फतेह लाइव, रिपोर्टर.










ईद का त्योहार कल यानी 11 अप्रैल को मनाया जायेगा, जिसे मीठी ईद भी कहते हैं. रमजान के पवित्र माह के आखिरी दिन (चांद मुबारक) चांद देखने के बाद अगले दिन ईद का पर्व मनाया जाता है. माह-ए-रमजान का 28 वां रोजा खत्म होते ही हर तरफ ईद की तैयारियां शुरू हो गई हैं. वहीं मस्जिादों ईदगाहों व घरों की साफ-सफाई के साथ सजावट का कार्य शुरू हो गया है. चौराहों पर दुकानें सज गई है. कुर्ता पायजामा, जूता, चप्पल, कास्मेटिक दुकानों पर भारी भीड़ लग रही है. महीने भर से सुनसान पड़ी मार्केट व दुकानों पर पर ईद नजदीक आते ही रौनक लौट आई है.
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उसका जीवन सदा रहेगा खुशहाल, जिसके पास ये है
व्यक्ति को समूह में जीने के लिए स्नेह, प्रेम, दया की जरूरत होती है और जिसके पास यह है, उसका जीवन खुद-ब-खुद खुशी से भरा रहेगा. 10वें माह में आने वाले ईद पर्व के लिए तन-मन को तैयार करने हेतु रमजान महीने के कुछ नियम बने, ताकि व्यक्ति अपने निजी जीवन में भी नियम के साथ रह सके. सहरी यानी सूरज निकलने के पहले फजीर के नमाज के पहले सो के उठना स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभप्रद है. इस समय में शरीर की तंत्रिका प्रणाली आंतरिक सफाई का काम करती हैं. उसके बाद सूरज डूबने के समय मगरिब की नमाज के समय अफ्तार (सूरज डूबने के पहले) का वक्त भी बहुत महत्वपूर्ण है. इस समय वातावरण में ऐसी तरंगें होती हैं, जिसमें किये गये भोजन से तन और मन स्वस्थ रहता है. विभिन्न धर्मावलंबी भी सूर्य डूबने के पहले भोजन कर लेते हैं.
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क्या संदेश देता है पवित्र धर्मग्रंथ कुर-आन?
रमजान महीने में रात को एशा के नमाज में कुरान पढ़ी और सुनी जाती है. कुरान का शुद्ध उच्चारण कुर-आन है, जो मुसलमानों का एक पवित्र धर्मग्रंथ है और इसे आसमानी किताब माना जाता है. इसमें तीस ‘पारे’, छोटी -बड़ी 114 ‘सूरतें’, 6640 ‘आयतें’ और 540 ‘रकूअ’ हैं. एक रकूअ में एक बार खड़े होकर बैठने तक शामिल है, जिसमें 2 सजदे (जमीन पर माथा टेकना) भी किये जाते हैं. ईद के आने के पहले मन-मस्तिष्क में आनंद का सैलाब पैदा करने के पीछे पूरा विज्ञान शामिल है. ‘क़ुर-आन’ शब्द को देखें, तो ‘क़ुर’ का आशय शीतलता और ‘आन’ का आशय लम्हा है. यानी जिंदगी में उत्तेजना, क्रोध, तनाव की हालत न आने पाये.
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‘या अल्लाह-नेकी में लगाओ और बुराइयों से बचाओ’
ईद भी ‘ऊद’ शब्द से बना है, जिसका मतलब सुगंध है. जीवन को सुगंधित बनाने का रमजान का माह यह संदेश लेकर हर साल आता है कि इस्लाम धर्मावलंबी ऐसा कार्य करें, जिससे वह जहां रहें और जहां जायें, खुशबू बिखेर दें. ईद की नमाज के वक्त दिये जाने वाले खुतबे में ‘या अल्लाह-नेकी में लगाओ और बुराइयों से बचाओ’ का संकल्प दिलाया जाता है, जिसे लागू करना भी त्योहार का मकसद है. संकल्पों को सुनकर भूल जाना नींद की स्थिति है और अपना लेना ईद पर्व का जश्न है.