वर्चस्व की लड़ाई में हो रही सुनियोजित छापेमारी, रसूखदार धंधेबाज कैसे बच गए?

फतेह लाइव, रिपोर्टर.

कोल्हान में पुलिस और स्क्रैप माफियाओं का सिंडीकेट बड़ा ही मजबूत है, इसीलिए तो टाटा स्टील और बंद पड़ी अभिजीत जैसी कंपनियों को भी बड़े अधिकारियों की मदद लेनी पड़ी है. जी हां कोल्हान के सरायकेला-खरसावां और पूर्वी सिंहभूम के सुनियोजित स्क्रैप की चोरी में थानेदारों की बड़ी भूमिका रही है, जिसे वरीय पदाधिकारी भी जानते हैं फिर भी कोई रोकथाम नहीं होती.

हाल ही में जमशेदपुर में केबुल कंपनी में आग लगी थी, जिसे गंभीरता से नहीं लिया गया, क्योंकि स्क्रैप माफियाओं ने ही बंद पड़ी कंपनी से लोहा और तांबा गायब करने के लिए ही वह आग लगाई थी. केबुल कंपनी की यह चोरी कोई पहली नहीं है, बल्कि अक्सर यहां चोरी होती रहती है और स्क्रैप माफियाओं का मैनेजिंग सिस्टम से सारा मामला रफा-दफा होता है. जब ऊपर से कोई दबाव पड़ता है तो स्क्रैप टाल और गोदाम कुछ दिनों के लिए बंद हो जाते हैं. जैसे गोलमुरी थाना क्षेत्र में केबुल कंपनी की चोरी के बाद बिरला मंदिर के पास का एक टाल बंद भी हुआ है.

कुछ महीनों पहले ही एक लाईजनर को जेम्को स्थित अशोक यादव के स्क्रैप गोदाम से टाटानगर ओसी द्वारा जेल भेजा गया था. उसके बाद आरपीएफ की छापामारी में धड़ल्ले से रेलवे संपत्ति को गायब करने वाले अशोक यादव और राजेंद्र सोनकर पर भी गाज गिरी. बीते मंगलवार 21 जनवरी 2024 को जमशेदपुर के टेल्को थाना अंतर्गत जेम्को से अशोक यादव फरारी के दौरान गिरफ्तार हुआ. उससे पहले 11 जनवरी को उसके टाल में छापामारी हुई थी. एक वाहन रेलवे स्क्रैप जब्त हुआ. चार लोग पकड़ाए थे. इस रेड से ठीक पहले ही सुंदरनगर थाना क्षेत्र में राजेंद्र सोनकर और उसके पार्टनर चर्चित लोहा व्यवसायी राजन सिंह के टाल में आदित्यपुर रेल ओसी अजीत सिंह ने 2.5 टन रेलवे की बोगी का स्क्रैप बरामद किया था.

अब यहां समझने वाली बात है यह कि दशकों से चली आ रही इस सुनियोजित चोरी में स्थानीय थानेदारों को लाभ से कैसे वंचित माना जाए? थाना प्रभारी चाहे रेल का हो या जिला पुलिस का लेकिन यह सारा काम उनके जानकारी में ही चलता है, क्योंकि सबका मंथली फिक्सिंग के बाद ही उस थाना क्षेत्र में टाल या गोदाम खुलवाया जाता है.

सूत्र बताते हैं कि एक थाना प्रभारी तो अशोक यादव से 7 रुपए प्रति किलो की दर से रेलवे के चोरी के माल पर हिस्सेदारी में धड़ल्ले से पैसा वसूल रहे थे. अब यहां भी दो गुटों में वर्चस्व की लड़ाई ही छापेमारी का मुख्य कारण बना हुआ है. ये दो गुट रेलवे और अन्य स्तोत्र से मिलने वाले चोरी के स्क्रैप की खरीद बिक्री को लेकर बन गए हैं. सूत्र बताते हैं कि यह मामला ठंडा होने वाला नहीं है और न धंधा बंद होगा और न छापेमारी बंद होगी क्योंकि अधिकारियों के ख़बरी भी धंधेबाज ही हैं जो एक-दूसरे के गोदाम में रेड के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की मुखबिरी कर रहे हैं.

देखने वाली बात होगी कि अगला नंबर किसका है क्योंकि यहां स्थानीय थाना,रेल थाना और जीएसटी को भी पूरी तरह से जानकारी के बाद भी कार्रवाई बहुत ही मुश्किल से हो पाती है.

(अगले अंक में बताएंगे कि कैसे अरबपति बन गया एक ठेले से स्क्रैप ढोने वाला जुगसलाई का दरभंगिया?)

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