- भारत-साइप्रस संबंधों में नई ऊर्जा, भूमध्यसागर क्षेत्र में भारत की मजबूत मौजूदगी और तुर्की के बढ़ते प्रभाव पर प्रभावी संतुलन
फतेह लाइव, रिपोर्टर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की पश्चिम-केन्द्रित कूटनीति में एक निर्णायक मोड़ है. यह दौरा ऐसे समय हुआ है जब तुर्की द्वारा बार-बार कश्मीर मुद्दे पर वैश्विक मंचों पर भारत की नीतियों का विरोध किया गया है. भारत ने इस विरोध का सीधा जवाब देने के बजाय ‘मूक कूटनीति’ का सहारा लिया है और ऐसे देशों से रणनीतिक साझेदारी मजबूत कर रहा है जो स्वयं तुर्की की आक्रामक नीतियों के शिकार रहे हैं. साइप्रस, जिसने 1974 में तुर्की के सैन्य हस्तक्षेप का सामना किया था, भारत के लिए एक स्वाभाविक सहयोगी बनकर उभरा है.
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साइप्रस यात्रा से भारत की ‘Act West Policy’ को मिला बल
प्रधानमंत्री मोदी और साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडुलाइड्स के बीच हुई बातचीत कई स्तरों पर अहम रही. रक्षा, समुद्री सहयोग, साइबर सुरक्षा, आतंकवाद विरोध और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग के साथ-साथ शिक्षा, संस्कृति और हरित ऊर्जा में संयुक्त निवेश की सहमति बनी. दोनों देशों ने डबल टैक्सेशन ट्रीटी को अपडेट करने का भी निर्णय लिया, जिससे निवेशकों को राहत मिलेगी. यह दौरा तुर्की के खिलाफ भारत की रणनीतिक तैयारी का हिस्सा है—बिना किसी सीधा टकराव के, एक मजबूत कूटनीतिक विकल्प के तौर पर.
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डिप्लोमैटिक डिफेंस: भारत-साइप्रस साझेदारी से तुर्की पर दबाव
भारत को साइप्रस से कई आर्थिक और रणनीतिक लाभ मिलने की संभावना है. यूरोपीय संघ के सदस्य होने के नाते साइप्रस भारत को यूरोपीय बाजारों में प्रवेश के लिए एक रणनीतिक गेटवे प्रदान करता है. इसके अतिरिक्त फिनटेक, शिक्षा, मेडिकल टूरिज्म, शिपिंग और स्टार्टअप्स में भी साझेदारी के नए अवसर बनते हैं. भारत को ग्रीन हाइड्रोजन और सोलर एनर्जी जैसे भविष्य के क्षेत्रों में साझेदारी का लाभ भी मिलेगा.
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ग्रीन एनर्जी और डिजिटल इंडिया में साइप्रस बना भारत का नया सहयोगी
साइप्रस को भी भारत के साथ मजबूत होते संबंधों से बहुपक्षीय लाभ हैं. साइप्रस को भारतीय निवेशकों और तकनीकी विशेषज्ञों तक पहुंच मिलेगी, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा. भारत जैसे तेज़ी से बढ़ते देश से जुड़ाव, वैश्विक मंचों पर समर्थन और सामरिक सहयोग साइप्रस को तुर्की के दबाव से संतुलन बनाने में मदद करेगा—वह भी बिना खुले विरोध के.
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साइप्रस के लिए भारत बना रणनीतिक ढाल, निवेश और साझेदारी से मिलेगा लाभ
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा भारत की ‘Act West Policy’ का जमीनी विस्तार है. ग्रीस, इज़रायल और साइप्रस के साथ मिलकर भारत एक ऐसा रणनीतिक चौकड़ी तैयार कर सकता है जो तुर्की के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करे. भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते की दिशा में यह दौरा एक कड़ी है, जिससे भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूती मिलती है. यह यात्रा भारत की परिपक्व, संतुलित और उद्देश्यपूर्ण कूटनीति का प्रतीक है जो विवाद से नहीं, सहयोग से रास्ता निकालने में विश्वास रखती है.