मजदूर राजनीति में नए चेहरे के तौर पर उभर रहे श्याम बाबू, निरंजन, दिनेश्वर एवं श्याम सुंदर
टाटा स्टील में सर्वाधिक कमेटी मेंबर पिछड़े वर्ग से, जो अगुवा बनेगा वही लंबे समय तक टिकेगा
चरणजीत सिंह.
टाटा वर्कर्स यूनियन के डिप्टी प्रेसिडेंट शैलेश कुमार सिंह एक फरवरी 2029 में टाटा स्टील से बतौर कर्मचारी सेवानिवृत हो जाएंगे। आशय यह है कि 2028 के बाद न सिर्फ टाटा स्टील के कर्मचारी अपितु टाटा वर्कर्स यूनियन के सदस्य के तौर पर उनकी यात्रा पर विराम लग जाएगा। सेवानिवृति की यही तारीख वो वजह है जिसकी वजह से टाटा वर्कर्स यूनियन में भीतर ही भीतर उनके उत्तराधिकारी की तलाश शुरू हो चुकी है।
टाटा वर्कर्स यूनियन में सर्वाधिक कमेटी मेंबर पिछड़े वर्ग के हैं। 55 के लगभग । यह किसी से छिपा नहीं है, कि यूनियन की आंतरिक सियासत में जातिवाद का बहुत प्रभाव है। अभी पिछड़े वर्ग के कमेटी मेंबरों की अगुवाई शैलेश सिंह कर रहे हैं। यूनियन का यह कार्यकाल खत्म होने के बाद शैलेश सिंह की सियासी पारी विराम की ओर बढ़ चलेगी। सो, नया नेतृत्व उभर रहा है। टाटा स्टील के पीएफ ट्रस्टी श्याम सुंदर गोप, यूनियन के सहायक सचिव श्याम बाबू, एलडी वन के कमेटी मेंबर निरंजन प्रसाद और सीआरएम के कमेटी मेंबर दिनेश्वर प्रसाद फिलहाल ऐसे चेहरे हैं जो शैलेश सिंह के उत्तराधिकार हासिल करने को कदमताल में है। जो खुद को नायक के तौर पर स्थापित करने में कामयाब होगा, भविष्य में यूनियन की सियासत में उसका ही झंडा बुलंद होगा।
शैलेश सिंह ने कभी सार्वजनिक तौर पर दावा नहीं किया कि उनकी मजदूर राजनीति सिर्फ पिछड़े वर्ग तक सीमित है। मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया कि पिछड़ा समूह हमेशा उनके साथ खड़ा रहा है। कुर्मी बिरादरी से आने वाले शैलेश सिंह चाहे सत्ता पक्ष में हो अथवा विरोधी समूह में, यूनियन चुनाव के वक्त उनका समर्थन हमेशा मायने रखता रहा है। आरबीबी सिंह, रघुनाथ पांडेय, पीएन सिंह, आर रवि प्रसाद से लेकर संजीव चौधरी के अध्यक्ष बनने तक टाटा वर्कर्स यूनियन की चुनावी राजनीति में शैलेश सिंह का दखल रहा है।
12 साल तक सत्ता से बाहर रहने के बाद संजीव चौधरी के कार्यकाल में शैलेश सिंह की सत्ता में वापसी हो चुकी है। लगातार दूसरी बार डिप्टी प्रेसिडेंट बन चुके हैं। यूनियन की वर्तमान कार्यकारिणी का कार्यकाल 2027 तक है। अगले चुनाव में शैलेश सिंह दोबारा चुन भी लिए गए तो अधूरे कार्यकाल के दौरान सेवानिवृत हो जाएंगे। सेवानिवृत होने के बाद लोकप्रियता के शिखर पर रहे पीएन सिंह को टाटा स्टील प्रबंधन ने बतौर अध्यक्ष नहीं माना है।
जाहिर है, सेवानिवृत होने पर शैलेश सिंह को भी बाहर का रास्ता देखना होगा। यह ऐसा सच है जिससे मुंह छिपा नहीं सकते। एक दिन में उत्तराधिकारी तैयार नहीं हो सकता, न किसी को भी लोग आसानी से स्वीकार कर लेंगे। इसके लिए खुद को साबित करना होगा। श्याम सुंदर गोप, निरंजन कुमार, श्याम बाबू और दिनेश्वर प्रसाद फिलवक्त श्रम कानून को समझ रहे हैं, अपने लोगों के बीच समय दे रहे हैं, खुद की क्षमता को दिखाने में लगे हैं। हो सकता है कि कुछ और चेहरे भी निकट भविष्य में सामने आए। इतना अवश्यंभावी है कि यूनियन के अगले चुनाव में पिछड़े समूह के अगुवा के तौर पर कोई न कोई चेहरा जरूर खुद को स्थापित करने का प्रयास करेगा।
जाति समूह को भी साधना नहीं होगा आसान
पिछड़े वर्ग में कुर्मी, कोयरी, यादव, कुम्हार, नाई, झारखंडी महतो समेत कई लोग आते हैं। अभी पिछड़ा वर्ग में सबसे अधिक कमेटी मेंबर कुर्मी और कोयरी जाति से है। इसके बाद यादव आते हैं। पिछड़े वर्ग का अगुवा बनने के लिए सभी जाति समूह को साधना होगा जो आसान नहीं है। बड़े दिल वाला ही सबका दिलदार बन पाएगा।