फतेह लाइव, रिपोर्टर.
आज से 10 साल पहले चर्चित टीवी चैनल सब टीवी पर एक नाटक ऑफिस-ऑफिस आपने देखा ही होगा. जहां अपना काम करवाने और फाईल साईन करवाने मुसद्दी लाल को कितने-कितने बार और किस-किस चपरासी से लेकर अधिकारियों तक के चक्कर लगाने पड़ते थे. मुसद्दीलाल को बस तारीख पर तारीख और टेबल दर टेबल भटकाया जाता था, लेकिन उसका एक भी काम नहीं होता था. यह नाटक सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की नाकामी और घूसखोरी पर आधारित है.
ऐसा ही एक कारनामा जमशेदपुर में भी हुआ है और थक हार कर धतकीडीह के अल्पसंख्यक परिजन परेशान हो गए हैं लेकिन उनको सिर्फ तारीख पर तारीख ही मिली है. इस संदर्भ में जिला शिक्षा अधीक्षक के कार्यालय का ही एक अनोखा कारनामा सामने आया है. जहां कि एक बच्ची के परिजन अल्पसंख्यक और बीपीएल कोटा होने के बावजूद कार्यालयों के बाबुओं के चक्कर काटते रहे, लेकिन उनको न्याय नहीं मिला. यूं तो जमशेदपुर के जिला शिक्षा कार्यालय में हर साल बीपीएल कोटा को लेकर गहमा-गहमी रहती है और वहां ऐसे कारनामे होना कोई नयी बात नहीं है.
जानकारी के अनुसार धतकीडीह तारापोर स्कूल के पीछे मात्र 40-50 मीटर की दूरी पर रहने वाली एक बच्ची मिमसा आलम के एडमिशन में हुए ऑफिस-ऑफिस के नाटक की कहानी सुनकर आप भी चौंक जाएंगे. बच्ची के पिता ऐतेशाम आलम एक मामूली ड्राइवर का काम करते हैं जो पिछले 8 महिनों से जमशेदपुर जिला शिक्षा अधीक्षक, डीसी, डीडीसी और स्कूल तक के चक्कर काटते रहे, लेकिन उनके बच्ची को एडमिशन के बजाय मिली केवल तारीख पर तारीख.
इस मामले को लेकर जब हमारी टीम द्वारा पड़ताल की गई तो पता चला कि जिला शिक्षा कार्यालय के एक कर्मचारी ने ही परिजनों को झांसे में रखा जो आरटीई सेक्शन में कार्यरत है. आरटीई सेक्शन का काम है बीपीएल कोटा की सूची तैयार कर विभिन्न स्कूलों को मेल और हार्ड कॉपी जिला शिक्षा अधीक्षक के अनुमोदन पर अग्रसारित करना.
ऐतेशाम आलम का परिवार धतकीडीह तारापुर स्कूल के ठीक पीछे ही चंद कदम की दूरी पर ही रहता है तो शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत उसका नाम सबसे पहले तारापुर स्कूल को ही बीपीएल कोटा के तहत भेजा जाता लेकिन उसे एक किलोमीटर दूर डीएवी बिष्टुपुर भेजा गया.जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम कहता है कि बच्चे के आवास से 6 किलोमीटर की दूरी के अंदर ही सबसे नजदीक स्थित स्कूलों की 25% सीटें आरक्षित हैं जिस पर एडमिशन करवाना जिला शिक्षा विभाग का दायित्व है तो क्या यह केवल कागजों पर ही है?
नहीं काम आई कोई भी पैरवी
ऐतेशाम आलम अपने बच्ची को साथ लेकर दो महीने पहले डीसी ऑफिस भी गए थे.जहां डीसी की अनुपस्थिति में डीडीसी को सारी बात बताई तब वहां से तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक को फोन करके भी इस मामले को देखने के लिए बोला गया.इसके बाद फिर से डीएसई ऑफिस द्वारा ऐतेशाम को डीएवी स्कूल ही भेजा गया जहां प्रिंसिपल प्रज्ञा सिंह ने साफ मना कर दिया कि सीट खाली नहीं है इसलिए हम एडमिशन नहीं लेंगे.
हमारी टीम को जिला शिक्षा कार्यालय से डीएवी बिष्टुपुर को भेजें गये उस पत्र की कॉपी भी मिली है जिसमें डीएवी स्कूल को शिक्षा अधीक्षक के हस्ताक्षर से अग्रसारित पत्र में उस बच्ची का नाम सबसे ऊपर फॉर्म संख्या-2224 के साथ अंकित है तो सवाल उठता है कि फिर डीएवी स्कूल ने वह आरक्षित सीट आखिर किसे दे दी,खैर यह तो जांच का विषय है.
थक हार कर दो दिन पहले फिर से ऐतेशाम वर्तमान जिला शिक्षा अधीक्षक आशीष पांडे से मिले और उन्होंने RTE सेक्शन को यह मामला देखने को कहा.ऐतशाम को फिर से डीएवी स्कूल भेजा गया लेकिन प्रिंसिपल का जवाब इस बार भी वही था हम कुछ नहीं कर सकते हैं.
8 महिनों से कभी तारापुर स्कूल तो कभी डीएवी स्कूल कभी डीसी ऑफिस और कभी डीएसई का चक्कर काटते-काटते थक चुके एक अल्पसंख्यक परिवार ने आखिरकार उम्मीद ही छोड़ दी.इसका कारण है कि अब तो बच्ची की उम्र सीमा ही समय के थपेड़ों से पार हो गई है इसलिए वह आरटीई के नियमों से बाहर हो गई है.
आखिर किन बच्चों को मिली डीएवी और तारापुर में प्राथमिकता?
सवाल ये है कि धतकीडीह तारापोर स्कूल से महज 100 मीटर और डीएवी से महज 500 मीटर के दायरे में रहने वाली एक अल्पसंख्यक बच्ची को प्राथमिकता न देना यह दर्शाता है कि एडमिशन में पैरवी और सेटिंग-गेटिंग का खेल तो चलता ही है?
सूत्र बताते हैं कि बीपीएल कोटा की सूची जारी नहीं की जाती है.प्रत्येक वर्ष जनरल कोटा की सूची जारी होने के दो महीने के बाद ही सभी छोटे-बड़े निजी स्कूलों द्वारा जिला शिक्षा कार्यालय से भेजे गए बीपीएल कोटा की सूची के साथ संलग्न फॉर्म में अंकित फोन नंबर पर फोन करके अभिभावकों को बुला लिया जाता है और एडमिशन दे दिया जाता है.सूत्र बताते हैं कि ये एक बड़ा घोटाला है क्योंकि जनरल कोटा में नाम नहीं आने पर दर-दर की ठोकरें खाते कुछ परिजन भी एजेंटों के माध्यम से बड़े-बड़े स्कूलों के बीपीएल कोटा में ही मोटी रकम देकर बच्चों का एडमिशन करवा लेते हैं जिससे ऐतशाम जैसे जरूरतमंदों का हक मारा जाता है.हालांकि यह जांच का विषय है और अगर सभी छोटे-बड़े निजी स्कूलों में बीपीएल कोटा की जांच हुई तो चौंकाने वाला खुलासा होना तय है.
डॉ अजय ने संज्ञान लेते हुए सीएम से किया अनुरोध कहा डीसी लें संज्ञान
थक हार कर ऐतेशाम ने मुख्यमंत्री और डॉ अजय कुमार से न्याय दिलाने की एक मार्मिक अपील ट्विटर पर कर दी.ऐतेशाम ने डॉ अजय और सीएम को टैग लिखा कि तारापुर स्कूल के ठीक पीछे घर होने का बावजूद बीपीएल कोटा से मेरा नाम डीएवी बिष्टुपुर को भेजा गया और 8 महिनों तक दौड़ाने के बाद बच्चे का एडमिशन नहीं लिया गया या अल्पसंख्यक होना गुनाह है?देखा जाए तो एक पीड़ित पिता के इस ट्वीट से स्कूलों पर भेदभाव के आरोप लग रहे हैं.
आज इस ट्वीट पर कुछ लोगों ने अपने स्तर से जवाब भी दिए और सरकार को भी कोसा लेकिन जब डॉक्टर अजय कुमार की नजर इस ट्वीट पर पड़ी तो उन्होंने मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन से डीसी पूर्वी सिंहभूम को संज्ञान लेने के लिए निर्देशित करने का अनुरोध किया है.डॉ अजय ने लिखा है कि शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का अधिकार है और हमारी सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि कोई बच्चा इससे वंचित न रहे.