आनंद सिंह की कलम से.

सैयद आदिल हुसैन शाह को आप जानते हैं? आप कहेंगे, क्या बकवास कर रहा हूं मैं. मैं बकवास नहीं कर रहा. आज आपको बताऊंगा कि सैयद आदिल हुसैन शाह कौन थे और कैसे उनकी जान गई. लेकिन, आपको हिंदू-मुस्लिम वाला चश्मा पहले उतार कर फेंकना होगा. आपको जम्मू-कश्मीर वाला चश्मा भी उतार कर फेंकना होगा. आपको सिर्फ और सिर्फ एक भारतीय की नजर से इसे देखना होगा अन्यथा आपकी खोपड़ी में वह बात नहीं घुसेगी, जो मैं आपको बताना चाहता हूं. तो, सैयद आदिल हुसैन शाह पहलगाम के एकमुकाम इलाके के बाशिंदे थे. वह खच्चर पर पर्यटकों को बिठाकर उन्हें सैर कराते थे. रोज का 700-800 रुपये कमाते थे. वह इन्हीं पैसों से अपने घर को चलाते थे. घर में कमाने वाला कोई और नहीं था. बहुत पढ़े-लिखे भी नहीं थे.

जब आतंकवादियों ने पहलगाम के बैसरन में पर्यटकों को मारना शुरु किया तो सैयद आदिल हुसैन शाह आतंकियों के सामने खड़े हो गये. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उन्होंने आतंकियों से कहा कि वे जो कर रहे हैं वह गलत है. ये पर्यटक हैं. कश्मीर घूमने आए हैं. अतिथि हैं. निर्दोष हैं. ये आते हैं तो हमें दो-चार पैसे मिलते हैं और घर चलता है. आप इन्हें न मारो. यह इस्लाम के खिलाफ है. ये किस धर्म के हैं, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ये हमारे मेहमान हैं. तब आतंकियों ने उन्हें जोर का धक्का दे दिया. वह उठे. फिर आतंकियों से भिड़ गये. आतंकियों की एके-47 छीनने की कोशिश की. तब आतंकियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया. उन्हें पांच गोलियां मारी गईं.

यहीं पर रुकें. आतंकियों का मजहब क्या था? इस्लाम. सैयद आदिल हुसैन शाह का मजहब क्या था? इस्लाम. मारने वाला इस्लाम को मानने वाला, मरने वाला भी इस्लाम को मानने वाला. दोनों इस्लाम को मानने वाले थे. लेकिन, मारने वाले ने यह नहीं समझा कि जिसे वह मारने जा रहा है, वह भी इस्लाम को मानने वाला है. मारने वाले पाकिस्तानी थे. मरने वाला हिंदुस्तानी. हिंदुस्तानी मुसलमान ने अपनी जान इसलिए दे दी, क्योंकि वह हिंदुस्तानी हिंदू को बचाना चाहता था. क्योंकि इसी हिंदुस्तानी हिंदू के आने-जाने से उसका घर चलता था. ये बात समझनी होगी कि हिंदुस्तान का मुसलमान हिंदुओं का शत्रु नहीं है.

बेशक यहां पर मामला पर्यटन का है लेकिन जान पर खेल कर पर्यटक को बचाने वाली भावना को भी देखने की जरूरत है. ऐसे कई लोग थे. उस वारदात में, जो पाकिस्तानी आतंकियों की खिलाफत कर रहे थे. कुछ की जानकारी हो पाई है, कुछ की बाद में होगी. भारत सरकार आने वाले दिनों में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करेगी, यह प्रायः तय है. अभी तो मात्र पांच बड़े फैसले किये गए हैं, लेकिन, उस दौर में भी आपको कश्मीर के मुसलमानों को शक के नजरिये से नहीं देखना होगा. 35 साल से तिल-तिल कर मर रहे इन कश्मीरी मुसलमानों को बीते दो वर्षों में खुली हवा में सांस लेने का मौका मोदी सरकार में ही मिला था और अब उस पर ग्रहण लगता दिखा तो बेचैनी लाजिमी है. आपने स्वतःस्फूर्त जम्मू-कश्मीर बंदी देखी या नहीं? यह किसी पार्टी के कौल पर बंद नहीं था. यह ऑटोमैटिक था.

इस दौर में बकवासबाजी की कोई जरूरत नहीं है. हिंदू-मुसलमान करने की भी कोई जरूरत नहीं है. सोशल मीडिया पर जो जहर फैलाया जा रहा है, उसे रोकने की जरूरत है. पूरा देश गम और गुस्से में है लेकिन उस गम और गुस्से में आपको एक बार सैयद आदिल हुसैन शाह के बारे में भी सोचना होगा. विविधताओं से भरपूर इस देश में हर कोने में सैयद आदिल हुसैन शाह हैं. जरूरत इस बात की है कि हम सैयद आदिल हुसैन शाह जैसों की कुर्बानी को याद रखें. भारत सरकार एक्शन में है. आप कुछ ऐसा न करें कि सरकार ही हत्त्साहित हो जाए.

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