फतेह लाइव, रिपोर्टर

पोटका की धरती वीरों की भूमि है, जहां 1832-33 के दशक में शहीद दुसा और जुगल ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई. अंग्रेजों द्वारा किसानों से मालगुजारी वसूलने, नील की खेती करवाने और महिलाओं पर अत्याचार करने के खिलाफ इन दोनों भाइयों ने तीर-धनुष उठाए और अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का विरोध किया. इन दोनों भाइयों का संघर्ष पूरे इलाके में मशहूर हो गया था. उन्होंने अपने गाँव के खेतों में पत्थलगड़ी कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज कर दिया और उनकी छावनी में खौफ पैदा कर दिया.

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पोटका के वीरों की गाथा, जो आज भी प्रेरणा देती है

शहीद दुसा और जुगल ने अंग्रेजों से लड़ते हुए एक टीम बनाई और लगातार अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष जारी रखा. वह खेतों में पत्थलगड़ी कर छिपकर तीर-धनुष चलाते थे, जिससे अंग्रेजों की चुपके से की गई गश्तों की पोल खुल जाती थी. अंग्रेज इन दोनों भाइयों से इतना परेशान हो गए थे कि उन्होंने इनकी सूचना देने वालों के लिए इनाम घोषित कर दिया था. अंत में कुछ गद्दारों ने इन दोनों भाइयों की जानकारी अंग्रेजों को दे दी और उन्हें पकड़ लिया गया। इसके बाद अंग्रेजों ने उन्हें देवली चौक तक बैलगाड़ी में बंधकर लाकर फांसी दे दी.

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शहीद दुसा-जुगल चौक और पत्थलगड़ी की राष्ट्रीय धरोहर बनाने की मांग

देवली चौक में इन दोनों भाइयों के नाम पर दुसा-जुगल चौक का निर्माण किया गया, जिसे आज भी श्रद्धा और सम्मान से देखा जाता है. ग्रामीण माघ महीने में हर साल यहां पत्थलगड़ी पूजा और उत्सव मनाते हैं. यह गांव के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है, जहां के लोग शहीद दुसा और जुगल के संघर्ष को याद करते हैं. गांव के निवासी हरिश्चंद्र सरदार और हिमांशु सरदार ने यह मांग की है कि इन दोनों भाइयों द्वारा इस्तेमाल किए गए पत्थरों को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए, ताकि यह बहादुरी की मिसाल आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके.

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