लेखक: मुकेश मित्तल
अध्यक्ष, पूर्वी सिंहभूम जिला मारवाड़ी सम्मेलन एवं पूर्व उपाध्यक्ष, सिंहभूम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध लंबे समय से रणनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत रहे हैं। दोनों देशों ने विभिन्न वैश्विक मंचों पर परस्पर सहयोग किया है, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद व्यापारिक मोर्चे पर तनाव बढ़ गया। ट्रंप प्रशासन ने “America First” की नीति के तहत भारत सहित कई देशों पर भारी आयात शुल्क (टैरिफ) लागू किए। विशेषकर भारत से आने वाले स्टील और एल्युमिनियम उत्पादों पर 25% और 10% तक टैरिफ लगाया गया।
इसके अलावा, अमेरिका ने भारत को दिए गए GSP (Generalized System of Preferences) दर्जे को भी समाप्त कर दिया, जिससे भारत को अमेरिका में बिना शुल्क के 5.6 अरब डॉलर तक का निर्यात करने की जो छूट मिलती थी, वह खत्म हो गई। यह भारत के छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए बड़ा झटका था।
भारत-अमेरिका व्यापार: वर्तमान स्थिति और आंकड़े
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार 2024 तक लगभग 135 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, और यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। भारत अमेरिका का नौवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है, जबकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य बन चुका है। भारत का कुल निर्यात का लगभग 17% हिस्सा अकेले अमेरिका को जाता है।
भारत अमेरिका को टेक्सटाइल, रसायन, फार्मास्युटिकल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, स्टील, ऑर्गेनिक केमिकल्स, कृषि उत्पाद, और आईटी सेवाएं निर्यात करता है। वहीं भारत अमेरिका से विमानन उपकरण, रक्षा तकनीक, पेट्रोलियम उत्पाद, मेडिकल उपकरण, और इलेक्ट्रॉनिक्स का आयात करता है।
ट्रंप की टैरिफ नीति का प्रभाव भारत पर
डोनाल्ड ट्रंप ने यह तर्क दिया था कि अमेरिका का व्यापार घाटा कम करने के लिए विदेशी देशों से आयात पर शुल्क बढ़ाना आवश्यक है। इस नीति का सीधा असर भारत पर हुआ। भारतीय स्टील और एल्युमिनियम कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार महंगा हो गया। इससे भारत से इन उत्पादों का निर्यात घट गया और अमेरिका जैसे रणनीतिक साझेदार के साथ आर्थिक संबंधों में तनाव आया।
GSP के हटने का असर उन भारतीय उत्पादों पर पड़ा जो बिना शुल्क के अमेरिका को निर्यात किए जाते थे, जैसे टेक्सटाइल, हैंडीक्राफ्ट, ऑर्गेनिक केमिकल्स और लेदर उत्पाद। इससे भारत के हजारों छोटे व्यवसायों और लाखों कारीगरों की आजीविका प्रभावित हुई।
भारत की प्रतिक्रिया और रणनीति
भारत ने अमेरिकी निर्णयों का जवाब संयम और राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ दिया। भारत सरकार ने अमेरिका से आयात किए जाने वाले 28 उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाया, जिनमें सेब, बादाम, अखरोट, मोटरसाइकिल और बोरबॉन व्हिस्की जैसे उत्पाद शामिल थे। साथ ही, भारत ने WTO (विश्व व्यापार संगठन) में अमेरिका की टैरिफ नीति को चुनौती दी, इसे अनुचित और WTO नियमों के विरुद्ध बताया।
भारत ने अपने व्यापारिक दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव करते हुए “आत्मनिर्भर भारत” की नीति को आगे बढ़ाया और घरेलू उद्योगों, स्टार्टअप्स तथा MSME को प्रोत्साहन देने की दिशा में कदम उठाए।
डिजिटल व्यापार और अमेरिकी टेक कंपनियों पर अमेरिका का दबाव
भारत में Apple, Google, Meta (Facebook), Amazon और Microsoft जैसी अमेरिकी कंपनियां अरबों डॉलर का व्यापार करती हैं। लेकिन जब भारत सरकार ने डिजिटल डेटा की सुरक्षा, लोकलाइजेशन, और ई-कॉमर्स नियमों को कड़ा करना शुरू किया, तो अमेरिका ने अप्रत्यक्ष दबाव बनाना शुरू कर दिया।
भारत चाहता है कि उसके नागरिकों का डेटा देश के भीतर सुरक्षित रखा जाए, और विदेशी कंपनियां देश के कानूनों का पूरी तरह पालन करें। लेकिन अमेरिका की टेक लॉबी चाहती है कि भारत इन नियमों में ढील दे, ताकि वे अधिक नियंत्रण और मुनाफा बना सकें।
भारत ने साफ कर दिया है कि डिजिटल संप्रभुता, डेटा सुरक्षा, और उपभोक्ता अधिकारों से कोई समझौता नहीं होगा। चाहे वह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां ही क्यों न हों।
प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका और आगे की दिशा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “भारत फर्स्ट” और “वोकल फॉर लोकल” जैसे नारों के माध्यम से यह संकेत दिया है कि भारत अब व्यापारिक मामलों में भी आत्मनिर्भर और आत्मसम्मानी रुख अपनाएगा। अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों को सुधारने की कोशिश जारी है, लेकिन किसी भी कीमत पर नहीं।
भारत को इस दिशा में कुछ प्रमुख कदम उठाने चाहिए:
1. भारत और अमेरिका के बीच एक नया, संतुलित और पारदर्शी व्यापार समझौता हो जो भारत की संवेदनशीलता, घरेलू रोजगार, और डिजिटल संप्रभुता का सम्मान करे।
2. GSP जैसी योजनाएं अगर दोबारा बहाल होनी हैं, तो भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसका लाभ सिर्फ अमेरिका को न मिले, बल्कि भारत के किसानों, कारीगरों और छोटे उद्यमियों को भी हो।
3. अमेरिका की टेक कंपनियों को भारत में काम करना है तो उन्हें भारत के नियमों के अनुरूप ढलना होगा। डेटा सुरक्षा, टैक्स व्यवस्था और प्रतिस्पर्धा के नियमों में कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए।
4. भारत को अपने तकनीकी और औद्योगिक इकोसिस्टम को मज़बूत करना चाहिए ताकि अमेरिका या किसी अन्य देश के दबाव में आने की आवश्यकता ही न पड़े।
5. वैश्विक मंचों पर भारत को विकासशील देशों की आवाज बनकर उभरना चाहिए। WTO, G20, BRICS और ASEAN जैसे मंचों पर भारत को अमेरिकी दबाव की रणनीति का विरोध करना चाहिए।
सारांश
भारत और अमेरिका के व्यापारिक संबंध महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह संबंध एकतरफा नहीं हो सकते। भारत अब केवल एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक निर्णायक शक्ति है जो शीघ्र ही विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है।
ट्रंप की टैरिफ नीति और GSP समाप्त करने जैसे कदमों ने भारत को यह सोचने पर मजबूर किया कि केवल समझौता करना ही समाधान नहीं है, बल्कि अपने हितों की रक्षा करना और आत्मनिर्भर बनना ज़रूरी है।
अब समय आ गया है कि भारत पूरी दुनिया को यह संदेश दे कि वह साझेदारी चाहता है, अधीनता नहीं। व्यापारिक लाभ के लिए आत्मसम्मान को गिरवी नहीं रखा जा सकता।
“भारत व्यापार करेगा — लेकिन अपनी शर्तों पर, आत्मसम्मान के साथ और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए।”
यह एक नए भारत की शुरुआत है — जहां व्यापारिक समझौते भी राष्ट्र निर्माण का हिस्सा होंगे।


