सिख पंजाबी करते हैं युद्ध का अभ्यास!


























जब पूरा देश होली मनाता है तो पंजाब में होला-मोहल्ला मनाया जाता है। इसलिए पंजाबी अकसर कहते हुए सुने जा सकते हैं कि ‘लोकां दियां होलियां, खालसे दा होला ए।
होला मोहल्ला आनंदपुर
दरअसल होला-मोहल्ला शब्द की उत्पत्ति हल्ला शब्द से हुई है जिसका मतलब होता आक्रमण करना और मोहल्ला का मतलब होता है संगठित या एकत्रित होना। गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसकी शुरूआत 7 मार्च 1701 किरतपुर जिला रोपड़ के नजदीक स्थित किला लोहगढ़ से की थी। इस दिन कवि प्रतियोगिता और युद्ध का अभ्यास किया जाता था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने तमाम जातियों को संगठित करते हुए, तमाम भेदभाव तोड़ते हुए सत्ता के जुल्म खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाया था। उन्होंने एक ही कढ़ाए में अमृत तैयार कर सभी को बिना जाति भेदभाव के निचली जातियों और महिलाओं को समान अधिकार दिए – जातिवाद की कमर तोड़ी थी। सभी को सम्मान दिया ताकि वे अपने आत्म सम्मान के लिए खड़े हो सकें। यही कारण है कि उन्होंने लोगों को बाल और पगड़ी रखने की पहचान दी।
इसी धरती से होल्ला-महोल्ला की शुरूआत हुई। सिख गुरूओं का समय वह समय है, जब भारत में उन्होंने मुगल ताकतें और जाति विभाजन और कट्टरता के खिलाफ न केवल लिखा, कविता, शब्द रचे बल्कि अपने आप को राजनीतिक और सैनिक रूप से संगठित की और उस समय की सत्ताओं को चुनौती प्रदान की।