमानी की और तानाशाही रवैया अपनाया। गुजरात सरकार और मुख्यमंत्री को पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए और बिलकिस बानो की सुरक्षा का व्यापक प्रबंध करना चाहिए। उसे उसी तरह मुआवजा दिया जाना चाहिए, जिस तरह से 1984 सिख नरसंहार के पीड़ित परिवारों को मिला है।

इस अधिवक्ता के अनुसार देश देखे कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाते हुए पूरे देश एवं सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का काम किया गया। एक सजायाफ्ता राधेश्याम शाह को कभी पैरोल नहीं मिला, उसकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए गुजरात सरकार से विचार करने का आदेश दिया था। लेकिन 1000 दिनों तक पैरोल और फरलो लेने वाले दस सजायाफ्ता को इसका लाभ दे दिया गया और कोर्ट से इस तथ्य को भी छुपाने की कोशिश हुई।

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