विजिलेंस विभाग ने भेजा था जेल, विजिलेंस डीजी के पद से भी हटाए गए
इसके बाद डीजीपी ऑफिस में एनजीओ प्रभारी गणेश पर विजिलेंस एक्शन
आखिरकार कानूनी लड़ाई पर फैसले के पहले अनुराग का हो गया इस्तीफा
एस वंदना.
हेमंत सरकार में अनुराग गुप्ता का पुलिस महानिदेशक की कुर्सी तक पहुंचना जितना चौंकाने वाला रहा, उतना ही उनका जाना भी. नेता प्रतिपक्ष में रहते हेमंत सोरेन को जब मौका मिला, उन्होंने अनुराग गुप्ता की लानत मलानत में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी. उन्हीं के मुख्यमंत्री रहते अनुराग गुप्ता का निलंबन हुआ. मजेदार बात है कि निलंबन मुक्ति के बाद हेमंत राज में ही उन्हें पुलिस महकमे के सबसे ऊंचे ओहदे तक जाने का अवसर भी प्राप्त हुआ.
अनुराग गुप्ता को डीजीपी की कुर्सी पर बैठाए रखने के लिए हेमंत सरकार उच्चतम न्यायालय में लड़ती रही तो भारत सरकार के साथ भी दो दो हाथ करने को तैयार रही. मगर एक घटनाक्रम ने फिल्मी अंदाज में एकाएक सब कुछ बदल दिया. अगर घटनाक्रम पर गौर करे तो शराब घोटाले में झारखंड के विजिलेंस विभाग द्वारा जेल भेजे गए आईएएस विनय चौबे के साथ छत्तीसगढ़ के कारोबारियों की जमानत के बाद अनुराग गुप्ता की सफलता की राह उनके इस्तीफा पत्र की ओर बढ़ता चला गया.
हेमंत सोरेन का आवास बोकारो में भी है. प्रिया दुबे बोकारो एसपी रही हैं, तो उस समय अनुराग गुप्ता बोकारो डीआईजी थे. उस वक्त दिनों अधिकारियों की खींचतान सार्वजनिक हो गई थी. विनय चौबे को जमानत मिलने के कुछ दिनों के बाद अनुराग गुप्ता को विजिलेंस डीजी के पद से रुखसत कर दिया गया. उनकी जगह आई प्रिया दुबे. कभी पूर्वी सिंहभूम के सिदगोड़ा थाना में इंस्पेक्टर रहे गणेश सिंह अनुराग राज में पुलिस हाउस में एनजीओ प्रभारी की कुर्सी पर थे. डीडीपी के बेहद करीबी पुलिस अधिकारियों में उनका नाम शुमार रहा. प्रिया दुबे के निर्देश पर डीजीपी कार्यालय परिसर में ही एनजीओ प्रभारी गणेश सिंह पर विजिलेंस की कार्रवाई की गई. गणेश सिंह पर सख्ती बरती गई.
उनके बयान को रिकॉर्ड भी किया गया. अनुराग गुप्ता को विजिलेंस डीजी के पद से हटाने के बाद उनकी जगह प्रिया दुबे का आना और उसके बाद गणेश सिंह के खिलाफ कार्रवाई साफ इशारा थी कि अब अनुराग गुप्ता ने सरकार का विश्वास खो दिया है. नतीजतन, विदाई हो गई.
क्या से क्या हो गया बेवफा तेरे प्यार में
अनुराग गुप्ता का न सिर्फ हेमंत सरकार अपितु रघुवर राज में भी खूब राज चला है. रघुवर सरकार में ही 2016 में हुए राज्यसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में वोट देने के लिए बड़कागांव की तत्कालीन कांग्रेस विधायक निर्मला देवी को लालच देने और उनके पति पूर्व मंत्री योगेंद्र साव को धमकाने का आरोप लगा था. इसका ऑडियो भी वायरल हुआ था. बाबूलाल मरांडी तब झाविमो अध्यक्ष थे. हेमंत सोरेन, बाबूलाल मरांडी समेत सारे विरोधी दलों ने अनुराग गुप्ता के खिलाफ तगड़ी घेराबंदी की थी. रघुवर राज जाने और हेमंत युग आने के बाद ब्यूरोक्रेसी से लेकर राजनेता मान रहे थे कि अनुराग गुप्ता गुमनामी में खो जाएंगे.
मगर उन्होंने धमाकेदार वापसी की. 26 जुलाई 2024 को पहली बार प्रभारी डीजीपी बन गए. इसके बाद झारखंड विधानसभा का चुनाव घोषित हुआ. राज्यसभा चुनाव में गड़बड़ी के लिए दोष सिद्ध हो चुके अनुराग गुप्ता को भारत निर्वाचन आयोग के आदेश पर प्रभारी डीजीपी के पद से हटा दिया. 28 नवंबर 2024 को हेमंत सोरेन दोबारा सत्ता में आई तो उन्हें फिर से प्रभारी डीजीपी की कुर्सी थमा दी गई. बीते 3 फरवरी 2025 को नियमित डीजीपी नियुक्त किया गया.
उन्हें डीजीपी बनाने पर कानूनी दांव पेंच शुरू हो गए थे, तो झारखंड सरकार ने डीजीपी की नियुक्ति की नई नियमावली भी बना दी. 30 अप्रैल 2025 को सेवानिवृति के बाद भी अनुराग गुप्ता को डीजीपी बनाए रखा गया तो महालेखाकार कार्यालय ने पहले वेतन रोकने की बात कही. फिर सशर्त सहमति दी कि कि अगर उनकी नियुक्ति गलत पाई गई तो वेतन की राशि लौटानी होगी. गृह मंत्रालय ने अनुराग गुप्ता को डीजीपी मानने से मना किया. इसके बावजूद झारखंड सरकार नहीं मान.
संघ लोक सेवा आयोग ने भी अनुराग…अनुराग के राग को अस्वीकार कर दिया. इस विवाद में झारखंड राज्य सेवा के कई पुलिस अधिकारियों का आईपीएस में प्रोन्नति नहीं हो सकी है. इतना सब कुछ हुआ तो भी हेमंत सरकार अनुराग गुप्ता के पीछे खड़ी रही. विजिलेंस विभाग की लापरवाही कहे या कुछ और खेल, विनय चौबे समेत छत्तीसगढ़ के कारोबारी को जमानत मिली तो साहब की नजर बदल गई. उसके बाद बदलते चले गए नजारे.
संयुक्त बिहार में राष्ट्रपति से मिला था पुरस्कार
1990 बैच के आईपीएस अनुराग गुप्ता का पुलिस सेवा में शुरुआती दौर शानदार रहा है. अगर झारखंड की बात करे तो वे गढ़वा, गिरिडीह, हजारीबाग के एसपी और रांची एसएसपी रह चुके हैं. संयुक्त बिहार में उन्हें उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार मिला है. बाद मे वे विवादित होते गए. 2016 के राज्यसभा चुनाव के दौरान एक राजनीतिक दल के पक्ष में काम करने के आरोप में फरवरी 2020 में उन्हें निलंबित कर दिया गया था. 26 महीने निलंबित रहने के बाद उनकी कुंडली में फिर अच्छे दिन शुरू हो गए. अप्रैल 2022 में हेमंत सरकार ने निलंबन रद्द कर दिया.
अगले डीजीपी के चयन की राह भी आसान नहीं
झारखंड में फिलहाल तदाशा मिश्रा को डीजीपी का प्रभार दिया गया है. वे दिसंबर में सेवानिवृत हो जायेंगी. इससे पहले स्थाई डीजीपी का चयन करना होगा. पहले व्यवस्था थी कि राज्य सरकार संघ लोक सेवा आयोग को वरिष्ठतम आईपीएस अधिकारियों के नामों का पैनल भेजती थी. इनमें तीन नाम को यूपीएससी स्वीकृत कर राज्य सरकार को भेज देती थी सरकार तीन में किसी एक को डीजीपी बनाती रही है. अनुराग गुप्ता की नियुक्ति इस प्रक्रिया के तहत नहीं हुई थी. विवाद शुरू हो गया था.
इसी बीच उत्तर प्रदेश, पंजाब, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में डीजीपी की नियुक्ति के लिए नई नियमावली बनाई गई. हेमंत सरकार ने भी झारखंड में डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) की नियुक्ति प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव कर दिया. नई नियुक्ति नियमावली बना दी गई है.नई नियमावली के तहत अगले डीजीपी की नियुक्ति को गृह मंत्रालय और संघ लोक सेवा आयोग मान्यता देगा या नहीं, यह देखना बाकी है.
