निशिकांत ठाकुर






































वर्ष 1972 में जब चम्बल के दस्युओं से आम जनता ही नहीं, केंद्र और राज्य सरकारें भी परेशान थीं, तब लोकनायक जयप्रकाश नारायण और आचार्य विनोबा भावे की महज एक अपील पर चम्बल घाटी के सैकड़ों दस्युओं ने हथियार डाल अपने गुनाहों के लिए माफी मांगते हुए देश की मुख्य धारा में शामिल होने की कसम खाई थी. फिर सरकार ने चम्बल को धीरे धीरे दस्युओं से मुक्त करके उसका विकास करना शुरू किया और आज चम्बल घाटी न केवल शांत है, बल्कि देश की मुख्य धारा में शामिल होकर विकास के पथ पर अग्रसर है. कहा जाता है और वैज्ञानिकों इसे प्रमाणित कर दिया है कि मुख्य धारा से हटने पर जिस तरह नदियां सूख जाती हैं, उसी तरह जाने अनजाने राष्ट्र विरोधी ताकतों का भी सर्वनाश हो जाता है. नदी यदि बाढ़ में बांध तोड़कर अलग राह पर चल पड़ती है, तो कुछ दूर बाद जब बाढ़ का पानी घट जाता है तो वह छोटी नदी सूख जाती है. वही हाल आज नक्सलियों का हो रहा है. वह बहकावे में आकर देश की मुख्य धारा से कट चुके हैं, चोरी—छिपे जीवन जीते और जगह जगह हत्या—दर—हत्या करते हुए अपनी अगली पीढ़ी के लिए गड्ढे खोद रहे हैं. मैंने पहले भी कई बार उल्लेख किया है कि सरकार से यदि कोई लड़ने की बात कर रहा है, तो उसका विनाश निश्चित है. आप पानी में रहकर मगरमच्छ से दुश्मनी मोल नहीं ले सकते हैं. यदि आप अगली पीढ़ी के लिए कुछ करना चाहते हैं, सरकार के समक्ष बिना शर्त अपना हथियार डाल दें, यही बेहतर विकल्प है.
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मुख्य धारा से अलग रह रहे हिंसक नक्सलियों के लिए देश के गृहमंत्री अमित शाह अपील करते हैं कि जब कोई नक्सली मारा जाता है, तो कोई भी खुश नहीं होता. अमित शाह ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में कहा कि मैं आग्रह करता हूं कि वे हथियार डालकर मुख्य धारा में शामिल हों. आप हमारे अपने हैं, इसलिए जब कोई नक्सली मारा जाता है, तो कोई भी खुश नहीं होता. आप हथियार उठाकर भी अपने आदिवासी भाइयों और बहनों के विकास को नहीं रोक सकते. गृहमंत्री ने बिल्कुल सच कहा. आज संभवतः देश का वह सबसे पिछड़ा इलाका है, जहां विकास की किरण नहीं पहुंच पाई. देश आजादी के बाद से आज तक कहां से कहां पहुंच गया, लेकिन हमारे देश का ही एक अभिन्न अंग अब तक महज इसलिए विकसित नहीं हो पाया है, क्योंकि वहां के निवासियों के मन में जहर भरते हुए विकास को ही सबसे बड़ा विनाश, यानी खतरा बताया गया है. हमने अपने पिछले कई लेखों में कहा है कि जो वहां के मूल निवासी हैं, वे तो भोले—भाले हैं, लेकिन जो उनके विकास को अवरुद्ध करना चाहते हैं, वह देश के सबसे बड़े गद्दार हैं. हमें हर हाल में ऐसे गद्दारों को ढूंढना पड़ेगा, जिन्होंने इन भोली—भाली जनता को गुमराह करके मृत्यु के मुंह में धकेल दिया है.
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गृहमंत्री अमित शाह की अपील का ही असर है कि तेलंगाना में छत्तीसगढ़ के 86 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया. नक्सलियों का इतनी बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण करना सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है. इससे यह होगा कि भोले—भाले लोगों के कान भरने वाले अपनी आदत से बाज आने लगेंगे और अपने बिल में छुप जाएंगे. इस तरह की अपील वैसे तो सरकार द्वारा पहले भी कई बार की जा चुकी है, लेकिन इस अपील का इतना बड़ा असर होगा, इसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. देश के प्रत्येक नागरिक के मन में यह विचार बार—बार उठता है कि आखिर देश का विरोध करने के लिए और सरकार को खुलेआम चुनौती देने वाले लोग अपने आप को क्या समझते हैं और किस प्रकार जान की बाजी लगाकर सरकार से बगावत करने लग जाते हैं. निश्चित रूप से सरकार ऐसी बहकी हुई भोली—भाली जनता को देश के प्रति विश्वास दिलाएगी कि यह उनकी अपने देश की सरकार है, जो आपका विकास आपकी अगली पीढ़ी के लिए करना चाहती है. हो सकता है, तब शेष बचे ऐसे लोग भी देश की मुख्य धारा से जुड़ने की कोशिश करेंगे.
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दरअसल, कानू सान्याल और चारू मजूमदार पश्चिम बंगाल नक्सलबाड़ी गांव के रहने वाले थे जो चीनी मार्क्सवाद के समर्थक माने जाते थे और उनके सिद्धांत को अपनाना चाहते थे. ये लोग कार्ल मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर काम करने लगे, क्योंकि वे उन्हीं से प्रभावित थे. साल 1969 में पहली बार चारू मजूमदार, कानू सान्याल व जंगल सान्याल ने भूमि अधिग्रहण को लेकर पूरे देश में सत्ता के खिलाफ व्यापक लड़ाई शुरू की. भूमि अधिग्रहण को लेकर देश में सबसे पहले आवाज नक्सलबाड़ी से ही उठी थी. नक्सलवाद शब्द की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव के नाम पर हुई है, जहां 1967 में किसान विद्रोह हुआ था. इसी आंदोलन को ही नक्सलवाद और इसमें शामिल लोगों को नक्सल या नक्सली कहा जाता है.
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वर्ष 1967 के बाद राज्य और देश में कई सरकारें आईं, नक्सलवाद को खत्म करने के लिए तरह—तरह के उपाय अपनाए गए, लेकिन इस समय तक इसकी आग देश के कोने—कोने में भड़क उठी थी तथा जो भी इस भभकती आग को बुझाने के लिए आगे आए, उन्हें इस संगठन ने अपने चक्रव्यूह में घेरकर जान से मार डाला. देश के कई राजनेता, बड़े—बड़े अफसर, सुरक्षा बलों को शहीद कर दिया. ये नक्सली बड़े ही निर्मम होते थे और वारदात को अंजाम देने के बाद न जाने किस बिल में घुस जाते थे कि किसी को पता तक नहीं चलता था. उनकी दुश्मनी खासकर सुरक्षा बलों से थी, जो इन्हें समझाने के मकसद से उनके आसपास होते थे. लेकिन, किसी किसी को सच समझने में बहुत वक्त लग जाता है और कुछ तो अपने आगे किसी की भी समझदारी को दूर से ही उड़ा दिया करते हैं. इनकी वारदात ऐसी जगहों से होती रही है, जहां साधारण लोगों का पहुंचना लगभग असंभव है.
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वे अपना विकास स्वयं नहीं चाहते थे. उन्हें यह समझाया गया है कि यदि विकास के लिए सड़क, रेल, मोबाइल, शिक्षण केंद्र खोले जाएंगे, तो उनकी आजादी खत्म हो जाएगी. ऐसी स्थिति में कोई क्या कर सकता है! फिर कोई कैसे देश के आमलोगों के साथ कदम से कदम मिलकर चल सकता है. अब धीरे—धीरे विकास की बातें इनकी समझ में आने लगी है. इसलिए अपने आप को देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए अपने हथियारों का त्याग करके समर्पण करना शुरू कर दिया है. भला हो गृहमंत्री अमित शाह का, जिनकी अपील के असर से भारी संख्या में नक्सलियों का समर्पण हुआ और उन्होंने अपने भाग्य को देश के विश्वास के साथ जोड़ लिया. अब देखना यह है कि गृहमंत्री अमित शाह, जिन्होंने ऐसे नक्सलियों को वर्ष 2026 तक समूल समाप्त करने का बीड़ा उठाया है, उसमें वे कहां तक सफल हो पाते हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)
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