- भारतीय कानून वृद्ध महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में सशक्त और व्यापक
फतेह लाइव, रिपोर्टर
भारत में बुजुर्ग महिलाओं एवं वृद्धजनों की गरिमा, सम्मान एवं संरक्षण के लिए कई कानून बने हुए हैं, जो उनकी देखभाल और भरण-पोषण के अधिकारों की रक्षा करते हैं. हाल ही में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की जगह ली है और इसे नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण से तैयार किया गया है. इस संहिता के तहत धारा 144(1)(d) के अनुसार माता-पिता अपने संतान से भरण-पोषण पाने के अधिकार रखते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ‘his’ शब्द केवल पुत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि पुत्री भी अपने माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी से विमुख नहीं हो सकती. यह प्रावधान धर्म, लिंग या वैवाहिक स्थिति से ऊपर उठकर सभी पर लागू होता है. यदि कोई विधवा सौतेली माँ स्वयं का पालन-पोषण करने में असमर्थ हो, तो वह अपने सौतेले पुत्र से भरण-पोषण की मांग कर सकती है. यह कानून सामाजिक न्याय और संविधान के अनुच्छेद 15(3) व 39 के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो विशेष सुरक्षा प्रदान करता है.
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भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता: वृद्धों के अधिकारों की नई परिभाषा
हिंदू विधि के अनुसार, विशेषकर हिंदू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 में वृद्ध महिलाओं को भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा और शिक्षा जैसी आवश्यकताएं मुहैया कराना संतान का कर्तव्य माना गया है. मिताक्षरा प्रणाली के अंतर्गत यदि कोई संपत्ति उपलब्ध न हो तब भी पुत्रों पर अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी होती है. धारा 20 के अनुसार, एक हिंदू संतान तब तक अपने माता-पिता की देखभाल करेगी जब तक वे स्वयं से अपना पालन-पोषण करने में असमर्थ हों. यदि माता-पिता के पास पर्याप्त संसाधन हों, तो संतान पर कानूनी जिम्मेदारी समाप्त हो जाती है. प्राचीन धर्मशास्त्र और मनुस्मृति भी वृद्ध माता-पिता की सेवा को सर्वोपरि मानते हैं और इसे प्रत्येक हिंदू का धर्म और नैतिक कर्तव्य बताते हैं.
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मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं पारसी कानून में बुजुर्गों की देखभाल
इस्लामी कानून, विशेषकर हानाफ़ी मत, पुत्र और पुत्री दोनों को अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल का कर्तव्य सौंपता है. माँ को विशेष प्राथमिकता दी गई है. यदि संतान आर्थिक रूप से सक्षम हो, तो वह अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने के लिए बाध्य है, भले ही माता-पिता ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो. हालांकि, यदि संतान के पास संसाधन नहीं हैं, तो कोर्ट जबरदस्ती भरण-पोषण का आदेश नहीं देती, परन्तु देखभाल के लिए प्रेरित करती है. वहीं, सिख समुदाय के लोग हिंदू विधि के अंतर्गत आते हैं जबकि ईसाई और पारसी समुदाय भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के अंतर्गत न्याय की मांग कर सकते हैं. यह व्यवस्था सभी समुदायों के बुजुर्गों की गरिमा और देखभाल को सुनिश्चित करती है.
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मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं पारसी कानून में वृद्ध संरक्षण
“माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007” भारत सरकार द्वारा बुजुर्गों के कल्याण हेतु पारित एक महत्वपूर्ण कानून है. इस अधिनियम के तहत माता-पिता में जैविक, दत्तक एवं सौतेले माता-पिता शामिल होते हैं. संतान या अन्य संबंधी वृद्धजन की देखभाल के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं. अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि यदि कोई वृद्धजन को जानबूझकर कहीं छोड़कर चला जाता है, तो उसे तीन माह तक की जेल या पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. राज्य सरकारें इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु नियमित निगरानी और मूल्यांकन करती हैं. यह कानून वृद्ध महिलाओं की उपेक्षा एवं हिंसा को दंडनीय अपराध मानता है और उनके संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है.
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समाज एवं परिवार में वृद्ध महिलाओं की गरिमा और सम्मान की भूमिका
बुजुर्ग महिलाओं एवं वरिष्ठ नागरिकों के प्रति सम्मान और देखभाल केवल कानूनी बाध्यता नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारी भी है. भारतीय संस्कृति एवं परंपराएं वृद्धजनों को सम्मानित और संरक्षित करने की सीख देती हैं. वर्तमान युग में जहां परिवार के स्वरूप में बदलाव आ रहा है, वहां कानूनी प्रावधान वृद्धों की गरिमा सुनिश्चित करते हुए उन्हें न्याय दिलाने का माध्यम हैं. वृद्ध महिलाओं की सुरक्षा एवं उनका मानसिक, शारीरिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य बनाए रखना हमारे सामाजिक कर्तव्य का हिस्सा होना चाहिए. इसलिए, न केवल कानून बल्कि समाज को भी जागरूक होकर उनके प्रति दयालुता, सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.