जमशेदपुर।
त्याग और बलिदान का त्यौहार ईद-उल-अजहा गुरुवार को ईदगाह व मस्जिदों में धूमधाम से मनाया गया. शहर के सभी ईदगाहों व मस्जिदों में नमाज अदा की गई. नमाजियों की भीड़ सुबह से ईदगाहों में जुटनी शुरु हो गई थी, जबकि ईदगाहों में घोषणा के बाद बकरीद की नमाज शुरु हुई. मुस्लिम धर्मावलंबियों ने नमाज अदा कर अल्लाह से रहमतों की बारिश व देश में अमन व शांति की दुआएं मांगी. बाद में एक-दूसरे से गले मिलकर ईद की बधाई दी. इमाम ने बताया कि कुर्बानी से इंसान की आजमाइश होती है. अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी के लिए तैयार रहना चाहिए.
जानें क्या है पर्व की मान्यता
देशभर में आज ईद- उल- अजहा यानी बकरीद मनायी जा रही है. मुसलमानों के बड़े त्योहारों में एक बकरीद पर कुर्बानी का महत्व होता है. मान्यता है कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से इस्लाम धर्म में कुर्बानी देने की परंपरा की शुरुआत हुई. मान्यताओं के अनुसार इब्राहिम अलैय सलाम को संतान नहीं थी. अल्लाह से मिन्नतों के बाद उन्हें एक संतान हुई, जिसका नाम इस्माइल रखा. इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे. एक रात अल्लाह ने हजरत इब्राहिम के सपने में आकर उनसे उनकी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी. उन्होंने एक-एक कर अपने सभी प्यारे जानवरों की कुर्बानी दे दी, लेकिन सपने में फिर अल्लाह से उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का आदेश मिला. इब्राहिम को उनका बेटा सबसे ज्यादा प्यारा था. अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए वे अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए. उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देते समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और कुर्बानी के बाद जब आंखें खोली तो उनका बेटा जीवित था. अल्लाह इब्राहिम की निष्ठा से बेहद खुश हुए और उनके बेटे की जगह कुर्बानी को बकरे में बदल दिया. कहा जाता है कि उसी समय से बकरीद पर कुर्बानी देने की यह परंपरा चली आ रही है. इधर लौहनगरी जमशेदपुर में गुरुवार को बकरीद की धूम रही. मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह ईदगाह एवं मस्जिदों में पहुंच बकरीद की नमाज अदा की और मान्यता के अनुसार अपने- अपने घरों में बकरे की कुर्बानियां दी. बता दें कि ईद के 70 दिन बाद बकरीद का त्यौहार मनाया जाता है. इस्लाम में इस दिन अल्लाह के नाम पर कुर्बानी देने की परंपरा निभाई जाती है. मुफ्ती अब्दुल मिस माही मुस्लिम धर्मगुरु ने पर्व पर लोगों को संदेश दिया.