सिंह के रिटायरमेंट के बाद टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन का क्या होगा भविष्य?

फतेह लाइव, रिपोर्टर.

टाटा मोटर्स वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष गुरमीत सिंह कंपनी से सेवानिवृत्त हो रहे हैं, और यह खबर कर्मचारियों के बीच गहरी चिंता का कारण बन गई है. गुरमीत सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक ऐसे जनप्रिय प्रतिनिधि रहे हैं, जिन्होंने अपनी सादगी, सहजता और दूरदर्शिता से लाखों कर्मचारियों का विश्वास जीता है. उनके नेतृत्व में यूनियन ने कई ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हासिल की हैं, और उनकी सेवानिवृत्ति के बाद यूनियन का भविष्य अनिश्चित नजर आ रहा है.

गुरमीत सिंह को उनकी सरलता और सौम्यता के लिए जाना जाता है. वे हमेशा कर्मचारियों से सीधा संवाद करते रहे हैं, चाहे वह किसी अस्थायी कर्मचारी की समस्या हो या किसी वरिष्ठ कर्मचारी की चिंता. यूनियन के अध्यक्ष होते हुए भी, उन्होंने कभी भी अपने पद को अपनी पहुंच से बाहर नहीं किया और हमेशा श्रमिकों के लिए उपलब्ध रहे। उनकी यह खासियत ही उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाती है.

श्रमिकों के लिए ऐतिहासिक फैसले

उनके नेतृत्व में टाटा मोटर्स के कर्मचारियों को कई बड़े फायदे मिले. उन्होंने हर साल 900 अस्थायी कर्मचारियों का स्थायीकरण सुनिश्चित किया, जिससे सैकड़ों परिवारों को स्थिर भविष्य मिला. 2024 में रिकॉर्ड 10.6% का बोनस समझौता करवाकर कर्मचारियों को लगभग ₹53,000 तक का बोनस दिलाया, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक बड़ी उपलब्धि थी. इसके अलावा, 150 कर्मचारियों के बच्चों को अप्रेंटिस के रूप में भर्ती करवाया, जिससे श्रमिक परिवारों के बच्चों को रोजगार का सुनहरा अवसर मिला.

कठिन परिस्थितियों को धैर्य से सँभालने की कला

गुरमीत सिंह की सबसे बड़ी ताकत उनकी धैर्यपूर्वक समस्याओं को सुलझाने की क्षमता रही है. कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने बिना टकराव के, समझदारी और सूझबूझ से हर समस्या का हल निकाला. चाहे वह वेतन बढ़ोतरी की माँग हो, बोनस पर प्रबंधन से बातचीत हो, या कर्मचारियों की अन्य समस्याएँ—उन्होंने कभी भी जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाया, बल्कि हमेशा ठोस रणनीति के साथ आगे बढ़े. उनकी यह शांति और सूझबूझ ही यूनियन को हमेशा मजबूत बनाए रखने में सहायक रही.

हर राजनीतिक दल में प्रभाव, जिससे कर्मचारियों को मिला लाभ
गुरमीत सिंह की एक और बड़ी खासियत यह रही है कि उनके संबंध सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं से हमेशा अच्छे रहे हैं. उन्होंने राजनीति का इस्तेमाल कभी अपने व्यक्तिगत फायदे के लिए नहीं किया, बल्कि हर बार कर्मचारियों और टाटा मोटर्स की बेहतरी के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया. चाहे श्रम कानूनों में सुधार की बात हो, बोनस बढ़ाने की माँग हो या किसी सरकारी नीति में बदलाव की जरूरत—गुरमीत सिंह हमेशा अपनी मजबूत राजनीतिक पकड़ का उपयोग श्रमिकों के हित में करते रहे। उनके इस प्रभाव से यूनियन को हमेशा लाभ मिला और कर्मचारियों के हित सुरक्षित रहे.

गुरमीत सिंह के बिना यूनियन का भविष्य?

अब जब गुरमीत सिंह सेवानिवृत्त हो रहे हैं, सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या यूनियन उनके बिना उतनी ही प्रभावी बनी रह पाएगी?महासचिव आर.के. सिंह यूनियन के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण पद पर हैं, लेकिन क्या वह कर्मचारियों के उसी विश्वास को बनाए रख पाएँगे, जो गुरमीत सिंह के प्रति था? यूनियन के कई सदस्यों का मानना है कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद यूनियन में गुटबाजी और असंतोष बढ़ सकता है, जिससे संगठन कमजोर पड़ सकता है.

हालांकि, यूनियन के पास एक विकल्प मौजूद है—संविधान के तहत गुरमीत सिंह को ‘को-ऑप्ट’* (विशेष रूप से अध्यक्ष पद पर नियुक्त) किया जा सकता है. इससे यूनियन का नेतृत्व मजबूत बना रहेगा और कर्मचारियों के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी. अब यह देखना होगा कि यूनियन इस महत्वपूर्ण मोड़ पर क्या फैसला लेती है.

क्या गुरमीत सिंह को दोबारा अध्यक्ष के रूप में लाया जाएगा, या यूनियन को एक कमजोर और अस्थिर भविष्य का सामना करना पड़ेगा? यह सवाल अब हर कर्मचारी के मन में गूंज रहा है.

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