फतेह लाइव, रिपोर्टर.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखते हुए राज्य में पेसा कानून को शीघ्र अधिसूचित कर पूर्ण रूप से लागू करने की मांग की है. बुधवार को जारी पत्र में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बताया कि वर्ष 1996 में अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासन की अवधारणा को साकार करने हेतु पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम अर्थात पेसा कानून, संसद द्वारा पारित किया गया था. देश के 10 अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों की सूची में झारखंड भी शामिल है, लेकिन आज तक यहां पेसा कानून लागू नहीं हो पाया है.
उन्होंने पत्र में उल्लेख किया कि झारखंड में 2014-19 तक भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार थी. वर्ष 2018 में उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री के रूप में पेसा नियमावली के प्रारूप निर्माण की दिशा में कदम उठाया था. इस संदर्भ में 14 विभागों से मंतव्य मांगे गये थे तथा प्रारूप पर व्यापक विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही थी. वर्ष 2019 में विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में आपके नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ. जुलाई 2023 में आपकी सरकार द्वारा इस दिशा में पहल करते हुए पेसा नियमावली का प्रारूप प्रकाशित कर आमजन से आपत्ति, सुझाव एवं मंतव्य आमंत्रित किया गया. इसके उपरांत, अक्टूबर 2023 में ट्राइबल एडवाजरी कमेटी की बैठक आयोजित की गयी, जिसमें प्राप्त नियम संगत सुझाव एवं आपतियों को स्वीकार करते हुए नियमावली प्रारूप में संशोधन किया गया. तत्पश्चात नियमावली प्रारूप को सहमति विधिक्षा हेतु विधि विभाग को भेजा गया. मार्च 2024 में विधि विभाग एवं विद्वान महाधिवक्ता द्वारा सहमति प्रदान करते हुए यह भी स्पष्ट किया गया कि नियमावली प्रारूप सुप्रीम कोर्ट एवं हाई कोर्ट के न्यायिक निर्देशों के अनुरूप है.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बताया कि माननीय झारखंड हाई कोर्ट ने भी पेसा नियमावली को अधिसूचित करने हेतु निर्देश दिया था. किंतु समयबद्ध अधिसूचना जारी न होने के कारण जून 2024 में अवमानना याचिका दायर की गयी थी, जिसमें राज्य के मुख्य सचिव को पक्षकार बनाया गया था. उन्होंने सरकार से सवाल किया कि इन सबके बावजूद सरकार के द्वारा पेसा नियमावली को अधिसूचित नहीं किया गया, इसका कारण सरकार को ही पता है.
पत्र में रघुवर दास ने कहा कि 5वीं अनुसूची के अंतर्गत पेसा कानून जनजातीय समाज की अस्मिता एवं स्वशासन की आत्मा है. सरना (जनजातीय) समाज प्रकृति पूजक है और उसकी आस्था जंगल, जमीन, नदी और पहाड़ में बसती है. पूर्वों ने जो सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश को संरक्षित किया है, सरना (जनजातीय) समाज आज भी उसे उसी रूप में संजो कर रखा है. पेसा कानून लागू होने से सरना (जनजातीय) समाज अपने क्षेत्र की परंपरा, रीति रिवाज, उपासना पद्धति और धार्मिक विश्वासों का संरक्षण, संवर्धन और दस्तावेजीकरण कर सकता है. झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001 की धारा 3 (iii) के अनुसार अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा के सदस्य यदि ऐसा चाहे तो किसी ग्राम में एक से अधिक ग्राम सभा का गठन ऐसी रीति में किया जा सकेगा, जैसा कि विहित किया जाये, और ऐसी प्रत्येक ग्राम सभा के क्षेत्र में आवास या आवासों के समूह अथवा छोटे गांव या गांवों-टोलों का समूह होगा, जिसमें समुदाय समाविष्ट हों, जो परंपरा एवं रुढ़ियों के अनुसार अपने कार्यकलाप का प्रबंधन करेगा.
दास ने झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 की धारा 10 (5) का उल्लेख करते हुए बताया कि अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा को अतिरिक्त शक्ति प्रदान की गयी है. इसके अनुसार व्यक्तियों के परम्पराओं तथा रुढियों, उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक साधनों सरना, मसना, (जाहेर थान) आदि को और विवादों के निराकरण के उनके रुढ़ीगत तरीकों को सुरक्षित एवं संरक्षित करेगी. साथ ही इस दिशा में सहयोग के लिए ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद् तथा राज्य सरकार के समक्ष प्रस्ताव ला सकेगी.
दास ने बताया कि इसका परिणाम यह होगा कि सरना समाज अपनी मान्य उपासना पद्धति के अनुरूप अपने अस्तित्व का दस्तावेजीकरण कर सकेगा. ग्राम सभा के द्वारा तैयार दस्तावेज को राज्य सरकार मान्यता प्रदान कर सकती है एवं कानूनी दस्तावेज के रूप में मान्यता दी जा सकती है. भारतीय कानून यह स्वीकार करता है कि परंपरा, रिवाज और उपासना पद्धति सिर्फ सांस्कृतिक विरासत ही नहीं बल्कि कानूनी अधिकार है. यह कानूनी अधिकार सरना समाज को स्थानीय स्वीकृति से लेकर राज्य स्तरीय मान्यता प्रदान कर सकती है. राज्य में कई जनजातीय समूह निवास करते हैं, जिसकी परंपरा और विरासत काफी प्राचीन हैं. जैसे-मुंडा समाज मुंडा समाज में पत्थरगढ़ी, खुदकटी एक प्राचीन परंपरा है, जिसका सही तरीके से निर्वहन पेशा कानून लागू होने के बाद हो सकेगा.
उरांव समाज – उरांव समाज अपने पूर्वजों का कुंडी पूजा के माध्यम से दीपावली के दूसरे दिन पूजन करते हैं. संथाल समाज – संथाल समाज कार्तिक पूर्णिमा के दिन साफाहोड मनाता है, जिसमें समाज के लोग गंगा स्नान करते हैं. हो समाज- माघे या मागे परब हो समाज का एक पारंपरिक पर्व है। यह त्यौहार माघ महीने की शुरुआत में मनाया जाता है, जो आदि धर्म व संस्कृति एंव मानव उत्पति यानी सृष्टि रचना पर्व है. इसी तरह अन्य जनजातीय समूहों के भी अपने रीति रिवाज और परंपराएं हैं. इनका संरक्षण और संवर्धन करने में पेसा कानून सहायक होगा.
इसके साथ ही, पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सरना धर्म कोड को लेकर विभिन्न राजनैतिक दल की मांग की भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि झारखंड के तत्कालीन लोहरदगा सांसद सुदर्शन भगत ने 13 अगस्त 2013 को लोकसभा में सरना धर्म कोड को लेकर सवाल उठाये थे. 11 फरवरी 2014 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की केंद्र सरकार में केंद्रीय जनजातीय कार्य एवं पंचायती राज्यमंत्री डी किशोर चंद्रदेव ने आधिकारिक जवाब में कहा था कि सरना कोड को मान्यता दिलाने के संबंध में केंद्र सरकार की तरफ से कोई निर्णय नहीं लिया गया है. उन्होंने यह भी कहा था कि सरना कोड को अलग से मान्यता देने में परेशानी है क्योंकि देश भर में 100 से अधिक जनजातीय समूह मौजूद है. उदाहरण स्वरूप उन्होंने कहा था कि झारखंड में सरना, मणिपुर में सनामाही, अरुणाचल प्रदेश में डोनीपोलो आदि है. इसके अलावा उन्होंने संताल, मुंडा, गोंड, उरांव, खासी, भील आदि की भी चर्चा की थी. अपने जवाब में केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा था कि हिन्दुओं में भी अनेक पंथ, आनंद मार्गी, ब्रह्म समाज, लिंगायत, वीर शैव आदि है, इस्लाम में शिया और सुन्नी, बौध में हीनयान और महायान आदि है. इसी वजह से व्यवहारिक रूप से एक अलग धर्म कोड देना उचित नहीं है. इससे भविष्य में बाकी बची हुई जनजातीय समाज भी अलग धर्म कोड की मांग करेंगे.
उन्होंने कहा कि यदि झारखंड राज्य पेसा अधिनियम को पूरी तरह लागू करता है, तो ग्राम सभा को सरना (जनजातीय) समाज को परंपराओं तथा रुढ़ियों, उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामुदायिक साधनों को सरना कोड के रूप में कानूनी रूप देने के लिए सरकार को प्रस्ताव देकर कानूनी रूप में लागू किया जा सकेगा. कहा कि इससे सरना (जनजातीय) समाज की पहचान सुरक्षित होगी और उनकी आस्था एवं सांस्कृतिक विरासत को राज्य स्तर पर कानूनी मान्यता मिल सकेगी. साथ ही उनकी हकमारी की घटनाओं पर भी अंकुश लगेगा। इस व्यवस्था के लागू होते ही खुद ब खुद सरना धर्म कोड लागू हो जायेगा और यह कार्य पूरी तरह से झारखंड सरकार के अधिकार क्षेत्र में है.
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पत्र के अंत में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से विनम्र अनुरोध करते हुए कहा कि राज्य में पेसा नियमावली को यथाशीघ्र अधिसूचित कर पूर्ण रूप से लागू किया जाये. यह कदम न केवल संवैधानिक दायित्वों की पूर्ति करेगी, बल्कि झारखंड की अस्मिता एवं जनजातीय स्वशासन के गौरव को भी सशक्त बनायेगा.